विचार

खरी-खरीः आंतरिक इमरजेंसी’ के दौर से गुजरता मोदी का ‘नया भारत’

मोदी जी के नये भारत में विपक्ष का पाप तो पाप है, लेकिन सरकार का हर पाप, पुण्य है। बीजेपी प्रज्ञा ठाकुर जैसों को चुनाव जिताकर लाती है और कहीं चूं नहीं होती। वह बापू के हत्यारों की प्रशंसा करती है, सब सन्नाटा, लेकिन चिदंबरम की गिरफ्तारी प्राइम टाइम पर आती है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

यह जिक्र है पिछले सप्ताह का। कोई रात के नौ- साढ़े नौ बजे की बात होगी। साउथ दिल्ली की एक पॉश कॉलोनी जोर बाग के एक बंगले के बाहर टीवी चैनलों की दर्जनों ओबी वैन खड़ी हुई थीं। पत्रकारों का एक मजमा चीख-चीखकर प्राइम टाइम पर लाइव पी चिदंबरम के संबंध में समाचार दे रहा है। यकायक सीबीआई की एक टीम वहां पहुंचती है। देखते-देखते वह दीवार फांदकर चिदंबरम के घर में घुस जाती है। थोड़े समय के पश्चात सीबीआई टीम बाहर आती है। एक कार में चिदंबरम बैठे हैं, जो अब बंदी हैं। टीवी कैमरों की टीम उस कार की ओर दौड़ती है। कार कुछ जानबूझकर धीमी होती है। अब बंदी चिदंबरम का चेहरा सारे भारत की टीवी स्क्रीन पर प्रसारित होता है। देश में शोर मच जाता है कि चिदंबरम गिरफ्तार हो गए।

यह चिदंबरम कौन हैं और उनका पाप क्या था? जी हां, आप बिल्कुल ठीक समझे, यह वही चिदंबरम हैं जो कभी देश के वित्त मंत्री और गृह मंत्री रहे थे। आज मोदी सरकार उन्हें एक काले चोर की तरह पकड़ रही है। आखिर उनका पाप क्या है? सरकार और सीबीआई के अनुसार यूपीए सरकार के दौरान जब चिदंबरम वित्त मंत्री थे, उन्होंने आईएनएक्स नाम के एक टीवी चैनल को समाचार प्रसारण के लिए अनुमति दी थी, जिसके लिए चैनल ने चिदंबरम को करोड़ों की रिश्वत दी थी।

इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में सीबीआई और ईडी के खिलाफ चिदंबरम की एक अपील दो-तीन वर्षों से पड़ी हुई थी। दिल्ली हाईकोर्ट के जज साहब ने अपनी रिटायरमेंट से एक सप्ताह पूर्व उस याचिका को रद्द कर दिया। बस अब क्या था। सीबीआई चिदंबरम के घर चढ़ दौड़ी। अंततः उनको उनने घर में घुसकर एक मामूली चोर के समान पकड़ लिया और टीवी चैनलों के जरिये उसका प्रचार किया गया। मीडिया तो अब सरकार की जेब में है ही।

इस प्रकार चिदंबरम का चरित्रहनन किया गया। यह तब हुआ जबकि चिदंबरम अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर चुके थे। इस याचिका पर भारत के प्रधान न्यायाधीश स्वयं दो दिन बाद की तारीख लगा चुके थे। इसके बावजूद उस याचिका पर सुनवाई से पहले ही सीबीआई दनदनाती हुई चिदंबरम के घर में घुस गई और उनको बंदी बनाकर ले गई।

सरकार को निःसंदेह यह अधिकार है कि वह किसी भी आरोपी को जब चाहे गिरफ्तार करे। लेकिन जब किसी आरोपी की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगी है, तो उस मामले में सुनवाई से पहले उसको बंदी बना लेना न्याय की अवहेलना ही नहीं है, अपितु इससे यह भी स्पष्ट है कि दाल में कुछ काला अवश्य है। इस बात को समझने के लिए पिछले दो-तीन सालों में सीबीआई और ईडी की कार्यप्रणाली को जांचना होगा।

पड़ताल कीजिए, तो साफ नजर आता है कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को खामोश करने के लिए सीबीआई और ईडी तंत्र का उपयोग कर रही है और विपक्ष के ऐसे नेताओं की एक लंबी लिस्ट है जिसमें लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, मायावती, आजम खां और कांग्रेस के बड़े नेताओं के नाम शामिल हैं। सरकार का साफ ऐलान है, हमारे खिलाफ आवाज उठाई, तो सीबीआई आपको जेल में सड़ा देगी और ईडी रातों की नींद हराम कर देगी। इसके खिलाफ सरकार का साथ देने वाला विपक्षी नेता चाहे जो पाप करे उसका हर गुनाह माफ।

अभी कर्नाटक में कांग्रेस के तेरह विधायकों को न तो ईडी ने और न ही सीबीआई ने एक नोटिस तक भेजा। हद तो यह है कि एक एमएलए ने बीजेपी के पक्ष में वोट डालने के पश्चात खुलेआम 11 करोड़ की एक कार खरीदी, उसके सामने खड़े होकर अपनी तस्वीर खिंचवाई। लेकिन किसी सरकारी तंत्र ने उसके खिलाफ उंगली तक भी नहीं उठाई। सब जानते हैं कि कर्नाटक में बीजेपी सरकार विधायकों की सैकड़ों करोड़ की खरीद-फरोख्त से बनी हुई है। ‘हमारा भ्रष्टाचार पुण्य, विपक्ष का भ्रष्टाचार पाप’।

स्पष्ट है कि मोदी सरकार विपक्ष को ही नहीं लोकतांत्रिक मान्यताओं को समाप्त करने के लिए सीबीआई और ईडी का खुलेआम इस्तेमाल कर रही है। जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है, तबसे अपने प्रतिद्वंद्वियों को डंडे के जोर पर चुप करने के लिए सीबीआई और ईडी का इस्तेमाल इसी प्रकार कर रही है। इस कार्रवाई का पहला निशाना वे एनजीओ थे, जिन्होंने गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी के खिलाफ आवाज उठाई थी। तीस्ता सीतलवाड़ इसका मुख्य उदाहरण हैं।

मोदी सरकार जब से सत्तासीन हुई है तभी से तीस्ता के खिलाफ दर्जनों मामले खोल दिए गए हैं। अब उनकी आवाज बंद है। आवाज उठे तो उठे कैसे, जब सारा समय ईडी और अदालतों में ही कट रहा है। ऐसे दर्जनों सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो तीस्ता की तरह सीबीआई और अदालत के चक्करों में पड़े हैं और मोदी सरकार दनदना रही है। यही रणनीति विपक्ष के साथ अपनाई जा रही है।

जी हां, यह मोदीजी का नया भारत है। इस भारत में विपक्ष का पाप तो पाप है, लेकिन सरकार का हर पाप पुण्य है। हद तो यह है कि बीजेपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जैसी आरोपी को चुनाव जिताकर लाती है और कहीं चूं नहीं होती। वह बापू के हत्यारों की प्रशंसा करती हैं। कदापि एक भी टीवी एंकर उनके खिलाफ शोर नहीं मचाता है। इसके विपरीत चिदंबरम की गिरफ्तारी प्राइम टाइम पर लाइव प्रसारित की जाती है।

वह तो जाने दीजिए, जम्मू- कश्मीर का सारा विपक्ष जेल में है। वहां अनुच्छेद 370 की समाप्ति के पश्चात लगातार कर्फ्यू लगा हुआ है। हजारों लोगों के खाने-पीने, दवा-इलाज के लाले हैं, पर उन पर आंसू बहाने वाला भी कोई नहीं है। पूरा एक प्रदेश जेलखाने में परिवर्तित हो चुका है, जिसकी कोई आवाज नहीं है। लेकिन सरकार और मीडिया को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं होती है।

यह एक नया भारतवर्ष है। मोदीजी का नया भारत। अब इस भारतवर्ष में लोकतंत्र के नए मापदंड हैं। मोदी काल में लोकतंत्र में चुनाव तो होंगे, लेकिन चुनाव में मशीन की धांधली के खिलाफ चुनाव आयोग तो जाने दीजिए, कोर्ट-कचहरी, क्या सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई नहीं होगी। यदि कोई सरकारी प्रतिद्वंद्वी राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगा, तो कोर्ट उसकी तो तारीख लगा देगा और चिदंबरम की तरह सीबीआई को कार्रवाई जारी रखने की इजाजत भी देगा। एक समय था कि भ्रष्टाचार के टूजी एवं कॉमनवेल्थ गेम्स में समाचारों के आधार पर भ्रष्टाचार के मामले में सरकार के खिलाफ नोटिस हो रहा था। अब उसी सुप्रीम कोर्ट को कर्नाटक में सरकार गिराने और बनाने की कवायद में कोई भ्रष्टाचार नहीं दिखाई पड़ रहा है।

उधर, संसद का जो हाल है वह स्पष्ट है। सरकार ने एक सत्र में विपक्ष को ब्लैकमेल कर जितने आपत्तिजनक विधेयक पास करवा लिए, लोकतंत्र में उसका उदाहरण जल्दी नहीं मिल सकता है। कार्यपालिका तो सकते में है। उसको पीएमओ से जो आदेश मिल रहे हैं वह उसका पालन कर रही है। उसे संवैधानिक मान्यताएं नहीं सरकार के इशारे अधिक मान्य हैं। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया की बात न ही की जाए, तो अच्छा है। टीवी चैनलों पर प्राइम टाइम में बैठे एंकर मदारियों की तरह सरकार की डुगडुगी पर देश में झूठ और नफरत का जो जाल बुन रहे हैं वह भी एक अनूठी मिसाल है।

संसद सरकार की मुट्ठी में। न्यायपालिका की आंखों पर पट्टी। कार्यपालिका सरकार के इशारों पर। मीडिया एक स्वर में सरकार की वाहवाही में व्यस्त। विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता कोर्ट-कचहरी की दौड़ में व्यस्त या जेल की सलाखों के पीछे नजरबंद। यदि यह कहा जाए कि भारतवर्ष इस समय एक अनकही ‘आंतरिक इमरजेंसी’ के दौर से गुजर रहा है, तो कदापि यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। बस यही है मोदी का ‘नया भारत’।

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