विचार

कोरोना काल में सामाजिक-आर्थिक विषमता नहीं कम की गई तो होंगे भयावह नतीजे, वैश्विक एजेंसियों ने जताई चिंता

विभिन्न देशों और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों ने विषमता कम करने के लिए समुचित कदम उठाए होते तो कोविड के दौर में कमजोर तबकों को इतना दुख-दर्द न सहना पड़ता, जितना उनको सहना पड़ा है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

वैसे तो विषमता कम करना सभी स्थितियों में महत्त्वपूर्ण है, पर अधिक कठिन समय में भूख और गरीबी कम करने के लिए यह और भी जरूरी हो जाता है। इस समय कोविड-19 के कारण दुनिया ऐसे ही कठिन दौर से गुजर रही है। इन दिनों विषमता के हालात पर आक्सफैम व डेवेलैपमेंट फिनेक्स इंटरनेशनल के नए विश्लेषण ने चिंता व्यक्त की है कि कोविड-19 के दौर में विश्व स्तर पर विषमता कम करने में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं की है।

इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पहले विभिन्न देशों व अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों ने विषमता कम करने के लिए समुचित कदम उठाए होते तो कोविड के दौर में कमजोर तबकों को इतना दुख-दर्द न सहना पड़ता जितना उनको सहना पड़ा है। पर हाल के वर्षों में विषमता कम करने में अधिकांश देशों में विफलता या कम सक्रियता देखी गई, व इसकी महंगी कीमत कोविड दौर में चुकानी पड़ी।

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यह विषमता केवल आर्थिक स्तर पर ही नहीं है अपितु सामाजिक स्तर पर यानि जाति, धर्म, नस्ल, रंग, लिंग आदि स्तर पर भी है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में श्वेत परिवारों में 10 में से 7 को स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध है जबकि अफ्रीकन-अमेरिकन (ब्लैक) परिवारों में 10 में से मात्र 1 परिवार को ही स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध है।

कुछ देशों ने कोविड के दौर में विषमता कम करने के स्थान पर विषमता बढ़ाने वाले कदम उठाए हैं। केन्या ने सबसे धनी व्यक्तियों व बिजनेस पर इसी दौर में टैक्स कम कर दिए जिससे निर्धन वर्ग की सहायता के लिए कम संसाधन उपलब्ध होंगे। अधिकांश देशों में स्वास्थ्य के लिए बजट कम होने, सामाजिक सुरक्षा कमजोर होने व मजदूर अधिकारों को मजबूती न देने के कारण निर्धन वर्ग अधिक विकट स्थिति में है जिससे कोविड के दौरान निर्धन वर्ग को बहुत गंभीर समस्याएं सहनी पड़ी हैं।

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अभी दुनिया कठिन दौर से बाहर नहीं निकली है और यह बहुत जरूरी है कि इस दौर का दुख-दर्द कम करने के लिए सभी सरकारें और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान विषमता कम करने की नीतियों को अपनाएं। इस समय विश्व की जो स्थिति है उसमें तो यह लग रहा है कि इस दौर में विषमताएं पहले से और बढ़ रही हैं अतः नीतिगत स्तर पर उचित व न्यायसंगत फैसले लेकर शीघ्र ही विभिन्न सरकारों व अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों को विषमता कम करने के असरदार व ठोस कदम उठाने चाहिए।

उन्हें टैक्स, सार्वजनिक खर्च व मजदूर नीतियों में इस संदर्भ में जरूरी सुधार करने चाहिए। अधिक धनी कंपनियों व व्यक्तियों पर टैक्स बढ़ने चाहिए व टैक्स चोरी को रोकना चाहिए। स्वास्थ्य, शिक्षा व सामाजिक सुरक्षा पर सार्वजनिक निवेश बढ़ाना चाहिए। सरकारी खर्च में पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए व ऐसे अन्य प्रयास होने चाहिए जिनसे खर्च उचित प्राथमिकताओं के अनुकूल हो। महिलाओं के कार्य के लिए सुरक्षा कम होती है अतः उनके रोजगार की सुरक्षा व व्यापक हितों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आर्थिक विषमता के साथ लिंग-आधारित विषमता व अन्य तरह की सामाजिक विषमता (जैसे जाति, धर्म, नस्ल व रंग आदि पर आधारित विषमता) को दूर करने पर भी समुचित ध्यान देना चाहिए।

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नीति स्तर पर विषमता को अधिक व असरदार स्थान देने के लिए यह भी जरूरी है कि विभिन्न तरह की विषमता पर ठीक व प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध हो। यह जानकारी व आंकड़ों का आधार उपलब्ध करवाने के लिए जरूरी प्रयास करने चाहिए। विभिन्न प्रस्तावित नीतियों का आकलन इस दृष्टि से भी होना चाहिए कि इनका विषमता पर क्या असर पड़ेगा तथा इस आकलन के आधार पर विषमता कम करने वाली नीतियों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

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इस संदर्भ में विभिन्न सरकारों व अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों का सहयोग बढ़ना चाहिए। विशेष तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा संस्थान जैसे प्रमुख संस्थानों को निर्धन व विकासशील देशों को कर्ज में राहत देने के लिए व इन देशों का कर्ज व ब्याज अदायगी का बोझ कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विषमताएं कम होनी चाहिए।

विषमता कम करने का एजेंडा इन दिनों बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है और इसे एक मुख्य प्राथमिकता बनाना चाहिए। विषमता कम होने से केवल सबसे गरीब वर्गों को राहत ही नहीं मिलती है अपितु उनके हाथ में क्रय शक्ति आने से व क्रय शक्ति का आधार अधिक व्यापक होने से आर्थिक संवृद्धि की संभावनाएं भी बेहतर होती हैं। भारत सहित अनेक विकासशील देशों में इस समय इसकी बहुत जरूरत भी महसूस की जा रही है।

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