हाल ही में प्रियंका गांधी ने अपने भाई और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ लखनऊ में सफल रोड शो किया। इस रोड-शो ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ही नहीं बल्कि वहां एकत्रित आम लोगों को भी आकर्षित किया, जिन्होंने प्रियंका की नई राजनीति को नई उम्मीद के साथ देखा। प्रियंका गांधी ने इस मौके पर हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन करते हुए, भीड़ में से बच्चे को गले लगाते हुए और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के प्रति अपने लगाव का इजहार करते हुए बिना कुछ कहे बहुत सी चीजें कह दीं।
राहुल गांधी ने यह कहकर कि उनका (प्रियंका) लक्ष्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाना है, एक उम्मीद भी जोड़ दी। निश्चय ही इसने उत्तर प्रदेश के लोगों में एक नई आशा पैदा की है। प्रियंका ने अपने फोन संदेशों में, जिन्हें उन्होंने रोड-शो से पहले भेजा था, उत्तर प्रदेश में एक नई राजनीति करने के वादे का इजहार किया। यह नई राजनीति क्या होगी? यह संदेश खुद इसको परिभाषित करता है कि इस नई राजनीति में युवा, महिलाएं, हाशिये के लोग और हर व्यक्ति अपनी आकांक्षाओं की गूंज सुन सकता है।
उम्मीद है कि यह नई राजनीति परंपरागत राजनीति से अलग होगी। इसमें कोई प्रभावशाली नहीं होगा बल्कि हर कोई समान होगा और हर कोई (स्त्री या पुरुष) इस राजनीति में अपनी खुद की छवि को देख सकेगा। 2019 के आम चुनाव से पूर्वअपने पहले रोड-शो के प्रभावशाली प्रदर्शन के जरिए प्रियंका गांधी ने साफ संकेत दे दिया है कि वह कांग्रेस की खोई हुई जमीन को फिर से बहाल करेंगी।
कांग्रेस पिछले तीस साल से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है। वह भारतीय विकास के उदार अर्थव्यवस्था से पहले का समय था। उदार अर्थव्यवस्था का चरण 90 के दशक में शुरू हुआ। 90 के दशक में उत्तर प्रदेश में केवल सामाजिक न्याय की राजनीति ने गति पकड़ना शुरू किया। यह चरण मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (एसपी) और कांशीराम-मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के उभार का दौर था। इसके बाद उत्तर प्रदेश कमोबेश एसपा-बीएसपी के सामाजिक न्याय के संस्करण से प्रेरित भावानात्मक पहचान के जरिए प्रोत्साहित राजनीति के शासन के तहत रहा।
एसपी-बीएसपी के नेतृत्व वाली सामाजिक न्याय की राजनीति में क्या हुआ? दुर्भाग्य से सामाजिक न्याय के तत्व कमजोर पड़ते गए और जाति आधारित पहचान प्रभावी होती गई। पहचान की इस राजनीति से कुछ प्रभावी जातियां उभरीं और उन्होंने राज्य के संसाधनों, जो राज्य में सामाजिक समानता लाने के लिए प्रस्तावित थे, का बड़ा हिस्सा निचोड़ना शुरू कर दिया। पहचान की इस राजनीति से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में चंद जातियां लाभान्वित हुईं और दलितों में भी चंद जातियों को प्रमुखता मिली।
ओबीसी और दलितों में ये प्रभावी जातियां राजनीति में दिखाई देने लगीं और अपने निजी फायदों के लिए इन्होंने राज्य के संसाधनों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। ये मध्यवर्ग के रूप में उभरे और इन्होंने समुदाय को वापस कुछ भी नहीं दिया। डॉ. बी आर आंबेडकर ने अपने जीवनकाल में पिछड़े समुदायों में इस तरह के मध्यवर्ग के विकास को देखा और इस तरह के सामाजिक-राजनीतिक निर्माण के खिलाफ अपनी नाराजगी दर्ज कराई थी। ओबीसी और दलितों में ये जातियां, जिन्हें पहचान की इस राजनीति में प्रमुखता मिली, समाजवादी पार्टी और बहुजनसमाज पार्टी जैसे दलों में प्रभावी हो गईं।
उत्तर प्रदेश में तकरीबन 65 दलित समुदाय हैं, जिनमें से केवल चार या पांच समुदाय इस राजनीति की वजह से दिखाई देने लगे और जिन्होंने तकरीबन तीस साल शासन किया। ओबीसी में भी लगभग यही स्थिति है, यहां भी ओबीसी के चंद समुदायों को प्रमुखता मिली और बहुत सारी अन्य पिछड़ी जातियां और अति पिछड़ी जातियां अभी भी राजनीति और विकास के विमर्श में अदृश्य हैं। यहां तक कि ओबीसी और दलितों के दिखाई देने वाले इन समुदायों में से भी एक हिस्से को राज्य द्वारा शुरू और क्रियान्वित की गई विकास योजनाओं का लाभ मिला। इसलिए घरेलू संसाधनों और विकास के अवसरों का वितरण सही तरीके से नहीं हो सका और इसने ओबीसी और दलितों के बीच के बहुत सारे समुदायों के लिए अतिगरीबी और पिछड़ेपन को पैदा किया। इन प्रभावशाली जातियों का उभार पहचान की राजनीति के दौर में हुआ और इन्होंने ओबीसी और अनुसूचित जाति के अन्य समुदायों के बीच पहचान के संसाधनों का वितरण नहीं होने दिया।
प्रियंका गांधी द्वारा प्रस्तावित और समय-समय पर राहुल गांधी द्वारा परिभाषित नई राजनीति की टैगलाइन उन समुदायों, जो एसपी-बीएसपी के शासन के दौरान पीछे रह गए हैं, को पहचान और विकासात्मक संसाधनों के समान वितरण का वादा करती हुई प्रतीत होती है। कांग्रेस की नई राजनीति सामाजिक न्याय का न्याय संस्करण विकसित कर सकती है जो हाशिये के सभी लोगों, दलितों, पिछड़ी जातियों और पूरे समाज के गरीब तबकों को पहचान और विकासात्मक संसाधनों के समान वितरण को सुनिश्चित कर सकती है।
सामाजिक न्याय का यह नया संस्करण उत्तर प्रदेश में नई राजनीति विकसित करने के लिए गांधी, नेहरू, आंबेडकर, लोहिया और कांशीराम की अंतर्दृष्टि का रचनात्मक तरीके से इस्तेमाल कर सकता है। यह इन नेताओं और विचारकों के बीच के मतभेदों से बच सकता है और व्यापक एजेंडा के तहत सामाजिक न्याय के नए संस्करण को निर्मित करने के लिए इनके बीच की समानताओं की रचनात्मक तलाश की कोशिश कर सकता है।
नई राजनीति का यह वादा उत्तर प्रदेश में विभिन्न हिस्सों के लोगों के बीच नई उम्मीद पैदा कर सकता है और विभिन्न हिस्सों की आकांक्षाओं को शामिल करते हुए विकास की नई ट्रजेक्टरी परिभाषित कर सकता है और आकांक्षाओं और इच्छाओं की इन विविधताओं पर आधारित योजनाओं का पैकेज, योजनाएं और एजेंडा बना सकता है। उम्मीद है कि यह नई राजनीति समुदायों की विभिन्न आवाजों को गौर से सुन सकती है और बहुरंगी इच्छाओं को शामिल करना शुरू कर सकती है। नई राजनीति पुरानी कांग्रेस के भार से मुक्त हो सकती है, लेकिन इस नई राजनीति की कई अंतर्दृष्टियां कांग्रेस की पुरानी राजनीति से ली जा सकती हैं।
प्रियंका गांधी के आगमन ने उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच में उम्मीद जगाई है। इलाहाबाद में 70 वर्ष के एक बुजुर्ग उनमें इंदिरा की छवि देखते हैं। फूलपुर संसदीय क्षेत्र के एक युवक ने कहा कि उनसे बहुत उम्मीद है। हमें यह देखने की जरूरत है कि प्रियंका गांधी अपनी नई राजनीति को किस तरह से विकसित करने में सफल होती हैं, जो उत्तर प्रदेश को बदल सकती है। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ की एक युवा महिला यह जानकर बहुत खुश हुई कि प्रियंका गांधी भविष्य में उत्तर प्रदेश के विकास का नेतृत्व करेंगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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