नेपाल ने अचानक 1816 की सुगौली संधि का मसला उछालकर एक सौ साल पुराने दस्तावेज़ को भारत-नेपाल रिश्तों में नई खटास डाल दी है। नेपाल और ईस्ट इंडिया शासित भारत की सीमायें तय करने वाली इस बहुत महत्वपूर्ण संधि पर दिसंबर 1816 में बिहार के सुगौली में दस्तखत किये गये थे। इसके तहत अंग्रेज़ों की मांग पर कुछ दिन तक हिचकिचाहट के बाद कर्नल आक्टरलोनी की सेनाओं से अल्मोड़ा के पास 1914-16 से काठमांडू तक फैली लड़ाई में बड़ी हार के बाद कुमायूं (अब उत्तराखंड) में गोरखा राज का सफाया कर काठमांडू से कुल 30 मील दूर तक अंग्रेज़ी राज की सीमा का विस्तार कर दिया।
इस हार के बाद नेपाल ने महाकाली नदी को सीमा मान कर मार्च 1816 में हिमालयीन क्षेत्र से सटा सारा तराई इलाका और पश्चिम में काली नदी के इस पार तथा पूर्व में सिक्किम तक का सारा इलाका कंपनी शासित भारत को देना स्वीकार किया और साथ ही अपनी राजधानी काठमांडू में ब्रिटिश रेज़ीडेंट की नियुक्ति को भी मंज़ूरी दे दी। इसके बाद 1860 तथा 1875 में ब्रिटिश सरकार ने भी मोटामोटी इस संधि को बल दिया और भारत नेपाल सीमा निर्धारण का दस्तावेज माना।
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अब अचानक नेपाल ने (भारत द्वारा पिछले साल जारी नक्शे पर) सुस्ता और कालापानी इलाका भारत में दिखाये जाने पर आपत्ति जताई है। उसका कहना है कि यह नक्शा भारत नेपाल के औपनिवेशिक इतिहास से मिली विरासत है। अगर भारत बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद पर नई पहल कर सकता है तो नेपाल से क्यों नहीं ? सुगौली की संधि के मूल नक्शे के अनुसार काली नदी का उद्गम कालापानी गांव (उत्तराखंड नहीं) से हुआ। नेपाल का दावा है कि वह गलत है। काली नदी का स्रोत तो लिपुलेख दर्रा है। अगर वह मान लिया जाये तो कालापानी नेपाल का हिस्सा बैठता है। नेपाल नेतो 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद मित्र होने के नाते भारत को वहां सैनिक रखने की इजाज़त भर दी थी।
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दरअसल 40 कि.मी का यह हिस्सा जिसमें कालापानी और सुस्ता साइड का लिपुलेख दर्रा शामिल है, सामरिक नज़रिये से बहुत महत्व रखता है। यहां भारत नेपाल और चीन तीनों की सरहदें मिलती हैं, और यहां स्थित लिंपिया धुरा से सीमा सशस्त्र बल की मदद से भारत चीनी सेना की सीमा पर गतिविधियों पर नज़र रखता आया है। यह दावा आगे क्या मोड़ लेता है देखना रोचक रहेगा।
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गौरतलब है कि नेपाल ने अपने जिस राजनीतिक नक्शे को मंजूरी दी है उसमें तिब्बत, चीन और नेपाल से सटी सीमा पर स्थित भारतीय क्षेत्र कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया है। नेपाल ने ये तक कहा है कि इस नक्शे को अब सभी सरकारी दस्तावेजों, किताबों में यही नक्शा पढ़ाया जाएगा और आम लोग भी इसका ही इस्तेमाल करेंगे। इसके अलावा देश के प्रतीक चिन्हों पर भी अब से यही नक्शा होगा।
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