दांतों में समस्या हुई तो मन में सवाल उठा कि आदमी के अमूमन बत्तीस दांत ही क्योंं होते हैं? सोलह या आठ या नौ या चौदह या सत्ताइस क्योंं नहीं होते? बहुत फालतू- सा, बेहद गैरजरूरी सा सवाल है, मगर सवाल तो है। मन हमारा है, तो सवाल भी हमारा होगा, मोदी जी का क्यों होगा? वैसे मुझे इस सवाल का जवाब मिला नहीं। मिल भी नहीं सकता था। पूछता तो मिलता न?
वैसे न पूछने का भी ठोस कारण है। चाहे सवाल मेमने- सा मासूम हो, जिससे सरकार का क्या, दांतों के डाक्टर का भी कुछ न बिगड़ता हो, मगर आजकल सवाल कोई भी हो, उसे उठाना खतरनाक है। मोदी जी को हमेशा खतरा रहता है कि जिसके मन में आज यह फालतू सा सवाल उठा है, कल उसके मन में खतरनाक सा सवाल भी उठ सकता है, इसलिए हर सवाल का गला घोंटो! यही वजह है कि आजकल लोग सवाल पूछने की जहमत कम उठाते हैं!
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आजकल यह किसी पर बंदूक, पिस्तौल चलाने से, बम फेंकने से ज्यादा बड़ा और खतरनाक हो चला है। कोई किसी की जान लेकर तो फिर भी बच सकता है, मगर सवाल पूछ कर नहीं। हत्या का दोषी सबूतों के अभाव में अदालत से बरी हो सकता है, मगर सवाल पूछने का दोषी नहीं। सवाल पूछने के प्रमाण को साबित करना कठिन नहीं। इसके बाद कोई ताकत आपको मोदी-शाह के प्रकोप से बचा नहीं सकती। कोरोना के प्रकोप से जो बच गए हैं, वे भी सावधान रहें!
दांतों वाला निरामिष सा सवाल भी मैंने इसीलिए सार्वजनिक रूप से नहीं उठाया। पता नहीं, मोदी सेना क्या सोचती! जो इस सरकार से सवाल पूछने के सख्त खिलाफ हैं, वे कहते क्यों बे, सवाल पूछने की औलाद, सारे सवाल तुझे आज ही सूझ रहे हैंं? पिछली सरकारों के समय तेरा यह मन छुट्टी पर चला गया था क्या? इसे सांप सूंघ गया था क्या? तब तो तेरी हिम्मत नहीं हुई और आज तू सवाल पर सवाल दागे जा रहा है? यह किसके इशारे पर कर रहा है, हम जानते नहीं क्या? बेवकूफ समझ रखा है हमें? पाकिस्तान और कांग्रेस से तेरी मिलीभगत हमसे छुपी है क्या?
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लगता है, तू अपने को कुछ ज्यादा ही अकलदार समझने लगा है? तेरी सारी अकल एक मिनट में झाड़ दी जाएगी। तू साला अर्बन नक्सली, खालिस्तानी। आजकल तेेरे जैसे फालतू लोग लोकतंत्र का अधिक ही फायदा उठा रहे हैं। जल्दी ही अदालत के सामने तेरे खिलाफ सबूत पेश किए जाएंगे और तेरी हवा निकाल दी जाएगी। तू मोदी जी को लल्लू समझता है क्या? तेरे जैसे को तो इधर देख मेरी तरफ, वे यूं ही चुटकियों में निबटा देते हैं। किसी मुगालते में मत रहना। समझे? हिंदी में समझा रहे हैं। अंग्रेजी में समझना चाहता है क्या? अरे हम फ्रेंच में भी समझाना जानते हैं। अपने पजामे में रह। फिर पूछ रहे हैं समझा कि नहीं?
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बात और आगे बढ़ाई जाती है। कहा जाता है कि जनता ध्यान दे कि इस नाजुक मौके पर ये सवाल आखिर किसके इशारे पर उठाए जा रहे हैं? जब पश्चिम बंगाल, केरल, असम और तमिलनाडु में चुनाव हो रहे हैं, तब ऐसे सवाल उठाने का मतलब छुपा नहीं है। देश विरोधी विपक्षी ताकतों को मजबूत करना, राष्ट्रवादी बीजेपी को हराने का षड़यंत्र रचना इसका उद्देश्य है। जब कोरोना की वैक्सीन लगाने का अभियान मोदी जी की तस्वीर के कारण जोरों पर है, तब उसमें बाधा डालना, देश को कोरोना के जाल में फसाए रखना है। जब कथित किसान दिल्ली की सीमा पर करीब चार महीने से धरना दिए बैठे हैं, तब उन्हें सरकार के विरुद्ध भड़काना है!
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इरादे तुम्हारे एकदम पानी की तरह साफ हैंं। ये इस सरकार को अस्थिर करने की साजिश है। इसके लिए ऐसे लोगों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो कथित तौर पर लेखक हैं। सरकार असली लेखकों का बहुत सम्मान करती है, मगर कथित लेखकों की पुंगी बजाना भी जानती है। इसलिए लेखक इनसे दूर रहें वरना उनकी भी एक दिन पुंगी बज जाए, तो हमें न कहना कि पहले बताया नहीं था! लेखकों को समझना चाहिए कि विपक्ष के पास अब कोई सवाल नहीं बचा है। वह लेखकों की आड़ लेकर अब अपना खेल, खेल रहा है। वैसे जनता विपक्ष की चाल अच्छी तरह समझ चुकी है। वह इनके भड़कावे में नहीं आने वाली, फिर भी हम चेतावनी देते हैं, बंद करो ये बकवास वरना ठीक न होगा!
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सरकार को मालूम है कि ऐसे मासूम और व्यर्थ सवालों को बढ़ावा देकर विपक्ष एक ऐसा वातावरण बनाना चाहता है, जिसमें सवाल उठते रहें और सरकार जवाब देने में फंसी रहे। ये एक दिन ऐसी स्थिति लाना चाहते हैं, जिसमें ऐसे सवाल पूछे जाएं कि सरकार जवाब दे तो भी फँंसे और न दे तो भी फंसे। ऐसी सभी ताकतों का सिर सख्ती से कुचल दिया जाएगा!
यह सब सोचकर मैंने दांत का दर्द सहना अधिक उचित समझा है और दांतों की संख्या तक का सवाल फिलहाल मई, 2024 तक के लिए स्थगित कर दिया है। आप बुरा तो नहीं मान गए? मान गए हों तो एक गिलास ठंडा पानी पीएं, आपके मन की बात को शांति मिलेगी।
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