यह बात तो सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही सभी बड़े फैसले करते हैं- मंत्री, बस, मोदी के फैसलों के क्रियान्वयन के लिए हैं। फिर भी, मोदी अपने कुछ मंत्रियों के कामकाज से असंतुष्ट बताए जाते हैं। ऐसे मंत्रियों की छुट्टी होने वाली है। तरह-तरह के राजनीतिक दबाव हैं इसलिए मोदी अपने मंत्रिमंडल में जल्द ही कुछ लोगों को शामिल भी करने वाले हैं।
औपचारिकता के खयाल से मोदी इन दिनों मंत्रियों के कामकाज का आकलन कर रहे हैं। वह मंत्रियों से मिल-जुल रहे हैं और उनके लाए पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन देख रहे हैं। भाजपा के पितृ संगठन आरएसएस ने भी उन्हें फीडबैक दिया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और पार्टी के संगठन मंत्री बीएल संतोष-जैसे कुछ लोगों की बातें भी मोदी ने सुन ली हैं।
मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने, तब से ही अधिकतर बड़े फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय से हो रहे हैं। पहले कार्यकाल में भी विदेश मंत्रालय के सारे फैसले वह खुद ही करते थे। उस वक्त सुषमा स्वराज शो-पीस बनकर ही रह गई थीं। उस समय अरुण जेटली वित्त मंत्री थे। उन्होंने कई लोगों से अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि नोटबंदी के फैसले की जानकारी उन्हें भी मोदी के टीवी पर दिए राष्ट्र के नाम संबोधन से थोड़ी देर पहले ही हुई थी।
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इन दिनों यह जानकारी भी आम है कि वैक्सीनेशन, कोविड प्रोटोकॉल, उपचार के तरीकों और ऑक्सीजन आदि के संबंध में मोदी ने खुद ही निर्णय लिए। वह प्रचार और अधिकार को लेकर इस हद तक सतर्क रहते हैं कि 12वीं की परीक्षा रद्द होने की घोषणा भी उन्होंने खुद की, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक तक को यह अवसर नहीं मिला। वैसे, माना जाता है कि इसी वजह से इस घोषणा से थोड़ी देर पहले निशंक अस्पताल में जाकर भर्ती हो गए। वह जब डिस्चार्ज हुए और उन्होंने शिक्षकों, विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों से फीडबैक के लिए ऑनलाइन सेशन किया, तब भी मोदी वहां अचानक नमूदार हो गए।
सूत्रों की मानें तो कोई मंत्रीअपने मंत्रालय में किसी बिंदु पर अपने मन से विचार-विमर्श शुरू करने से भी कतराता है। किसी को नहीं पता कि कब और कैसे मोदी उसके कामकाज में दखल दे देंगे। प्रधानमंत्री कार्यालय से विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों को कभी भी किसी योजना का अपडेट देने के लिए बुलावा आ जाता है। और ऐसा नियमित तौर पर होता रहता है। मंत्री को कई बार अपने सचिव से पता चलता है कि किस योजना के बारे में पीएमओ की क्या राय है। इस तरह के हालत से बचने के लिए रामविलास पासवान ने एक तरीका निकाल लिया था। निधन से पहले तक वह उपभोक्ता मामलों के मंत्री थे। उनके सचिव जब भी उन्हें पीएमओ से बुलाहट के बारे में बताते थे, तो वह कह देते थे, ‘हां, मुझे पता है। पिछली कैबिनेट बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने मुझे इस बारे में बताया था। आप जाइए और लौटकर आइए तो बताइएगा कि वहां क्या कुछ हुआ।’
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कई मंत्री संभवतः उस हद तक अब भी चतुर नहीं हो पाए हैं। एक किस्सा जानने लायक है। वाम झुकाव रखने वाले मलयालम मनोरमा ग्रुप ने सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को अपने वार्षिक आयोजन में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया। बिल्कुल आखिरी समय में प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें ‘अनुरोध’ प्राप्त हुआ कि प्रधानमंत्री भी इस कार्यक्रम को ऑनलाइन संबोधित करने को इच्छुक हैं। अब आप ही सोचिए, ऐसे किसी समारोह में फोकस में कौन रहेंगे- प्रधानमंत्री या उनके कोई मंत्री।
मोदी और उनकी कोर टीम का ध्यान शासन-प्रशासन से ज्यादा राजनीति, चुनावों और प्रचार पर रहता है। अभी हाल की बात है। एक मंत्रालय में किसी योजना के प्रचार-प्रसार पर चर्चा हो रही थी। एक अधिकारी बोल बैठे कि थोड़ा रुककर यह काम करना चाहिए क्योंकि जमीन पर अभी इसे उतरने और दिखने में समय लगेगा। उस अधिकारी को शायद पता नहीं था कि इस प्रचार अभियान को लेकर पीएमओ अपनी रुचि दिखा चुका है। उस अधिकारी को अगले ही दिन उस योजना की देखरेख से ही नहीं, मंत्रालय के कामकाज से भी रुखसत कर दिया गया। इन दिनों वह किसी कोने में पड़े हैं।
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ऐसे में, समझा जा सकता है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल वगैरह का क्या मतलब है। इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुशील मोदी, सर्वानंद सोनोवाल और कुछ अन्य भाजपा नेताओं के साथ-साथ अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल और निशाद पार्टी प्रमुख प्रवीण निशाद के नाम इस सिलसिले में लिए तो जा रहे हैं लेकिन उससे होगा क्या? असली निशाना यूपी विधानसभा चुनाव हैं इसलिए निगाह उस पर ही रखिए।
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