एक ऐसा नेता जो विदेशी मेहमानों के साथ झप्पियां लेने और गर्मजोशी से हाथ मिलाने के लिए जाना जाता हो, वह अगर सिर्फ ‘दूर से सलाम’ का फार्मूला अपनाने लगे तो क्या अर्थ निकाला जाए। प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी किसी विदेशी मेहमान के साथ झप्पियां लेतें और मजबूती से हाथ मिलाते आखिरी बार अहमदाबाद में नजर आए थे, जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत दौरे पर थे। लेकिन अब वे सिर्फ दूर से सलाम कर रहे हैं। और, हां ध्यान रहे इसका कोरोनावायरस से कुछ लेना देना शायद ही है। दरअसल जब रिश्तों में गर्माहट कम होने लगती है तो गले मिलने के बजाय दूर से नमस्ते ही किया जाता है और देशों और राष्ट्राध्यक्षों के संदर्भ में इसके गहरे कूटनीतिक अर्थ होते हैं।
अभी इसी महीने 13 मार्च को ब्रुसेल्स में होने वाली इंडिया-ईयू सम्मिट में शामिल होने का कार्यक्रम मोदी ने 5 मार्च को रद्द कर दिया। जबकि यह तथ्य है कि बेल्जियम में कोरोनावायरस के लक्षण अभी तक नजर नहीं आए हैं। इसी तरह 9 मार्च को उन्होंने अपनी 17 मार्च को प्रस्तावित बांग्लादेश यात्रा भी रद्द करने का ऐलान कर दिया। हां, यहां (बांग्लादेश में) जरूर कोरोनावायरस के कुछ मामले सामने आए हैं। मोदी को बांग्लादेश के राष्ट्रपता शेख मुजीबुर्रहमान के शती समारोह में हिस्सा लेना था।
हो सकता है प्रधानमंत्री को उनके चिकित्सकों ने स्वास्थ्य कारणों से विदेश यात्राएं न कनरे की सलाह दी हो। लेकिन कोरोनावायरस की आड़ में उन्हें विदेशों हो रही दिल्ली दंगों से हो रही छीछालेदार से बचने का मौका जरूर दे दिया है। ध्यान रहे कि यूरोपीय संसद में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आने वाल प्रस्ताव को टालने में भारत को बड़े पैमाने पर कूटनीतिक और राजनयिक पापड़ बेलने पड़े थे।
यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि मोदी जी तो प्रीक्वेंट फ्लायर हैं, यानी वे तो लगातार देश के बाहर जाने के लिए हवाई सफर करने के आदी हैं, लेकिन पिछले साल 11 दिसंबर को सीएए पास होने के बाद से एक बार भी देश के बाहर नहीं गए हैं। उनके ‘दोस्त’ जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अपना गुवाहाटी सम्मिट का दौरा उस वक्त रद्द कर दिया था जब पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। इस सम्मिट के दौरान जापान पूर्वोत्तर के विकास के लिए करीब 13,000 करोड़ रुपए के निवेश का ऐलान करने वाला था।
इसके बाद से मोदी के विदेशी मेहमानों में पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एँटोनियो कोस्टा, ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ही भारत आए हैं। अभ 7 मार्च को पीएम मोदी ने साफ किया कि लोग अफवाहों पर ध्यान न दें, लेकिन उन्हें ध्यान नहीं रहा कि हाथ न मिलाने के उनके सुझाव से भय और चर्चा उनके ब्रुसेल्स की यात्रा रद्द किए जाने से हुई।
रोचक है कि इस दौरान 8 मार्च को भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टी-20 वर्ल्ड कप का फाइनल मेलबर्न में खेला। ऑस्ट्रेलिया में कोरोनावायरस के कई मामले सामने ने के बावजूद टूर्नामेंट चलता रहा। अब तक ऑस्ट्रेलिया में कोरोना से तीन लोगों की मौत की भी खबर आई है।
भारत में सभी प्रधानमंत्री मोदी और सभी सांसद, संसद की कार्यवाही से लेकर तमाम कार्यक्रमों में पहले से तय तारीखों पर शामिल हो ही रहे हैं। लाखों छात्र-छात्राएं सीबीएसई, आसीएसई और दूसरे राज्यों के बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं।
यह भी गौर करने लायक है कि कोरोना का पहला केस भारत के केरल में 30 जनवरी को सामने आया था, लेकिन फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 24-25 फरवरी को भारत आए। इतना ही नहीं अहमदाबाद के नवनिर्मित मोटेरा स्टेडिय में एक लाख से ज्यादा लोग जमा भी हुए।
जब दुनिया भर का मीडियो कोरोनावायरस को लेकर लोगों को जरूरत से ज्यादा समझा रहा था, तो फिर आखिर इस वायरस की आहट के दो महीने बाद प्रधानमंत्री को क्या जरूरत आन पड़ी कि वे लोगों को दूर से ‘नमस्ते करने’ की सलाह दें। वे यह भी कह रहे हैं कि अफवाहों पर ध्यान न दें और शांति रहें, घबराएं नहीं।
अब लोगों को इतनी समझ तो है ही आखिर अचानक कोरोनावायरस को लेकर इतनी चर्चा क्यों हो रही है। लोग समझ रहे हैं कि ये सब इसलिए किया जा रहा है ताकि लोग दिल्ली दंगों, यस बैंक की बदहाली और डूबती अर्थव्यवस्था की चर्चा न करें। किसी भी देश के प्रधानमंत्री से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे मामलों पर विचार करे, न कि कोरोनावायरस जैसे मुद्दों पर भाषण दे, जिसके बारे में एक्सपर्ट काफी कुछ पहले ही कह चुके हैं।
और कोई यह अपेक्षा तो नहीं करता कि प्रधानमंत्री लोगों को बताएं कि अभिवादन के लिए हाथ मिलाना है या नमस्ते कहना है या सलाम कहना है। प्रधानमंत्री कोई स्कूल टीचर तो हैं नहीं कि बच्चो को बताएं कि परीक्षा की तैयारी कैसे करनी है, यह टीचर का ही काम है।
प्रधानमंत्री का काम और भूमिका तो बहुत विस्तृत और वृहद होती है। उनका काम है बिगड़ती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना, विदेश नीति की चुनौतियों को सुलझाना, स्वास्थ्य और शिक्षा का स्तर बेहतर करना आदि आदि।
लेकिन जब आर्थिक मोर्चे की चुनौतियों का कोई तोड़ उनके पास नहीं है, तो वे लोकप्रियता बटोरने के लिए नमस्ते करना सिखा रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री जी, ‘नेशन वांट्स टू नो’ कि यस बैंक, दिल्ली दंगे, गिरते रुपए, बदहाल होती अर्थव्यवस्था पर आपकी क्या राय है।
कोरोना क्या है और इसके खतरे और उपाय तो ‘नेशन ऑलरेडी नो’
(यह लेखक के अपने विचार हैं, और नवजीवन का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)
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