विचार

झारखंड: हिंदुत्व और ध्रुवीकरण की चाशनी में लिपटे ‘मोदी मैजिक’ के किले की बुनियाद हिलने लगी है

झारखंड के नतीजों ने मोदी के उस करिश्माई किले दरारें डाल दी हैं जिसकी बुनियाद हिंदुत्व और ध्रुवीकरण पर खड़ी है। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उमड़ा जनाक्रोश संकेत है कि देश अब बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट होने लगा है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

हरियाणा में जिस रुझान की शुरुआत हुई थी, वह अब बीजेपी की नियति बनती जा रही है। हरियाणा में बीजेपी चुनाव हार चुकी थी, लेकिन किसी तरह जोड़तोड़ कर उसने सरकार बना ली। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन में चुनावी बहुमत हासिल करने के बाद भी बीजेपी के हाथ से सत्ता फिसल गई, क्योंकि शिवसेना ने बीजेपी के अहंकार को ठेंगा दिखा दिया। देश भर में छात्र-नागरिक नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सड़कों पर हैं। ऐसे में झारखंड की चुनावी हार साफ संकेत हैं कि हवा अब नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के खिलाफ बह रही है।

झारखंड में बीजेपी की मात इस मायने में बेहद अहम है क्योंकि यह आदिवासी बहुल राज्य है जिसने भगवा ब्रिगेड को पीठ दिखा दी है। कांग्रेस-जेएमएम-आरजेडी गठबंधन बहुमत का आंकड़ा पार कर चुका है और बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने हार स्वीकार कर ली है। आखिर बीजेपी बड़े अंतर से सत्ता की दौड़ में पिछड़ गई है। 2019 के लोसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र सरकार में वापसी करने वाली बीजेपी के यह अब तक का सबसे बड़ा झटका है।

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फिर भी मोदी के चाहने वाले और बीजेपी भक्त तो यही कहेंगे कि झारखंड के नतीजों का देश के राजनीतिक परिदृश्य पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। लेकिन, राजनीति की जमीनी असलियत भक्तों को नजर नहीं आ रही। दरअसल हरियाणा से झारखंड के बीच दो साफ रुझान सामने आए हैं। पहला तो यह कि मोदी मैजिक तेजी के साथ खत्म हो रहा है, और दूसरा यह कि हिंदुत्व की राजनीति अपनी चमक खोती जा रही है।

2014 के आम चुनावों के समय से ही देश भर में नरेंद्र मोदी ही बीजेपी का चेहरा और मुखौटा रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी के करिश्मे ने आश्चर्यजनक रूप से लोगों को आकर्षित किया और नोटबंदी जैसे विनाशकारी फैसले के बाद भी लोगों ने बीजेपी को वोट दिया। बीजेपी एक के बाद एक चुनाव जीतती जा रही थी, राज्यों में भी और देश में भी, और इसका कारण सिर्फ और सिर्फ मोदी की अपील ही थी।

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झारखंड में भी बीजेपी को मोदी से ही उम्मीदें थी, पार्टी उन्हीं के चेहरे पर भरोसा किए हुए थे, लेकिन झारखंड ने नरेंद्र मोदी को पूरी तरह नकार दिया।

अब इसका विश्लेषण तो होगा ही कि आखिर झारखंड में नरेंद्र मोदी फेल क्यों हो गए? देश के इस आदिवासी राज्य में दो कारण रहे जिन्होंने बीजेपी और मोदी को दंड स्वरूप पराजय का स्वाद चखाया। इनमें से एक है अर्थव्यवस्था और दूसरा है सामाजिक तानाबाना। देश के सामने इस समय जो आर्थिक संकट है, वैसा संकट बीते कम से कम चार दशक में नहीं रहा। लगातार नौकरियों का जाना, किसानों का संकट, विकास दर का रसातल में जाना, फैक्टरियों का बंद होना, बाजार से ग्राहकों और उभोक्ताओं का गायब होना, प्याज जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों से आम लोगों की आंख में आंसू आना और इन सब को मिलाकर खाद्य मंहगाई दर का बढ़ जाना। यह सारी बातें आज हर किसी की जुबान पर हैं।

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मतदाता मूर्ख नहीं है कि आर्थिक संकट से दोचार होकर परेशानियां झेलने के बाद भी नरेंद्र मोदी को वोट देता रहे। उन नरेंद्र मोदी को जिन्होंने आम लोगों की जिंदगी दूभर कर दी है। झारखंड के नतीजे हर उस आम भारतीय की बेचैनी का अक्स हैं जो इस देश की अर्थव्यवस्था की हालत के चलते मुसीबतें झेल रहा है। लेकिन यह वही मतदाता है जिसने अभी 6 महीने पहले ही नरेंद्र मोदी को प्रचंड बहुमत देकर सत्ता में वापस भेजा है। तब भी अर्थव्यवस्था की हालत लगभग ऐसी ही थी। तब से झारखंड चुनाव होने तक इसमें और गिरावट ही आई है।

तो फिर क्या है जो नरेंद्र मोदी के लिए काम नहीं कर पा रहा है? दरअसल हिंदुत्व की चमक तेजी से खत्म हो रही है। नरेंद्र मोदी की राजनीति विभाजनकारी है, यह सर्वविदित है। इसी तरह हिंदुत्व की राजनीति भी देश के मुसलमानों को ‘अन्य’ बनाती है। मोदी इस खेल माहिर माने जाते रहे हैं कि जब वे किसी एक अल्पसंख्यक समुदाय को शत्रु साबित कर खुद हिंदुओं को रक्षक के तौर पर पेश करते हैं और मतदाताओं के दिलो-दिमाग को जीतने की कोशिश करते रहे हैं। 2019 के आम चुनावों में बालाकोट एयरस्ट्राइक को पेश कर मोदी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया।

लेकिन, झारखंड में कुछ भी तदबीर काम नहीं आई। मोदी ने खुद को एक ऐसे शासक के रूप में पेश किया जिसने कश्मीर से 370 हटाकर एक साहसी काम किया है। उन्होंने राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी भुनाने की कोशिश की। बीजेपी की किताब में मौजूद हर तिकड़म को झारखंड में आज़माया गया, लेकिन जनादेश स्पष्ट है कि यह सब निरर्थक साबित हुए। तो आखिर मोदो का ध्रुवीकरण का फार्मूला फेल कैसे हो गया?

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असल में तीन बातें थी जो बीजेपी पर उल्टी पड़ीं। पहली बात तो यह कि झारखंड के वोटर की प्राथमिकता आर्थिक बदहाली थी। मतदाताओं का बीते 5 साल का अनुभव था कि मोदी और रघुबर दास की जोड़ी इस मोर्चे पर नाकाम साबित हुई है। दूसरी बात यह कि आदिवासी बहुल झारखंड में हिंदुत्व को आदिवासी विरी माना जाता है। और फिर बीजेपी ने गैर-आदिवासी दलों के साथ गठबंधन कर आदिवासियों को सत्ता से बाहर रखने की मंशा सामने रख दी थी। इससे बीजेपी की संभावनाओं पर पानी फिर गया, क्योंकि इसके बाद गरीब और हाशिए पर पड़े लोगों ने जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन का रुख कर लिया। इस तरह एक विचारधारा और ध्रुवीकरण की तिकड़म, दोनों रूप में हिंदुत्व बुरी तरह नाकाम रहा।

झारखंड के नतीजों ने मोदी के उस करिश्माई किले की बुनियाद हिला दी है, जो बरसों में तैयार हुआ था। देश के राजनीतिक परिदृश्य से मोदी को हटा देना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी, फिर भी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उमड़ा जनाक्रोश संकेत है कि देश अब बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट होने लगा है।

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