यकीन ही नहीं हो रहा कि वोरा जी नहीं रहे। अभी कई 10-15 दिन पहले ही मेरे पास उनका फोन आया था और उन्होंने कहा था कि अगर वक्त हो तो कल 12 बजे आ जाइए। मैं अगले दिन तय वक्त पर पहुंच गया। वह अपने कमरे में कुर्सी पर बैठे थे। सर्दी बहुद थी। उनके कमरे में दो हीटर ऑन थे। कमरा गर्म था। वह कुछ ही वक्त पहले अस्पताल से वापस आए थे। लेकिन उस दिन सेहत बहुत अच्छी लग रह थी। मुझे बराबर की कुरसी पर बिठाया। बोले, “भाई अहमद पटेल गुज़र गए और उनकी मौत ने मुझे बिल्कुल तन्हा कर दिया है।” पास रखी हुई कुर्सी की तरफ इशारा करके बोले, “अभी अस्पताल जाने से पहले अहमद भाई आए थे और इस कुर्सी पर बैठे मेरी तबीयत पूछ रह थे।” उनको अहमद भाई के गुज़र जाने का बहुत सदमा था। घड़ी-घड़ी यही कह रहे थे कि अहमद मुझको अकेला छोड़ गए। लगता है कि अहमद भाई का सदमा उनसे बरदाश्त नहीं हुआ और वह जल्द ही अपने दोस्त के पास चले गए।
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लेकिन, खुदा जाने कांग्रेस पार्टी पर यह क्या आफत आई है कि एक महीने के अंदर पार्टी के तीन स्तंभ नहीं रहे। पहले असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई गए, फिर कोई 10 दिन बाद अहमद पटेल नहीं रहे और अब मोतीलाल वोरा जी भी चले गए। निश्चित रूप से यह कांग्रेस के लिए बड़ा धक्का है। वोरा जी यूं तो बुजुर्ग हो गए थे। उनकी उम्र 90 बरस से ज्यादा हो चुकी थी। लेकिन, वह आज भी कांग्रेस के लिए वे ही युवा थे जैसे कभी अपनी जवानी के दिनों में थे। उनकी हर सांस कांग्रेस के लिए थी।
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वोरा जी सरकार और पार्टी दोनों में उच्च पदों पर रहे। वह शायद अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने देश के दो सबसे बड़े राज्यों पर शासन किया। पहले राजीव गांधी ने 1985 में उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किया। उस वक्त मध्य प्रदेश भौगोलिक तौर पर देश का सबसे बड़ा राज्य था। मध्य प्रदेश में वोरा जी चार साल तक मुख्यमंत्री रहे। फिर नब्बे के दशक में पी वी नरसिम्हा राव ने उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नामित किया। संयोग से कुछ ही दिनों में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया और इस तरह उत्तर प्रदेश का शासन वोरा जी के हाथों में आ गया। उत्तर प्रदेश राजनीतिक तौर पर देश के सबसे अहम राज्यों में शामिल है। वहां भी उन्होंने शासन किया और इस तरह वह अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने दो राज्यों की सरकार चलाई।
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कांग्रेस पार्टी में वोरा जी को जो सम्मान मिला हुआ था उसे हर कोई जानता है। गांधी परिवार को उन पर जबरदस्त भरोसा था। वह पार्टी के अहम पदों पर रहे। सोनिया गांधी के अध्यक्ष काल में करीब 10 साल तक वोरा जी पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे। वोरा जी के लंबे राजनीतिक जीवन की सबसे अहम बातयह रही कि बेहद महत्वपूर्ण पदों पर होने के बावजूद उन पर कभी कोई उंगली नहीं उठा सका। वोरा जी एक नेक, मिलनसार और ईमानदार व्यक्ति थे। हर किसी की मदद को तैयार रहते थे।
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मोतीलाल वोरा के निधन से नेशनल हेरल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज़ ग्रुप को गहरा सदमा लगा है। जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्थापित इन अखबारों की कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के वह लंबे अर्से तक चेयरमैन रहे। दरअसरल राजनीति में कदम रखने से पहेल वोरा जी पत्रकार ही थे। और हमारे चेयरमैन की हैसियत से अकसर वह अपने पत्रकारिता के दौर का जिक्र करते थे। उनको अखबारों की दुनिया से खास लगाव था। उनकी सरपस्ती में एजेएल ग्रुप (एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड) ने एक नया सफर न्यूज पोर्टल्स की दुनिया में कदम रखने के साथ शुरु किया। यह उनकी ही हिम्मत थी कि अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में तीन वेबसाइट शुरु हुईं और नेशनल हेरल्ड संडे (अंग्रेजी) और नवजीवन संडे (हिंदी) साप्ताहिक अखबार शुरु हुए जो अब पूरे जोश के साथ प्रकाशित हो रहे हैं।
अपनी आखिरी मुलाकात में वोरा जी मुझ से बहुत देर तक जल्द ही ‘कौमी आवाज़’ साप्ताहिक शुरु करने की योजना के बारे में बात करते रहे थे। अफसोस कि यह काम शुरु होने से पहले ही वह जाते रहे। उनके निधन से सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि एजेएल ग्रुप के लिए एक बड़ा झक्का है। हम सब वोरा जी को भुलाए नहीं भुला पाएंगे।
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