कल्पना करने के अपने मजे हैं। फिलहाल 15 अप्रैल तक सोशल डिस्टेंसिंग में हूं। कामवाली बाई को हमने सवैतनिक अवकाश दे दिया है और मिलजुलकर हम काम कर रहे हैं। इतनी 'गलती' जरूर कर रहे हैं कि इसकी न सेल्फी ले रहे हैं, न एक-दूसरे का काम करते हुए फोटू मोबाइल से ले रहे हैं- 'हिंदी का एक पत्रकार घर की झाड़ू लगाते हुए'। 'हिंंदी का एक कवि पोंछा मारते हुए।'
इस सबसे फुर्सत मिलती है तो कुछ शैतानी कल्पनाएं करने लगता हूं। मसलन ये कि हमारी तरह हमारे प्रधान सेवक जी ने भी सोशल डिस्टेंसिंग के हित में अपने नौकरों-चाकरों को छुट्टी दे दी है।अब वह अकेले हैंं और 15-20 कमरों का बंगला है। समस्या यह है कि योग करें या बंगले की झाड़ू -पोंछा करें? अकेले हैं तो उनकी प्राथमिकता झाड़ू-पोंछा है। वही उनका योग और व्यायाम है। समस्या यह भी है कि पूरे बंगले का झाड़ू-पोंछा लगाएं तो शाम इसी में हो जाएगी।
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तब राष्ट्र के नाम संबोधन करने, ट्विटर के लिए समय नहीं मिलेगा। इसलिए दो-तीन कमरे तक खुद को सीमित रख रहे हैंं। इतने में ही कमर दर्द करने लगती है। हिम्मत चाय बनाने की भी नहीं बची है, मगर कमर दर्द सहकर भी बना रहे हैंं। खैर चाय बेची है, पिलाई है, तो चाय बनाना अब भी उन्हें आता है, ऐसी उनकी कल्पना है, मगर कभी दूध अधिक पड़ जाता है, कभी चाय, तो कभी चीनी। खैर जैसे-तैसे, जैसी-तैसी चाय बन जाती है।
बदकिस्मती यह है कि चाय भी खुद बना रहे हैं और पी भी खुद रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग करनी है तो चाय पीने किसी को बुला भी नहीं सकते। पूछ नहीं सकते कि क्यों भैया या बहन जी, चाय बढ़िया बनी है न? वैसे प्रधानसेवक को मालूम है कि कोई यह कहने का खतरा नहीं उठाता कि अच्छी नहीं बनी है, जबकि वाकई बहुत खराब बनी है। फिर भी खराब चाय की झूठी तारीफ सुनने की हूक उनमे उठ रही है। यही नहीं चाय बनाते हुए और पीते हुए न सेल्फी ले पा रहे हैं, न किसी से कह पा रहे हैं कि फोटो ले लो। जनता का भी नुकसान हो रहा है। वह प्रधान जी को चाय बनाते और पीते देख नहीं पा रही है!
प्रधान सेवक का यह सीन यहीं कट कर देते हैं। ब्रेकफास्ट में खिचड़ी बनाकर लंच और डिनर में भी वही खाकर दिन गुजार रहे हैं। अपनी प्रिय से प्रिय चीज तीन हफ्ते तक तीनों बार खाने की कल्पना ही दहशतनाक है, मगर सवाल उनके सामने देश का और अपनी यानी जान का है।
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अब उन्हें छोड़ कल्पना कीजिए अमित शाह की। उनकी श्रीमती जी ने उन्हें टेबल-कुर्सी, सोफे की धूल पोंछने की जिम्मेदारी दी है और डायनिंग टेबल पर लगे दाग-धब्बे छुड़ाने की भी। उन्हें लंच के लिए कढ़ी-चावल भी बनाना है। बेटा कह रहा है- पप्पा जी आपका फोटू लेकर ट्विटर पर डाल दूूं? पप्पा जी कह रहे हैं- पहले मोदीजी के ट्विटर अकाउंट देख। उन्होंने अपनी फोटो लगाई है? नहीं लगाई हो तो फिर तू रहने देना।
उधर राजनाथ सिंह का मन बहुत दिनों बाद नाश्ते में छोले-कुल्चे खाने का हो रहा है। श्रीमती जी से कहा, तो उनका जवाब आया- 'इस उम्र में ये सब चीजें? महाराज आया नहीं है। आता हो तो खुद बना लो। वैसे भी आज का नाश्ता बनाना तुम्हीं को है। 'अंततः उन्होंने मन मारकर सैंडविच बनाए।श्रीमती जी इससे नाखुश हैं, मगर क्या करें, अपने ही जाल में फंसी हैं। राजनाथ जी मुस्कुरा रहे हैं, वे राजनाथ जी को आग्नेय नेत्रों से देख रही हैं। उधर गडकरी जी बगीचे में पानी दे रहे हैंं। उन्हें हलवा- पोहे बनाने की जिम्मेदारी भी मिली है। वह चाहते तो हैं कि ईमानदारी से इस दायित्व को भी मंत्रिमंडलीय दायित्व मानकर पूरा करें मगर..।
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छोड़िए उन्हें। स्मृति ईरानी 'सास भी कभी बहू थी' सीरियल का स्मरण करते हुए कमर में पल्लू खोंसकर कपड़े धो रही हैं। पति जी कह रहे हैंं, प्रिय जी ये छोड़ो, मैं कर लूंगा। वे कह रही हैं, अच्छा ऐसा? तो धो तुम लेना, मगर फोटू मेरा खींच लो! मंत्रिमंडल की बैठक में मोदीजी को दिखाऊंगी कि देखिए सोशल डिस्टेंसिंग करके आपके आदेशों का अक्षरशः पालन कर रही हूं। अब तो कपड़ा मंत्रालय से मेरा पिंड छुड़ाइए। मोदी जी मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं। बाकी बचे मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के जज, कैबिनेट सेक्रेटरी, राज्यों के मंत्री-मुख्यमंत्री, सांसद-विधायक, मुख्य सचिव,कलेक्टर आदि-आदि पर क्या गुजर रही होगी, इसकी कल्पना करने का दायित्व आप पर छोड़ता हूं। दो भूतपूर्व राष्ट्रपति भी हमारे बीच हैं।
इन हालात में बस आडवाणी जी इस समय परम सुखी हैं। उनके बेटे-बेटी ने कह दिया है, पापा आप रहने दो। आप मोदी की चुनौती का सामना नहीं कर पाए तो इसका क्या कर पाओगे? आप बैठो, सब हो जाएगा। आडवाणी जी मन ही मन कह रहे हैं- देख मोदी, तू सुखी है या मैं? मैं-मैं-मैं!
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