महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा ने जम्मू -कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद वहां के हालात पर विस्तार से बात की। उन्हें केंद्र की बीजेपी सरकार से गहरी शिकायत है। उन्होंने इस बात पर गहरा अफसोस जताया कि जिस राज्य में पहले प्रधानमंत्री होता था, उसके स्तर को मोदी सरकार ने इतना नीचे तक गिरा दिया। वह साफ कहती हैं कि मोदी सरकार देश की बहुरंगी सभ्यता और संस्कृति को खत्म करती जा रही है। आज उस व्यक्ति के लिए आजादी का कोई मतलब नहीं रह गया है जिसके विचार बीजेपी के विचारों से मेल नहीं खाते हों। नवजीवन संवाददता <i><b>ऐशलिन मैथ्यू</b> </i>से बातचीत के आधार पर <b><i>इल्तिजा मुफ्ती</i></b> का लेख
मेरी मां अब भी सार्वजनिक सुरक्षा कानून (पीएसए) के अंतर्गत घरमें नजरबंद हैं। हमारे घर को उप-जेल में बदल दिया गया है। किसी को यह एक मामूली घटना लग सकती है लेकिन ऐसा नहीं है। किसी को भी आने की अनुमति नहीं है। मां को किसी से मिलने की इजाजत नहीं है, यहां तक कि अपने परिवारवालों से भी नहीं। अगस्त, 2019 से मैं रोजाना एक कपटी सत्ता से लड़ रही हूं। एक ऐसी सत्ता जिसने एहतियात बरतना छोड़ दिया है और वह कानून की परवाह नहीं करती। उनके पास किसी भी तरह का नैतिक या कानूनी संयम नहीं है।
अगर आप देखें तो यही पाएंगे कि इस देश में व्यक्तिगत स्वतंत्रता अब इस बात पर निर्भर करने लगी है कि आप बीजेपी से सहमत हैं या नहीं। और यह केवल राजनेताओं का ही नहीं, बल्कि पत्रकारों का भी सच है। अगर आप उनकी लाइन पर चलते हैं तो आपको विज्ञापन, प्रायोजक और पैसे सब मिलते हैं। इस देश में वे असुरक्षा और भय का माहौल बना रहे हैं।
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वे नहीं चाहते कि नेता वह करें जो वे कर रहे हैं। मेरी मां एक नेता हैं और आदर्श रूप से उन्हें लोगों से मिलना चाहिए और घाटी के लोगों को जो महसूस हो रहा है, उसे समझना चाहिए। लेकिन वह लगभग एक साल से लोगों के सामने नहीं आई हैं। अगर आप उनकी विचारधारा को स्वीकार नहीं करते हैं तो वे आपको हिरासत में ले लेंगे या आपको ब्लैकमेल करेंगे। सरकार ने उन्हें सहमत करने और अनुच्छेद-370 को खत्म करने के फैसले का समर्थन करने के लिए उन पर तमाम तरह के दबाव डाले। हर तरह का दबाव जिसमें उनकी पार्टी में विभाजन से लेकर पिछले एक साल के दौरान उन्हें तरह-तरह के तरीके से व्यक्तिगत रूप से अपमानित करना भी शामिल रहा। फिर भी मेरी मां ने अपने लोगों की गरिमा के लिए लड़ने का संकल्प नहीं छोड़ा है और वह लड़ना जारी रखेंगी।
कश्मीरियों के लिए यह एक सामूहिक त्रासदी है, एक सामूहिक दंड और इसके बाद गुस्से और चिंता का भाव। लोग वक्त के साथ चलते चले जा रहे हैं। उन्हें नहीं पता, वे किधर जा रहे हैं। पिछला वर्ष अविश्वसनीय रूप से कठिन रहा है। जब कोई सरकार आपको भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक रूप से तोड़ने की कोशिश कर रही होती है तो इसका असर तो आप पर पड़ता ही है। संसद में वे कहते हैं कि फिलहाल उन्होंने इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया है लेकिन बाद में उसे उचित वक्त पर फिर से राज्य बना दिया जाएगा। यह सब बीजेपी अपनी सुविधा के मुताबिक करेगी। जम्मू में जो बीजेपी के वोटर हैं, वे भी बीजेपी नेतृत्व से बेहद परेशान हैं और बीजेपी इस बात को बखूबी जानती है। वे उन्हें नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि ऐसा करके वे कश्मीर में कभी नहीं जीत पाएंगे। राज्य का दर्जा ऐसी बात है मानो किसी व्यक्ति का पैर काटकर उसे जूते पेश करो।
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उन्होंने हमसे सब कुछ ले लिया है- एक ऐसे राज्य से जिसका कभी अपना प्रधानमंत्री हुआ करता था। हमें उस स्थिति से नीचे गिराया गया है। हमें राज्य के दर्जे के लिए क्यों गिड़गिड़ाना चाहिए? वे हम पर कोई उपकार नहीं कर रहे हैं। वे जानते हैं कि पिछले एक साल के दौरान राज्य में कोई विकास नहीं हुआ है। अनुच्छेद-370 का ‘ विकास’ से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने हमें सिर्फ और सिर्फ अपमानित किया है, इसके अलावा कुछ भी नहीं।
भारत में आज स्थिति इतनी खराब है कि लोग नया अंडरवियर भी नहीं खरीद सकते हैं। इनकी नीतियों ने देश के बाकी हिस्सों में लोगों को भिखारी बनाकर रख दिया है। कश्मीर में बिहार समेत देश के अन्य हिस्सों से लोग बेहतर वेतन पाने के लिए काम करने आते हैं। एक ऐसे राज्य में जो ज्यादातर सूचकांकों पर काफी अच्छी स्थिति में है, वे लोग कौन-सा विकास लाना चाहते हैं? हम बीजेपी के विकास के मॉडल को नहीं चाहते हैं। उनका मॉडल उन्हें ही मुबारक!
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यह सरकार वास्तव में एक मजाक है। उसने सर्वोच्च न्यायालय से कहा है कि वे आतंकवाद के कारण यहां 3-जी सेवा बहाल नहीं कर सकते। लेकिन न्यायपालिका को क्या हो गया है? उसने अपनी आंखें बंद कर रखी हैं और रेत की आंधी में शुतुरमुर्ग की तरह व्यवहार कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी ने अब आतंकवाद के कम होने को लेकर गाल बजाना बंद कर दिया है क्योंकि उनके अपने जिला अध्यक्ष को भारी सुरक्षा के बावजूद इस महीने के शुरू में बांदीपुरा में गोली मार दी गई थी। आप जो भी कह लें, यहां घुसपैठ बढ़ी है।
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वे महामारी के इस दौर के बीच कश्मीर में नए डोमिसाइल कानून को आगे बढ़ा रहे हैं। कोविड पूरी दुनिया में निरंकुश सत्ताओं के लिए एक वरदान के रूप में आया है। भारत कागज पर एक लोकतंत्र हो सकता है लेकिन हकीकत यह है कि हम एक बहुसंख्यकवादी शासन की ओर बढ़ रहे हैं जो हम पर एक धर्म, एक भाषा और एक संस्कृति को थोपना चाहता है। हमारे जैसे विविधता वाले देश में यह सब नहीं चलने वाला, इसका नतीजा उल्टा होगा।
मुझे लगता है कि एक देश के रूप में हमने अपनी पहचान खो दी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अब कश्मीर एक त्रि-पक्षीय मुद्दा बन गया है। कश्मीर के बारे में अपने तरीके से बातें फैलाने की उनकी कोशिशें भी सफल नहीं हुई हैं। कश्मीर एक अप्रत्याशित जगह है। सब कुछ ऊपर से शांत दिखेगा और हर किसी को यही लगेगा कि यहां के लोगों पर इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता और फिर अचानक कुछ ऐसा हो जाएगा जो लहरों की तरह प्रतिक्रियाओं को बढ़ाता चला जाएगा।
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