पहले साहित्य में यह होता था कि फलां लेखक जमीन से जुड़ा है, फलां नहीं, अब राजनीति ने हिंदी साहित्य का यह मुहावरा लपक लिया है। अभी संसद के शीतकालीन सत्र में मोदीजी ने कहा- 'निचला सदन जमीन से जुड़ा है तो उच्च सदन दूर तक देख सकता है'। मोदी जी ने साहित्य से इसे छीनकर और लोकसभा सदस्यों को इसे भेंटकर उन्हें खुश कर दिया। ठीक है मोदीजी, यह अत्याचार भी लेखकों पर कर लो !
मोदीजी ने उच्च सदन को दूर तक देखने वाला सदन बताया है, इस पर आगे कहूंगा, मगर जमीन से जुड़ा वाक्यांश मुझे बहुत दिलचस्प लगता है। लोकसभा के सदस्य जमीन से जुड़े होते हैं या नहीं, मुझे मालूम नहीं मगर इतना विश्वास से कह सकता हूं कि वे ( और राज्यसभा के सदस्य भी) मंत्री पद से, विभिन्न संसदीय समितियों की सदस्यता या उनके अध्यक्ष पद से, अपने वेतन-भत्ते बढ़ाने और बटोरने से, हवाई यात्राओं से और एसी फर्स्ट क्लास के रेल कोच की सीट से, सरकारी कार से, धौंस-धपट्टी से, सरकारी बंगले या फ्लैट की सुविधाओं से, मंच से, संसद भवन के सस्ते खाने से जरूर जुड़े होते हैं। तमाम लाभ और लोभ से जुड़े होते हैं, बाकी किससे जुड़े या टूटे हुए हैं, यह वे और उनका काम जाने!
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और हां, इनमें से बहुत से अपराधों से भी जुड़े होते हैं बल्कि उस जमीन से जुड़ा होना ही उन्हें सांसद पद से सुविधापूर्वक जोड़ देता है। सरकार को बहुमत से जोड़ने में भी इनका उल्लेखनीय योगदान रहता है, जिसे स्वर्णाक्षरों में अभी लिखा नहीं गया है, मगर हमारे द्वारा तुच्छ समझकर छोड़ दिए गए इस काम को भविष्य में अवश्य पूरा किया जाएगा!
जहां तक जमीन से सांसदों के जुड़े होने का प्रश्न है, सांसद बनने के बाद वे बंगले या फ्लैट के दरवाजे के बाहर खड़ी कार से और रेल हवाई जहाज की सीढ़ियों तक फैले जमीन के नन्हे से टुकड़े से जुड़े होते हैं या उनके प्रताप से भयभीत जमीन खुद उनसे जुड़ जाती है। जुड़ क्या जाती है, पददलित होने के लिए तैयार हो जाती है। यानी अगर सांसदों द्वारा जमीन का पददलन ही जमीन से जुड़ना है तो यह काम उनकी कार भी करती है, कुर्सी-टेबल-सोफा और फ्रिज भी। बिना जमीन से जुड़े इनका काम नहीं चलता।
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और जहां तक राज्यसभा सदस्यों के दूर तक देख सकने का सवाल है, उनमें से भी कई पहले जमीन से यानी लोकसभा से ही जुड़े होते हैं। वह तो जब जमीन ही उनसे अपने को जोड़ने से इनकार कर देती है तो उन्हें दूर देखना आ जाता है, यानी वे राज्यसभा से जुड़ जाते हैं। इसलिए जमीन से जुड़ने और दूर तक देख सकने में उतनी ही निकटता या दूरी है, जितनी संसद भवन के इन दोनों सदनों के बीच है।
मैं साढ़े चार दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता और साहित्य, दोनों से सिर फोड़ रहा हूं, मगर मुझे नहीं पता कि मैं जमीन से जुड़ा हूं या नहीं। जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तब कुछ लोग कहते थे कि तुम जमीन से जुड़े नहीं हो, अब मोदी भक्त कहते हैं कि तुम जमीन से जुड़े नहीं हो।सचमुच मैं जमीन से जुड़ा नहीं हूं, क्योंकि जमीन से या तो जड़ें जुड़ी होती हैं या मकान आदि की नींव। मैं दोनों में से कुछ नहीं हूं।
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हां, मैं हवा से जरूर जुड़ा हूं, क्योंकि इस भयानक प्रदूषित दिल्ली में जिंदा रहने लायक ऑक्सीजन भी नाक से खींचना पड़ता है। मैं पाताल से भी नहीं जुड़ा हुआ हूं, क्योंकि वह जमीन से जुड़ा होता है। हां, आकाश से कभी-कभी मैं जुड़ जाता हूं, जो किसी से जुड़ा नहीं होता। वह भी तब अगर रास्ते में आने वाली मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों ने मुझे जोड़ न रखा हो और आंखों को आकाश से जुड़ना भा रहा हो।
कुछ लोगों की राय है कि मैं अभी भी जमीन से जुड़ा हूं, उनके प्रति आभार प्रकट करता हूं, क्योंकि मैं कहूंगा कि नहीं जुड़ा हूं, तो वे फौरन कहेंगे कि तब तो पक्का है कि तुम मोदी भक्त हो। मैं इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकता, इसलिए मान लेता हूं कि जमीन से जुड़ा हूं, जबकि वास्तविकता यह है कि मैं जमीन से नहीं, जमीन मुझसे जुड़ी है। वह मुझे जड़ बनाने पर तुली है, जबकि मैं तना, फूल, फल, पत्ती बने रहने पर अड़ा हूं, ताकि रोशनी में रहूं। संघर्ष जारी है। देखता हूं, वह सफल होती है या मैं?
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