वर्ष 2019 में जब एक संस्था ने भारत को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश घोषित किया था, तब यहां सत्ता में बैठे लोगों ने रिपोर्ट पर कई सवाल खड़े कर उसे नकार दिया था और कहा था कि यह भारत की छवि बिगाड़ने की साजिश है। संसद और विधान सभाओं में महिला आरक्षण के सन्दर्भ में दिल्ली में धन्यवाद मोदी जी के पोस्टर लगाए गए और मीडिया में मोदी जी को महिलाओं का मसीहा साबित करने की होड़ लग गयी। पर, इसी मीडिया ने कभी मोदी जी से यह सवाल नहीं किया कि मणिपुर हिंसा के भड़कने के 80 दिनों बाद तक भी क्यों मोदी जी वहां महिलाओं पर हिंसा के मामले में खामोश रहे, फिर एक वक्तव्य दिया और फिर खामोश हो गए?
इसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने और सत्ता ने हाल में ही नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम प्रकाशित आंकड़ों पर भी गहरी चुप्पी साध ली है जिसमें बताया गया है कि वर्ष 2021 की तुलना में महिलाओं पर अत्याचार के मामले वर्ष 2022 में 4 प्रतिशत बढ़ गए हैं और दिल्ली जहां क़ानून व्यवस्था की जिम्मेदारी सीधे भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन है देश में महानगरों में महिलाओं के लिए सबसे अधिक असुरक्षित है। प्रधानमंत्री जी के महिलाओं की सुरक्षा के दावों के बीच एनसीआरबी के आंकड़े बताते है कि हमारे देश में वर्ष 2022 में औसतन हरेक घंटे महिलाओं पर अत्याचार से संबंधित 55 मामले दर्ज किए जाते हैं।
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एनसीआरबी के अनुसार वर्ष 2020 में देश में महिलाओं पर अत्याचार के 371503 मामले दर्ज किए गए थे, फिर वर्ष 2021 में 428278 मामले दर्ज किए गए, जबकि वर्ष 2022 में दर्ज मामलों की संख्या बढ़कर 445256 तक पहुंच गई। अब सरकार की तरफ से दलील दी जा रही है कि दरअसल महिलाओं पर अत्याचार नहीं बढ़ा है बल्कि अब मामले आसानी से दर्ज किए जाने लगे हैं। दूसरी तरफ महिलाओं पर अत्याचार के जबभी बड़े मामलों की मीडिया में गूंज सुनाई देती है, तब हरेक पीडिता या फिर उसके संबंधी यही बताते हैं कि पुलिस ने उनका मामला दर्ज नहीं किया है, या फिर बड़ी भागदौड़ के बाद दर्ज किया है।
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सीधा केंद्र सरकार के नियंत्रण में आने वाली दिल्ली पुलिस के राज में हरेक दिन औसतन बलात्कार के 3 मामले सामने आते हैं। देश के 19 बड़े शाहों में होने वाले कुल महिला अत्याचार के मामलों में से 29 प्रतिशत मामले अकेले दिल्ली में दर्ज किए जाते हैं। महिलाओं पर अत्याचार की दर प्रति एक लाख महिलाओं में अत्याचार झेलने वाली महिलाओं के संख्या के आधार पर तय की जाती है। देश में यह दर 66.4 है, पर दिल्ली में दर 144.4 है, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग 2.2 गुना अधिक है। दरअसल दिल्ली में पुलिस की प्राथमिकताएं बदल गई हैं, अब पुलिस का सरोकार जनता की सुरक्षा से नहीं बल्कि सत्ता में बैठे आकाओं के प्रति वफादारी जताने से है। अब पुलिस बलात्कार या महिलाओं पर हिंसा जैसे मामलों पर ध्यान देने के बदले विपक्ष या सत्ता के विरोधियों की गतिविधियों पर कानूनी-गैरकानूनी नजर रखने और उन्हें प्रताड़ित करने का काम करने लगी है। कोई बलात्कारी सीसीटीवी के फुटेज के बाद भी पकड़ा जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है, पर सरकार के विरोध में आवाज उठाने वाले को उसके मोबाइल और लैपटॉप सहित पकड़ने में इस बहादुर पुलिस बल को कोई समय नहीं लगता है।
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प्रधानमंत्री जी ने जुलाई में संसद के बाहर मीडिया के सामने मणिपुर हिंसा के दौर की तबतक होने वाली 140 से अधिक हत्याओं को केवल एक वीडियो में विलीन कर दिया। उन्हें मणिपुर हिंसा या सामाजिक अशांति से कोई परहेज नहीं है, पर महिला उत्पीड़न पर वही रटी-रटाई स्क्रिप्ट और भौंडा अभिनय देखने को मिला था। उन्होंने कहा, उन्हें दुख है गुस्सा भी है, पूरा देश इस घटना से शर्मसार है। इसके बाद फिर वही ऑफ-ट्रैक वक्तव्य–दोषियों को सख्त सजा मिलेगी। प्रधानमंत्री जी को महिला उत्पीड़न पर यदि सही में दुःख और गुस्सा आता है, पूरा देश यदि ऐसी घटनाओं से सही में शर्मसार होता है- तब इस दुःख, गुस्सा और शर्म का इजहार हरेक दिन कम से कम 88 बार होना चाहिए क्योंकि नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हरेक दिन औसतन 88 महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं। यह केवल पुलिस थानों में दर्ज आंकड़े हैं, जाहिर है बलात्कार के मामले इससे बहुत अधिक होंगे।
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ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2022 में बलात्कार के कुल 31982 मामले, वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार देश में कुल 31677 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, जबकि वर्ष 2020 में यह संख्या 28046 थी। मोदी राज में ऐसे अपराध इतने व्यापक तरीके से किए जाने लगे हैं कि जनता को अब किसी ऐसी घटना पर शर्म नहीं आती। बलात्कार के सन्दर्भ में पहले स्थान पर राजस्थान है, पर इसके बाद के स्थानों पर बीजेपी शासित राज्य – उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा हैं। बलात्कार के मामले में केवल बीजेपी शासित राज्य ही सबसे आगे नहीं हैं बल्कि क़ानून और व्यवस्था के सन्दर्भ में केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में आने वाले केंद्र शासित प्रदेशों में भी यही स्थिति है। बलात्कार के मामलों में सबसे आगे दिल्ली है और दूसरे स्थान पर जम्मू और कश्मीर है। बलात्कार के अलावा देश में 250 ऐसे मामले दर्ज किए गए जहां सामूहिक बलात्कार या बलात्कार के बाद पीड़िता की हत्या कर दी गई।
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एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार देश में केवल महिलाओं पर अत्याचार और हिंसा में ही बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है, बल्कि बच्चे, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी भी पहले से अधिक असुरक्षित हो गयी है। देश में प्रति एक लाख महिलाओं में से औसतन 66.4 महिलाएं अत्याचार झेलती हैं पर 12 राज्यों में यह दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। इन राज्यों में सबसे आगे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश है। देश में महिलाओं से संबंधित जितने मामले दर्ज होते हैं, उनमें से आधे से अधिक इन पांच राज्यों में ही दर्ज किए जाते हैं। महिलाओं पर अत्याचार के कुल मामलों में से 31.4 प्रतिशत मामलों में अत्याचार करने वाला नजदीकी संबंधी ही था, जबकि 19.2 प्रतिशत मामले अपहरण के, 18.7 प्रतिशत मामले स्त्रीत्व को ठेस पहुचाने के और 7.1 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे।
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नेशनल कमीशन फॉर वीमेन के अनुसार वर्ष 2022 में 31000 शिकायतें दर्ज की गईं थीं, यह संख्या वर्ष 2014 के बाद से सर्वाधिक संख्या है। इन शिकायतों में से 54.5 प्रतिशत शिकायतें अकेले उत्तर प्रदेश से संबंधित हैं। कुल 1623 शिकायतें पुलिस के विरुद्ध हैं – जहां पुलिस ने या तो मामला दर्ज नहीं किया या फिर हवालात में महिलाओं का उत्पीड़न किया।
मोदीराज में केवल महिलाओं पर अपराध ही नहीं बढ़े हैं बल्कि महिलाएं हरेक स्तर पर समाज में पिछड़ रही हैं और पितृसत्तात्मक सोच समाज पर पहले से अधिक हावी होती जा रही है। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा जारी किए गए वर्ष 2023 के जेंडर गैप इंडेक्स में कुल 146 देशों की सूचि में भारत 127वें स्थान पर है। हमारे पड़ोसी देशों में केवल पाकिस्तान ही 142वें स्थान पर है, यानि हमसे भी पीछे है। इस इंडेक्स में बांग्लादेश 59वें, भूटान 103वें, चीन 107वें, श्रीलंका 115वें और नेपाल 116वें स्थान पर है।
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इक्वल मीजर्स 2030 नामक एक गैर-सरकारी संस्था, सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स जेंडर इंडेक्स नामक रिपोर्ट को हरेक वर्ष प्रकाशित करता है। संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स में लैंगिक समानता भी शामिल है और 193 देशों ने, जिसमें भारत भी शामिल है, इसपर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अनुसार वर्ष 2030 तक हरेक देश को अपने यहां लैंगिक असमानता समाप्त करना है। इक्वल मीजर्स 2030 ने इसी सन्दर्भ में वर्ष 2022 के दौरान 144 देशों में लैंगिक समानता के आकलन के आधार पर एक इंडेक्स तैयार किया है। इसमें लैंगिक समानता की स्थिति के आधार पर देशों को 0 से 100 के बीच अंक दिए गए हैं – 100 अंक सबसे अधिक समानता और 0 कोई समानता नहीं दर्शाता है। इस इंडेक्स के अनुसार 144 देशों की सूची में भारत 91वें स्थान पर है और इसे 64 अंक दिए गए हैं।
हमारे प्रधानमंत्री जी के लिए चुनाव जीतना ही एकमात्र लक्ष्य है, फिर जनता जी रही है या मर रही है इससे फर्क ही क्या पड़ता है? अब तो लगता है कि देश की महिलाओं को भी महिलाओं पर बढ़ाते अत्याचार से कोई फर्क नहीं पड़ता है। जनता के लिए भी राम मंदिर और हिन्दू-मुस्लिम का ध्रुवीकरण ही सबसे बड़ा मुद्दा है।
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