अगस्त, 2007 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तब गुजरात सरकार ने 1857 के आजादी के आंदोलन की याद में 1.85 करोड़ पौधे लगाने की घोषणा करते हुए विज्ञापन जारी किए थे। इसमें कहा गया था कि सात महानगरों, 141 शहरों और 18,324 गांवों में वीरांजलि गांव बन जाएंगे। वरिष्ठ पत्रकार-लेखक उर्विश कोठारी जानना चाहते हैं कि वे पौधे अब कहां हैं? वह कहते हैं कि मोदी, बस, बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने और बड़े-बड़े आयोजन करने के लिए जाने जाते हैं।
उर्विश कोठारी कच्छ के रण में आयोजित उस चार दिवसीय ‘चिंतन शिविर’ का उदाहरण भी देते हैं, जो राज्य के लिए 50 स्वर्णिम लक्ष्य तय करने के खयाल से किया गया था। यह दिसंबर, 2009 में हुआ था। कोठारी कहते हैं कि उसमें जो कुछ तय किया गया था, उसे अब कौन याद करता है। कोठारी सोशल मीडिया पर पुरानी मीडिया रिपोर्ट, शीर्षक, विज्ञापन आदि जारी करते रहते हैं। वह कहते हैः ‘मैं मोदी और मीडिया को उन सबकी याद दिलाता रहता हूं।’
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कोठारी से इस संवाददता की फोन पर बातचीत हुई। इसमें उन्होंने कहा कि कुशासन की बातें गुजरात में मीडिया ढंक देता रहा है औैर अब पूरे देश में ऐसा हो रहा है। 2002 उपचुनाव से पहले जब गुजराती अखबार ‘गुजरात समाचार’ मोदी के कामों की परतें उघार रहा था, तब उसी तरह के लेआउट, फॉन्ट और मास्टहेड के साथ ‘गुजरात सत्य समाचार’ नाम से एक अखबार लॉन्च किया गया।
वह व्यंग्यपूर्वक कहते हैं कि उसी तरह अब ‘द गार्जियन’ के मुकाबले के लिए ‘डेली गार्जियन’ और ‘द न्यू गार्जियन’ आ गए हैं। मोदी जब मुख्यमंत्री थे, तब उनके प्रचार के लिए ‘वंदे गुजरात’ नाम से टीवी चैनल शुरू किया गया था। जब वह प्रधानमंत्री बने, तो नमो टीवी और कई अन्य चैनल शुरू हो गए। वह बताते हैं कि ‘अभी आप जो कुछ देख रहे हैं, वह पहले की बातों का दोहराव है। मेरे पास अखबार की बहुत सारी पुरानी कतरनें-वीडियो क्लिप्स हैं। मैंने उन्हें तब इकट्ठा किया था, जब कोई इंटरनेट सर्च इंजन, गगूल या विकीपीडिया नहीं था।’
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एक वक्त उन्होंने मोदी के ‘वास्तविक गुजरात मॉडल’ पर किताब लिखने की बात भी सोची थी लेकिेन कोठारी कहते हैं कि वह इस तरह का काम कर अब अपना समय बर्बाद करना नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘हमलोगों (जिन्होंने गुजरात मॉडल देखा है) के लिए कुछ भी नया नहीं है। दिल्ली और भारत अभी जो कुछ देख रहा है, वह फिल्म हम पहले ही देख चुके हैं।’ वह कहते हैं कि गुजराती अखबार कभी भी पूरी तरह किसी की पीठ पर सवार नहीं हो गए थे। लेकिेन पहले वह पूरी तरह दब्बू थे और अब विद्रोही हो गए हैं- यह विचार बातों का अतिसाधारणीकरण है।
वह कहते हैं कि मोदी के गुजरात मॉडल में एक हिस्सा मीडिया प्रबंधन और विचार का संतुलन है। इस मॉडल की सबसे प्रमुख बात गुरूर है। यह व्यक्ति किसी विचारधारा को नहीं गुदानता। आरएसएस, बीजेपी, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, सांप्रदायिकता आदि सबकुछ अपनी छवि चमकाए रखने की चीजें हैं। वह जब मुख्यमंत्री बने थे, उससे पहले सरकारी विज्ञापनों में मुख्यमंत्री की तस्वीर पासपोर्ट साइज की होती थी। लेकिेन मोदी ने फैन्सी कपड़े पहनकर अपने को दिखाते हुए पूरे राज्य को प्लेकार्ड और होर्डिंग से ढंकने के लिए सार्वजनिक धन हाथ खोलकर खर्च किया।’
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कोठारी याद करते हैं कि ‘विद्या सहायक’-जैसे पद के नियुक्ति आदेशों के वितरण के दिखावे के लिए बड़े-बड़े आयोजन किए गए, जबकि पहले यह काम डाकिया कर दिया करता था। और ये पद क्या थे? इस योजना के तहत शिक्षकों की हर माह 3,500 रुपये के ‘वेतन’ पर पांच साल की नियुक्ति की गई थी। यह शोषण तो था ही, बच्चों की शिक्षा के खयाल से अनर्थकारी था।
कोठारी के अनुसार, गुजरात मॉडल का एक हिस्सा ‘हिंदुओं के रक्षक’ के तौर पर अपने को प्रोजेक्ट करना था। कुछ-कुछ दिनों में ये सनसनीखेज खबरें आती रहती थीं कि कोई उनकी हत्या की कोशिश कर रहा है। थोड़े दिनों में कथित तौर पर ऐसा करने वालों के साथ मुठभेड़ हो जाया करती थी। जब वैसे एनकाउंटर करने वाले कई स्पेशलिस्ट जेल चले गए, तो मोदी को इस किस्म के खतरे भी रुक गए।
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उर्विश कोठारी कहते हैं कि आरंभिक दिनों में उनके भाषण सांप्रदायिक तौर पर विष बुझे होते थे, लेकिेन अपना आधार बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने भाषणों को तराशना शुरू कर दिया। तब ही गुजरात मॉडल की तीसरी विशेषता- मोदीनॉमिक्स, उभरी। इसका मतलब सबको सबकुछ मिलना था। गुजरात में पहले से ही काफी उद्योग थे और यह काफी उद्यमशील राज्य रहा है। लेकिेन विशेषज्ञ यह बात उभारने में लगा दिए गए कि यह सब मोदीनॉमिक्स की वजह से है।
वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि मोदी से पहले और मोदी के बाद के गुजरात के इतिहास को लिखना गुजरात मॉडल का अगला हिस्सा था। इसे ही अब राष्ट्रीय फलक दे दिया गया है। कोठारी हंसते हुए कहते हैं, ‘वे लोग अटल बिहारी वाजपेयी युग को भी अब याद नहीं करते। नैरटिवे यह है कि पूरा देश अंधकार में जी रहा था। मोदी आए, तब हमें प्रकाश की किरणें दिखीं।’
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