ऑस्ट्रेलिया के इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने हाल में ही ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2023 प्रकाशित किया है, जिसमें कुल 163 देशों की सूचि में भारत 13वें स्थान पर है, यानि दुनिया के केवल 12 देश ऐसे हैं, जो आतंकवाद के सन्दर्भ में भारत से भी खराब स्थिति में हैं। यहां यह जानना आवश्यक है कि इस रिपोर्ट में आतंकवाद का सन्दर्भ केवल आतंकवादी संगठनों द्वारा हमले और हिंसा से लिया गया है और इसमें सरकार-प्रायोजित या सरकार-समर्थित हिंसा शामिल नहीं है – यदि इसे भी आतंकवाद में जोड़ दिया जाए तो निश्चित तौर पर भारत पहले स्थान पर होता। दूसरी तरफ नोट्बंदी के समय “देश से आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा” यह देशवासियों को प्रधानमंत्री द्वारा बार-बार बताया गया था, जो देश में आतंकवाद की स्थिति के सन्दर्भ में महज एक झूठ और एक जुमला बन कर रह गया। सही मायने में आतंकवाद के खात्मे के दावे साथ जिस नोट्बंदी को जनता पर थोपा गया, सामान्य जनता के लिए यह सत्ता-प्रायोजित आतंकवाद से कम नहीं था।
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हाल में ही स्टॉकहोम इन्टरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने बताया है कि भारत पिछले कुछ दशकों से हथियारों का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक है। हथियारों की खरीद के साथ ही हमारे प्रधानमंत्री देश को हथियारों के उत्पादन के सन्दर्भ में आत्मनिर्भर होने और दूसरे देशों को निर्यात करने पर भी जोर देते हैं। यही नहीं, पिछले कुछ वर्षों से जितने भी देशों से द्विपक्षीय वार्ता की गयी, सब में सुरक्षा से संबंधित समझौतों पर बहुत जोर दिया गया। जाहिर है, सबसे अधिक हथियार खरीदने से, हथियारों के उत्पादन बढ़ाने से, डिफेन्स कॉरिडोर का जाल बिछा लेने से, देश को पुलिस स्टेट बना देने से और तमाम देशों से सुरक्षा समझौता कर लेने से कोई भी देश आतंकवाद से मुक्त नहीं होता। फिर भी दुखद यह है कि ऐसा देश जहां दुनिया के सबसे भूखे लोग बसते हैं, बेरोजगारी चरम पर है, और आर्थिक तौर पर मध्य वर्ग की कमर टूटी है – हथियारों के पीछे भाग रहा है, पैसे खर्च कर रहा है।
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स्टॉकहोम इन्टरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट दुनिया भर में सरकारी तौर पर हथियारों की खरीद-फरोख्त का लेखाजोखा रखता है और इसके विश्लेषण द्वारा हरेक वर्ष एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है, जिसमें पिछले पांच वर्षों के दौरान देशों द्वारा हथियारों की खरीद का आंकड़ा प्रस्तुत किया जाता है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 से 2017 के बीच की तुलना में हथियारों की खरीद में वर्ष 2018 से 2022 के बीच 11 प्रतिशत की गिरावट के बाद भी इस सन्दर्भ में भारत पहले स्थान पर है। इसके बाद सऊदी अरब का स्थान है। भारत में वर्ष 2013 से 2017 के बीच हथियारों की कुल खरीद में रूस का योगदान 64 प्रतिशत था, जो अगले 5 वर्षों के दौरान 45 प्रतिशत रह गया फिर भी भारत में सबसे अधिक हथियार रूस से ही खरीदे जाते हैं, दूसरे स्थान पर 29 प्रतिशत खरीद के साथ फ्रांस और फिर 11 प्रतिशत योगदान के साथ अमेरिका तीसरे स्थान पर है।
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रूस, फ्रांस और अमेरिका के बाद भारत प्रमुख तौर पर इजराइल, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका से भी हथियार खरीदता है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 से 2017 के बीच की तुलना में वर्ष 2018 से 2022 के बीच दुनिया में हथियारों का कारोबार 11 प्रतिशत बढ़ गया है। हथियार म्यांमार जैसे देशों को भी बेचे जाते हैं, जहां की सत्ता अपने ही लोगों पर इनका इस्तेमाल करती है। म्यांमार की लोकतंत्र का तख्तापलट कर सत्ता में बैठने वाली सेना सबसे अधिक हथियार रूस से खरीदती है, दूसरे स्थान पर चीन है और तीसरे स्थान पर भारत है।
जाहिर है, निरंकुश सरकारें दुनिया में दूसरी निरंकुश सत्ता को हथियार बेच कर उन्हें अपनी ही जनता पर हथियार चलाने को समर्थन देती हैं। इस खेल में प्रधानमंत्री के शब्दों में “मदर ऑफ डेमोक्रेसी” भी शामिल है। ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स को हरेक वर्ष प्रकाशित किया जाता है, पर उसमें पिछले 5 वर्षों के आंकड़े रहते हैं। इसमें आतंकवादी संगठनों द्वारा हमलों, मृत्यु, बंधकों और घायलों का लेखाजोखा प्रस्तुत किया जाता है। इसके अनुसार वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 के दौरान वैश्विक स्तर पर आतंकवाद की घटनाओं में 28 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई और आतंकी हमलों में मरने वालों की संख्या में भी 9 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई| दूसरी तरफ, रिपोर्ट के अनुसार ऐसी घटनाओं और मृतकों की संख्या में कमी के बाद भी ऐसी घटनाएं अब पहले से अधिक घातक और जानलेवा बन गई हैं। वर्ष 2021 में हरेक आतंकी हमले के दौरान औसतन 1.3 व्यक्ति की मृत्यु होती थी, पर वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 1.7 मृत्यु का रहा। वर्ष 2022 में आतंकवाद से संबंधित 3955 घटनाओं में 6701 व्यक्तियों की मृत्यु दर्ज की गई।
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इस इंडेक्स के अनुसार आतंकवाद की घटनाओं में और इससे होने वाली मृत्यु में भारी कमी के बाद भी पिछले चार वर्षों की तरह सर्वाधिक प्रभावित देश अफग़ानिस्तान है। इंडेक्स के अनुसार वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में अफग़ानिस्तान में आतंकवादियों के हमलों में 58 प्रतिशत और इससे होने वाली मौतों में 75 प्रतिशत की कमी आई है। इंडेक्स में अफ़ग़ानिस्तान के बाद क्रम से बुर्किना फासो, सोमालिया, माली, सीरिया, पाकिस्तान, इराक, नाइजीरिया, म्यांमार, नाइजर, कैमरून, मोजांबिक और भारत का स्थान है। जाहिर है, बड़ी अर्थव्यवस्था वाले और हथियारों की खरीद में अग्रणी देशों में इस इंडेक्स में सबसे आगे भारत ही है। श्रीलंका 29वें, नेपाल 36वें, बांग्लादेश 43वें, भूटान 93वें और चीन भी 93वें स्थान पर ही है। अमेरिका 30वें, जर्मनी 35वें, यूनाइटेड किंगडम 42वें, रूस 45वें, कनाडा 54वें, जापान 62वें और ऑस्ट्रेलिया 69वें स्थान पर है।
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इस इंडेक्स में कुल 163 देशों में से 121 देश ऐसे हैं जिनमें आतंकवाद से कोई भी मौत नहीं हुई है। वर्ष 2015 से 2019 के बीच दुनिया में आतंकी हमलों की संख्या में तेजी से कमी आई, पर इसके बाद स्थिति लगातार एक जैसी ही बनी हुई है। वर्ष 2020 में दुनिया के 43 देशों में आतंकवाद के कारण मौतें दर्ज की गईं थीं, और वर्ष 2022 में यह संख्या 42 है। वर्ष 2022 में 25 देशों में आतंकवाद के मामलों में कमी आंकी गई, जबकि 24 देशों में इसमें वृद्धि दर्ज की गई।
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आतंकवादी संगठनों द्वारा किए गए हमलों और इसमें मारे गये लोगों के संख्या की सूचि में पहला नाम इस्लामिक स्टेट है – इसने वर्ष 2022 में 410 हमलों में 1045 लोगों की जान ली। इसके बाद अल-शबाब ने 315 हमलों में 784 लोगों को मारा, जमात नुसरत अल-इस्लाम वाल मुस्लिमीन नामक संगठन ने 77 हमलों में 279 लोगों को मारा और बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने 30 हमलों में 233 हत्याएं कीं। इस सूचि में 12वें स्थान पर भारत का प्रतिबंधित संगठन कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (माओवादी) का नाम है जिसने पिछले वर्ष 61 वारदातों में 39 हत्याएं कीं। इसके बाद 13वें स्थान पर अल-कायदा और 16वें स्थान पर लश्करे तैयबा का नाम है।
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आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र दक्षिण एशिया और अफ्रीका में सहारा क्षेत्र है। इंडेक्स में सबसे कम अंक वाले देश, यानी आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र दक्षिण एशिया है, जहां इससे होने वाली मृत्यु में 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वर्ष 2022 में इस पूरे क्षेत्र में आतंकवाद के कारण 1354 मौतें दर्ज की गईं। इस इंडेक्स से स्पष्ट है कि गृहयुद्ध से झुलसते देशों में आतंकवाद की समस्या सबसे विकराल है। वैश्विक स्तर होने वाले कुल आतंकवादी हमलों में से 88 प्रतिशत ऐसे ही देशों में किए गए हैं, और आतंकवाद से मरने वालों में 98 प्रतिशत मौतें ऐसे ही देशों में दर्ज की गईं हैं।
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आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित देशों में, जिसमें भारत भी शामिल है, सत्ता निरंकुश है, प्रजातंत्र दम तोड़ रहा है, ऐसे देश पर्यावरण संरक्षण में बहुत पीछे हैं, और इन देशों में भूखमरी की दर बहुत अधिक है। ऐसे देशों में हथियार खूब खरीदे जाते हैं, अनाज के गोदाम भले ही खाली हों, पर हथियारों का गोदाम भरा रहता है। जाहिर है, आतंकवाद का खात्मा हथियारों से नहीं होता बल्कि सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक बराबरी से होता है – पर क्या सत्ता इसे समझेगी?
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