छटपटाहट, घबराहट और कुछ उल्टी-पुल्टी बातें! जी हां, पिछले दस-बारह दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हावभाव से घबराहट प्रकट हो रही है। जब कोई भी व्यक्ति घबराया-घबराया होता है, तो वह इधर-उधर की बातें करने लगता है। ऐसा ही कुछ मोदी के साथ भी हो रहा है।
आप को याद है, 27 मार्च की दस-साढ़े दस बजे सुबह सारे टीवी चैनलों पर यह संदेश आने लगा कि प्रधानमंत्री देश के नाम संदेश देने वाले हैं। बस क्या था, देशभर में खलबली मच गई। कहीं कोई दूसरी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ तो नहीं हो गई। क्या हो गया, कोई आक्रमण तो नहीं, जितने मुंह उतनी बातें।
लगभग सवा डेढ़ घंटे बाद जब टीवी पर प्रधानमंत्री प्रकट हुए और उनका भाषण आरंभ हुआ, तो लोगों ने सिर पकड़ लिया। आप तो जानते ही हैं कि प्रधानमंत्री ने क्या कहा। भारत ने अंतरिक्ष में एक मिसाइल को मार दिया। निःसंदेह यह एक वैज्ञानिक उपलब्धि थी। भारत के अतिरिक्त यह क्षमता केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास है। परंतु यह एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, जिस पर डीआरडीओ के वैज्ञानिक लगभग पिछले दस वर्षों से काम कर रहे हैं। इसका श्रेय किसी को जाता है, तो वह देश के वैज्ञानिक हैं।
और उस दूरदृष्टि को जाता है जिसके तहत डीआरडीओ जैसी संस्था की स्थापना हुई थी। अब मोदी जी तो यह कहेंगे नहीं कि डीआरडीओ की स्थापना करने की दूरदृष्टि जवाहर लाल नेहरू की थी। खैर, जब यह सफलता मिली, तो छटपटाए प्रधानमंत्री स्वयं टीवी पर कूद पड़े और सारा श्रेय खुद बटोरने में लग गए। लोगों की प्रतिक्रिया उनके भाषण के पीछे यही थी कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया!
लेकिन यह सब कुछ केवल छटपटाहट नहीं थी। मोदी जी कोई काम बिना रणनीति के नहीं करते हैं। निःसंदेह इसके पीछे भी कोई रणनीति रही होगी। तो क्या थी यह रणनीति? आपको यह भी याद होगा कि मिसाइल टेक्नोलॉजी में सफलता की घोषणा चुनाव की घोषणा के पश्चात हुई थी। स्पष्ट है कि इस रणनीति में भी निगाह चुनाव पर ही रही होगी।
तो स्पष्ट प्रश्न यह है कि इसका चुनाव से क्या लेना देना? अरे भाई, मोदीजी ने तो इस बार चुनाव में सारा दांव ‘सुरक्षा’ पर ही लगा रखा है। वह क्यों? मोदी जी एक अत्यंत चतुर राजनीतिक खिलाड़ी हैं। वह चुनाव कभी असल मुद्दों पर नहीं बल्कि ऐसे मुद्दों पर लड़ते हैं जिसका जनता की असल समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं होता है। और ‘सुरक्षा’ तो उनका ‘पेटटें’ मुद्दा है।
याद है आपको गुजरात का पहला चुनाव। अरे भूल गए, वह स्वयं ‘अंगरक्षक’ बन गए थे। दंगे हुए या 2002 के गुजरात दंगे करवाए गए, यह राज आज तक खुला नहीं। परंतु यह तय है कि गुजराती हिंदू के मन में मुसलमानों के प्रति भय और फिर घृणा उत्पन्न कर दी गई। ऐसे माहौल में मोदी जी पहले ‘अंगरक्षक’ और फिर ‘हिंदू हृदय सम्राट’ बन गए।
बस यही रणनीति इस बार भी है। पाकिस्तान एक शत्रु सामने है ही। और पाकिस्तान हमारा शत्रु कब नहीं था। पुलवामा आतंकी हमले के पश्चात यह भय उत्पन्न हो गया कि पाकिस्तान फिर कोई हरकत न करे। बस मोदी जी ने ‘घर में घुसकर पाकिस्तानी आतंकियों को मारा’। और बस राष्ट्रवाद का शोर मचा, फिर मिसाइल को मार गिराया। मोदीजी, फिर से ‘अंगरक्षक’ के रूप में प्रकट हो गए।
परंतु मोदी जी ने तो भारत को ‘सुपर पावर’ बना दिया, तो फिर यह तीर-तलवार की राजनीति की क्या आवश्यकता। यही तो समस्या है। पिछले पांच वर्षों में काम के नाम पर मामला ठनठन गोपाल! अब मोदी करें तो करें क्या?
दो करोड़ नौकरियां हर साल नई बनी तो नहीं, हां पांच सालों में करोड़ों नौकरियां नोटबंदी और जीएसटी की नजर हो गईं। हजारों किसानों ने कर्ज के बोझ तले आत्महत्या कर ली। जो फसल उगी भी वह छुट्टे बैलों की नजर हो गई। दुकान और कारखानों की रौनक को जीएसटी की नजर लग गई।
तो फिर पांच साल तक हुआ क्या? कभी मॉब-लिंचिंंग, तो कभी गुरूग्राम में घर में घुसकर मुसलमानों की पिटाई और उनको पाकिस्तान जाओ की धमकी। पांच साल केवल 2002 के बाद का ‘गुजरात मॉडल’, वही घृणा की राजनीति और अब ‘अंगरक्षक’ बनने की छटपटाहट और घबराहट।
लेकिन मोदी जी सारा भारत आपका गुजरात नहीं। भारतवासी आपको ताड़ चुके हैं। आम भारतीय यह समझ रहा है कि आप अंगरक्षक बनकर आम आदमी की समस्याओं से भाग रहे हैं, आप भी समझ रहे हैं कि आम भारतीय आपके 2014 के झूठे वादों की हकीकत समझ चुका है। इसलिए उसको डराओ और मिसाइल गिराकर अंगरक्षक बन जाओ।
पर ‘यह जो पब्लिक है, यह सब जानती है।’ मोदी जी साल 2019 कोई 2014 नहीं है। अब जनता हिसाब मांग रही है। आपकी रणनीति यह है कि पिछले पांच सालों की आपकी नाकामियां भूलकर लोग आपको ‘अंगरक्षक’ मान लें और आपको वोट दे दें। लेकिन यह सब न तो चल रहा है और न आगे चलने वाला है। मोदी को इसी बात की घबराहट है। तब ही तो पिछले सप्ताह वर्धा की जनसभा में खुलकर मोदीजी ने हिंदू-मुसलमान का रोना रोया।
अब मोदीजी के पास पाकिस्तान और हिंदू-मुसलमान का रोना रोने के सिवा कुछ बचा नहीं है। ‘पर यह तो पब्लिक है.....’ सन् 2019 में मोदी का जादू उतर चुका है। पांच वर्ष पहले मोदीजी विकास पुरुष थे। अब वह विनाश पुरुष हो चुके हैं। नौकरियां खा गए। किसानों को मौत के घाट पहुंचा दिया। कारोबार बंदी की कगार पर पहुंच गया। यह विकास नहीं, विनाश ही तो है।
अधिकांश जनता मोदीजी का असल रूप समझ और झेल चुकी है। इसलिए मोदीजी जनता को राष्ट्रवाद और सुरक्षा जाल में फांसने की चेष्टा कर रहे हैं। पर इस बार वह चक्रव्यूह में फंस चुके हैं। एक तो भक्तों के अलावा जनता भड़की हुई है। फिर बीजेपी में कोई कहे या ना कहे फूट है। बुजुर्गों को जलील किया गया है। संघ के अंकुश के बावजूद यह रंग तो दिखाएगा ही।
इसी प्रकार लगभग 70 बीजेपी सांसदों के टिकट कटे हैं। वह भी मुट्ठी बंद करके तो बैठ नहीं जाएंगे। केवल मोदी और शाह अकेले पूरा चुनाव मोर्चा तो संभाल नहीं सकते। उधर अधिकांश विपक्ष एकजुट हैं। कांग्रेस तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड में संयुक्त मोर्चा बना चुकी है। दूसरे प्रदेशों में जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हैं वहां वे मोर्चा संभाले हैं।
फिर पांच साल के सत्ता के बोझ से बीजेपी की कम से कम सौ सीटें घटने की संभावना है। मोदी जी को इसी बात की छटपटाहट और घबराहट है। बस अब यही प्रश्न है कि जल्द ‘अंगरक्षक’ बन कैसे ‘हिंदू हृदय सम्राट’ बन जाएं। इसलिए पाकिस्तान और हिंदू-मुसलमान की हर समय बात हो रही है। लेकिन भारत पाकिस्तान या हिंदू-मुसलमान से बहुत बड़ा है। यह अब चलने वाला नहीं है। क्योंकि यह जो पब्लिक है, वो सब जानती है और मोदी जी को भलीभांति पहचानती है। और यही मोदीजी की घबराहट का कारण है।
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