भारतीय संसद किसी भी सरकार के खिलाफ 27वें अविश्वास प्रस्ताव का आज गवाह बना। 15 सालों बाद आज यह चर्चा हुई, आखिरी बार अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा 2003 में हुई थी। पहला अविश्वास प्रस्ताव जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ आचार्य जेबी कृपलानी लेकर आए थे जो पराजित हो गया था। पहला अविश्वास प्रस्ताव जो सरकार गिरने की वजह बना उसे 1979 में वाईवी चव्हाण उसे लेकर आए थे और वह सरकार मोरारजी देसाई की थी।
संसद में चलने वाले 6 घंटे लंबी बहस का परिणाम चाहे जो भी हो, एक बात तो पूरी तरह साफ है कि विपक्षी एकता ने बीजेपी की नींद उड़ा दी है और अहंकारी मोदी सरकार को मदद के लिए अपने गठबंधन के सहयोगियों का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। इस अविश्वास प्रस्ताव की वजह से आरटीआई कानून को कमजोर करने वाले प्रस्तावित संशोधनों से भी मोदी सरकार को पीछे हटना पड़ा है। अविश्वास प्रस्ताव ने उन पार्टियों के दोमुंहेपन को भी सामने ला दिया है जो सार्वजनिक तौर पर सरकार की आलोचना करते हैं, लेकिन उनके मूक सहयोगी बने रहते हैं।
संसद में आज की बहस उस सिलसिले की शुरूआत है जो अभी से अगले लोकसभा चुनाव तक सरकार की असफलताओं को पर्दाफाश करेगी। मोदी सरकार के चार साल ने देश में तबाही ला दी है और सारे संकेतक साफ तौर पर बताते हैं कि अपने असफल शासन के चलते बीजेपी नफरत फैलाने और उसका राजनीतिक फायदा उठाने के अपने आजमाए हुए नुस्खे की तरफ पूरी तरह से लौट रही है। नफरती हिंसा की घटनाएं, मॉब लिंचिंग को सामान्य घटना की तरह पेश किया जाना, घृणित अपराधों के दोषियों और दंगा फैलाने वालों का बचाव करना 2019 के लिए बीजेपी की नीति का हिस्सा लगती है, लेकिन कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार की असफलताओं का पर्दाफाश करने के लिए प्रतिबद्ध है जिसका अर्थव्यवस्था सबसे बड़ा हिस्सा है। विध्वंसक नोटबंदी ने जीडीपी विकास दर के 3 लाख करोड़ रुपए का नुकसान किया और 25 लाख नौकरियों को खत्म कर दिया, जबकि जल्दबाजी में लागू जीएसटी ने अव्यवस्था फैलाने के साथ-साथ छोटे व्यापार को तहस-नहस कर दिया। मोदी सरकार की देख-रेख में भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई, पिछली तिमाही में 44 हजार करोड़ के नुकसान का संकेत मिला है जो हमारे बैंकों के अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा है। अपनी गड़बड़ी को छुपाने के लिए मोदी सरकार ने एलआईसी पॉलिसी में निवेश हुए भारत के लोगों के मेहनत से कमाए पैसे का इस्तेमाल कर आईडीबीआई में अपने हिस्से को देने का फैसले लिया है। 2014 के बाद से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम गिर रहे हैं फिर भी देश की जनता को उसका फायदा देने की बजाय इस सरकार ने केंद्रीय एक्साइज टैक्स को बढ़ाकर (पेट्रोल पर 200 फीसदी और डीजल पर 400 फीसदी से ज्यादा) तेल को अब तक के इतिहास में सबसे महंगा कर दिया और 10 लाख करोड़ रुपए वसूले।
देश के किसान लगातार इस सरकार के उदासीन रवैये को झेल रहे हैं। भारत का कृषि विकास दर पिछले चार साल में उदारीकरण के बाद से सबसे कम रहा है और यह सिर्फ 1.9 फीसदी के दर से बढ़ रहा है। सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी किसानों के लिए एक मजाक बन गया और किसानों को भ्रमित करने का एक जुमला ही साबित हुआ, यहां तक कि कृषि विशेषज्ञों ने सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य+ 50 फीसदी मुनाफे के दावे को धोखा करार दिया है। इसको और आगे बढ़ाते हुए कृषि निर्यात बहुत गिर गया। हमारे युवाओं को हर साल 2 करोड़ रोजगार का वादा करने वाली यह सरकार रोजगार सृजन में बुरी तरह असफल हुई है। इस देश की महिलाएं समान अवसर और पहुंच पाने के लिए लगातार लड़ रही हैं फिर भी सरकार उनकी मांगों पर ध्यान देने से इंकार कर रही है। एनसीआरबी के आंकड़ों ने पिछली सरकारों की तुलना में इस सरकार के कार्यकाल में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में निरंतर बढ़ोत्तरी और सजा दिलाने की दर में कमी दर्ज की है जो मोदी सरकार की असफलताओं को दिखाता है। महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का दावा अभी भी कोल्ड स्टोरेज में है, जबकि कांग्रेस इसका समर्थन करने की अपनी प्रतिबद्धता जता चुकी है जब भी यह संसद में पेश होगा।
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2014 में किए गए लाल-लाल आंख और 56 इंच के सीने के दावे भी खोखले और दंभी साबित हो चुके हैं जिसने भारत की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के दावों को बढ़ा दिया है। 84 देशों में प्रधानमंत्री के घूमने के बावजूद कुटनीतिक असफलताएं साफ तौर दिखाई देती हैं। भारत ने पहली बार एक ऐसा प्रधानमंत्री देखा है जो बिना आमंत्रण के पाकिस्तान चला गया और बिना किसी एजेंडे के चीन घूम कर चला आया। यह कहने की जरूरत नहीं कि अन्य देशों की यात्राओं के अलावा यह दोनों यात्राएं देश की कुटनीतिक मजबूती और पहुंच के लिहाज से बहुत बड़ी असफलता रही है।
मोदी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है और आज का अविश्वास प्रस्ताव यह सुनिश्चित करने की सिर्फ शुरूआत है कि जनता भी 2019 में वोट के जरिये मोदी सरकार में अविश्वास दिखाकर विपक्ष के रवैये पर मुहर लगाए। भारत लोकतंत्र हमेशा से सर्वोच्च रहा है और रहेगा।
(यह लेख सर्वप्रथम इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ)
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