ये 'देशभक्त' लोग हैं, 'संस्कारी' लोग हैं, इसलिए इनका हर काम 'वहीं' संपन्न होता है। 'वहीं' यानी जहां इन्होंने कहा था कि हम मंदिर 'वहीं' बनाएंगे और अब बना रहे हैं। वैसे इनका यह 'वहीं', कहीं और भी हो सकता है, जरूरी है कि वह बाबरी मस्जिद हो और शहर अयोध्या हो। एक दिन ये कह सकते हैं कि आपकी-हमारी खोपड़ी भी 'वहीं' है और हम यहां मंदिर बनाएंगे, इसे हमारे हवाले कर दो, वरना हम इसे ढांचा बता देंगे और ढांचा तोड़ने के लिए पहले गुंबद तोड़ना होता है और तुम्हारे पास केवल एक गुंबद है। वह गिरा कि फिर ढांचा तो अपने आप ढह जाएगा। समझे लल्लू!
करोड़ों सिरों में आज इसी तरह मोदीलला विराजमान हैं। विराजित करनेवाले भी अब बहुत खुश हैं। उनकी मुश्किल यह है कि उनकी खोपड़िया में मोदीलला तो पहले से विराजमान थे और अब रामलला को भी वहां एडजस्ट करने का दबाव है। उधर मोदीलला इसकी इजाजत देने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने साफ कह दिया है कि ‘मैं किसी के साथ एडजस्ट नहीं कर सकता। तुम रामलला को अपने घर के मंदिर में एडजस्ट कर लो, खोपड़ी अब मेरी हो चुकी है। याद है न इसकी रजिस्ट्री तुम मेरे नाम कर चुके हो! गड़बड़ की तो तुम्हारी तुम जानो। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कहूंगा।’
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समझने वाले इतने से समझ जाते हैं। भक्त धमकी की बात तो प्राइवेटली स्वीकार करते हैं, मगर पब्लिकली कहते हैं कि मोदीलला विराजमान के कारण ही आज रामलला भी अयोध्या में विराजमान हैं। अत: दिमाग के कोटर में हमने रामलला को किसी तरह चुपचाप एडजस्ट कर भी लिया तो हर हाल में मोदीलला का स्थान, रामलला से काफी ऊपर रहेगा। आप ही ईमानदारी से बताइए कि हम मोदीलला को हटा कर उस जगह पर रामलला को कैसे बिठा सकते हैं और बैठाएं भी क्यों? मोदीलला के साथ यह अन्याय होगा और मोदीलला अपने साथ अन्याय के सख्त खिलाफ हैं।
वैसे भी आप जानते हैं कि खोपड़ी नामक स्थान होता ही कितना बड़ा है! वह भी अगर खोपड़ी भक्त की हो! समस्या यह भी है कि रामलला को किसी तरह एडजस्ट कर भी लें तो रामलला का कहना है कि साथ में मेरे तीन भाइयों और हनुमान जी को भी एडजस्ट करना होगा। रामलला अपने भाइयों और हनुमानजी को किसी हालत में छोड़ नहीं सकते। उधर हमारे मोदीलला हैं। वह अकेले ही विराजमान होना पसंद करते हैं। किसी भाई, किसी हनुमान को एडजस्ट नहीं करवाते।
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ऐसे मोदीलला के लिए खोपड़ी में स्पेस की कमी नहीं पड़ती। वैसे भी मोदीलला संकरी से भी संकरी खोपड़ी में ही विराजमान होना पसंद करते हैं। उन्हें मंदिर, संसद भवन, प्रधानमंत्री निवास, हवाई जहाज, कार तो विशाल से विशालतर ही चाहिए, मगर विराजमान होने के लिए खोपड़ी बेहद संकरी ही चाहिए।
वैसे सबको अपने साथ, अपने हनुमान भी चाहिए होते हैं, मगर मोदीलला ऐसा झंझट नहीं पालते। उन्हें उचित ही यह आशंका रहती है कि उनका कोई भी हनुमान, वह हनुमान नहीं हो सकता, जिस हनुमान का उल्लेख रामचरित मानस में मिलता है। वह तो उसी कोटि का हनुमान होगा, जिस कोटि के हनुमान कभी वह स्वयं थे। किसी दिन कोई हनुमान इनके चरणों में बैठे-बैठे ही इनके पैर खींच कर धड़ाम से गिरा देगा और पीठ पर सवारी करते हुए कहेगा, ए मिस्टर, नाऊ यूअर टाइम इज अप।आज से तुम नहीं, राम मैं हूं। तुमने कहा था न एक बार कि तुम फकीर हो और तुम किसी दिन झोला उठा कर चल दोगे! तो तुम्हारी फकीरी का समय शुरू होता है अब, जाओ, अपना झोला उठाओ और चलते-फिरते दिखो। जल्दी, देर बिल्कुल नहीं करने का।
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अरे तुम, तुम तो तुम हो, झोला उठाना भी एक जुमला था। तुम और फकीर! तुम और झोला! तीन साल का बच्चा भी यह सुनकर हंस देता है! खैर। ओ भाई कोई है उधर? सुनो, इस फकीर का झोला कहीं खो गया है। नए खरीदने के पैसे इसके पास नहीं हैं। जरा इसे खादी भंडार वाला कोई झोला लाकर दे दो और सुनो, नया वाला मत लाना, पुराना लाना। पुराना न हो तो बाहर लान की मिट्टी में खूब घिसकर लाना और सुनो फटा वाला हो तो वही लाना और फटा न हो तो फाड़कर लाना, साबुत मत लाना। फकीर नया झोला लेकर जाएगा, तो लोग इसके फकीर होने पर शक करेंगे।
और एक और बात सुनते जाओ, इसके लिए मैंने पहले से एक गंदी सी ड्रेस लाकर रखी थी। इसे पहना देना। ये स्वेच्छा से नहीं पहने, तो चार लोग मिलकर पहना देना। फिर फाइनल टच अप देकर, इसका फोटो खींंच कर मेरे पास लाना। मैं जब एप्रुव करूं, तब इसको सम्मानपूर्वक यहां से जामा मस्जिद की तरफ छोड़ आना और हां अगर ये कहे कि नहीं, मुझे तो निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास छोड़ना, तो जिद मत करना, वहीं छोड़ देना। थोड़ा डीजल भी बचेगा और थोड़ा यह एहसास भी इसके अंदर रहेगा कि हां मेरी इच्छा का यथोचित ढंग से सम्मान किया गया है। मेरी विदाई सम्मानजनक ढंग से हुई है।
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तो इन सब जटिलताओं पर विचार करने के उपरांत करोड़ों खोपड़ियों में विराजमान मोदीलला ने अपने मंदिर में किसी और के लिए जगह रखी नहीं है। अब मंदिर है तो उसकी नित्य प्रति कम से कम एक बार धुलाई-सफाई होना भी जरूरी है। पूजा अर्चना से पहले लला को स्नान करवाना भी जरूरी है। तभी तो दीप जलाना, नैवेद्य चढ़ाना भी संभव है, आरती उतारना संभव है। इस सबके लिए पुजारी जी का आलथी-पालथी मारकर बैठना भी जरूरी है। पूजा की थाल रखना भी आवश्यक है। आरती करने के लिए खड़े होना, लला से उचित दूरी का पालन करते हुए आरती उतारना भी जरूरी है।
ये सब सत्कर्म करने के लिए रोशनी और वायु का लघु मात्रा में प्रवेश-निवेश-विनिवेश भी आवश्यक है। इतनी सारी आवश्यकताएं हैं और हां पति-पत्नी, माता-पुत्र, पिता-पुत्री साथ बैठकर आराधना-पूजा-अर्चना करना चाहें, तो उनके लिए सटकर ही सही स्थान होना भी जरूरी है। मगर मंदिर रामलला का नहीं, मोदी लला का है और मोदी लला, मोदी लला हैं, रामलला नहीं। ठीक है कि मोदीलला, रामलला का मंदिर बनवा सकते हैं, उनकी कीर्ति में यहां-वहां से बटोर कर लाए गए उद्धरणों की झड़ी प्रॉम्टर से पढ़ कर लगा सकते हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वे स्वयं भी रामलला हैं। वे मोदी लला हैं और वही रहना चाहते हैं।
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अतः वह इतनी जगह भी नहीं छोड़ते कि सेवक झाड़ू लगा सकें। नतीजा यह है कि मंदिर जी खोपड़ी में विराजमान हैं और वहां अंदरुनी सफाई का प्रबंध करना तक संभव नहीं। उसकी पवित्रता की रक्षा करना तक संभव नहीं। मगर हर देवता की अपनी विशिष्टता होती है और मोदी देवता की विशिष्टता का तो जवाब इस दुनिया में कहीं अगर है तो केवल अमेरिका में है और वह भी शायद नवंबर तक ही!
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