हाल में ही प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हमारी नैतिकता की परिभाषा हमेशा एक जैसी नहीं रहती, बल्कि यह मौसम के अनुसार बदलती है। बसंत और हेमंत ऋतुओं में नैतिकता अधिक रहती है, जबकि गर्मी और सर्दी में कुछ हद तक नैतिकता की परिभाषा बदलने लगती है। 10 वर्षों से भी अधिक चलने वाले इस दीर्घकालीन अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिटिश कोलंबिया के मनोवैज्ञानिकों ने किया है और इसे प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
हमारी नैतिकता एक सामाजिक धरोहर है और इसकी परिभाषा हमारा समाज ही तय करता है। समाज की नैतिकता का पालन करने वाले जब अधिक होते हैं तब समाज स्थिर रहता है और आगे बढ़ता है। हमारी नैतिकता, जब समाज की नैतिकता से अलग होती है, तब इसका असर पूरे समाज पर और राजनैतिक परिदृश्य पर पड़ता है। इस अध्ययन के लेखकों के अनुसार मौसम के अनुसार नैतिकता में परिवर्तन से चुनावों के परिणाम, न्यायालयों के फैसले और महामारी के समय इसकी रोकथाम में जनता की हिस्सेदारी में बदलाव हो सकता है।
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इस अध्ययन को अमेरिका के 230000 चुनिंदा प्रतिभागियों पर दस वर्ष से भी अधिक समय तक किया गया। इसके अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में भी कुछ प्रतिभागियों पर इस अध्ययन को दो वर्षों के लिए किए गया। इसके मुख्य लेखक इयान होह्म के अनुसार वसंत और हेमानी ऋतुओं में अन्य मौसम की अपेक्षा सामाजिक जुड़ाव अधिक देखा गया, जिसका मुख्य कारण अधिकतर लोगों द्वारा सामाजिक नैतिकता का पालन करना है। हमारी नैतिकता ही हमें समाज से जोड़ती है और हमारे निर्णय लेने की क्षमता के मूल में है।
इन प्रतिभागियों के अतिरिक्त वर्ष 2009 से एक अलग वेबसाइट (YourMorals.org) स्थापित की गयी है जिसमें कोई भी पंजीकरण के बाद नैतिकता के पांच पैमानों – निष्ठा, अधिकार, निर्मलता, दायित्व और निष्पक्षता – से सम्बंधित विचार रख सकता है। इस वेबसाइट से प्राप्त जानकारी का उपयोग भी अध्ययन में किया गया है। निष्ठा से सामाजिक समूह के बीच सम्बन्ध गहरे होते हैं, अधिकार के अंतर्गत समूह में सबके अधिकारों की इज्जत करते हैं, निर्मलता द्वारा सामाजिक तौर-तरीकों का पालन करते हैं, दायित्व दूसरों के प्रति दयालुता का आधार है और निष्पक्षता द्वारा हम सबके साथ एक जैसा व्यवहार करते हैं। निष्ठा, अधिकार और निर्मलता – समाज और कुछ हद तक राजनैतिक परिदृश्य का भी मूलभूत आधार है। अध्ययन के अनुसार वसंत और हेमंत में निष्ठा, अधिकार और निर्मलता के सन्दर्भ में नैतिकता बढ़ जाती है और पिछले 10 वर्षों से इस परिणाम में कोई बदलाव नहीं देखा गया है।
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मौसम के अनुसार नैतिकता प्रभावित होने का संभावित कारण वैज्ञानिकों ने मौसम से प्रभावित होते मानसिक उद्वेग के स्तर को बताया है। दीर्घकालीन अध्ययनों के अनुसार मानसिक उद्वेग या व्यग्रता वसंत और हेमंत ऋतुओं में बढ़ जाती है, इस व्यग्रता के बीच दूसरी अन्य परेशानियों से बचने के लिए अधिकतर लोग समाज के परम्परागत नैतिक मूल्यों का ही पालन करते हैं। ऐसे समय राजनैतिक हिंसाएं बढ़ जाती हैं क्योंकि कट्टर पार्टीनिष्ठ कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ जाती है और उन्हें दूसरे राजनैतिक दलों के नेता और समर्थक अपने दुश्मन नजर आने लगते हैं।
नैतिकता पर यह अध्ययन भले ही पूरी दुनिया पर सटीक बैठता हो, पर भारत के लिए अपवाद है। यहाँ नैतिकता की परिभाषा समाज तय नहीं करता बल्कि सत्ता तय करती है और यह नैतिकता मौसम के प्रभाव से परे है। हमारे देश में एक ही व्यक्ति और उसकी जी हुजूरी करने वाले, उसे भगवान समझने वाले, उसे मीडिया में दिनरात पूजने वाले ही नैतिक हैं और शेष पूरी आबादी अनैतिक है। हमारे देश में जो तथाकथित नैतिक हैं, वही अमीर भी हैं। शेष अनैतिक आबादी तो सरकारी मुफ्त अनाज पर जिंदा है। सत्ता और मीडिया जिन्हें नैतिक होने का तमगा देती है वही देशभक्त हैं, शेष आबादी अर्बन नक्सल, देशद्रोही, टुकड़े-टुकड़े गैंग और देश की छवि बिगाड़ने वाले हैं।
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जिस देश में जनता अफीम खा कर सो गयी हो, पूरा मीडिया नंगा खड़ा हो, सभी संवैधानिक संस्थाएं अपनी रीढ़ सत्ता के हाथों में सौप चुकी हैं और न्यायालयों के विद्वान न्यायाधीश क़ानून-व्यवस्था की बातें केवल न्यायालय के बाहर अपने भाषणों में सीमित रखते हों – वहां नैतिकता की बात करना भी बेमानी है। देश की सत्ता वर्ष 2016 की नोटबंदी के बाद से आश्वस्त है कि जनता मर भी जाये तब भी उसे केवल मोदी ही दिखाई देंगे, पर आश्चर्य यह है कि इतने सालों बाद भी विपक्ष देश में सत्ता से नैतिकता की उम्मीद कर रहा है – तथ्य यह है कि देश में नैतिकता का अस्तित्व ही नहीं है और जिसका अस्तित्व ही नहीं है उसपर कैसा हमला? अब तो देश में बुलडोज़र भी नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगा है।
पूरी दुनिया में तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के असर से मौसम में बदलाव देखा जा रहा है। सबसे अधिक असर वसंत और हेमंत ऋतु पर ही पड़ा है, इन दोनों मौसमों की अवधि और विशेषता पहले से बहुत कम रह गयी है। अब तो अत्यधिक सर्दी, भयानक गर्मी और बाढ़ वाली वर्षा ऋतु का समय आ गया है, ऐसे में जाहिर है समाज में नैतिकता की परिभाषा बदल जायेगी। नैतिकता के इस बदले स्वरूप का अनुभव हम सब कर रहे हैं।
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सन्दर्भ:
Ian Hohm et al, Do moral values change with the seasons?, Proceedings of the National Academy of Sciences (2024). DOI: 10.1073/pnas.2313428121
YourMorals.org
https://ubctoday.ubc.ca/news/august-08-2024/peoples-moral-values-change-seasons
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