विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः मोदी ब्रांड सेकुलरिज्म ही आगे का ध्वजवाहक, रुलाने में धर्म-जाति-वर्ग का हर भेद मिटा दिया

मोदी जी जब तक रुला-रुलाकर हमें इतना मजबूत नहीं बना देंगे कि हम धरना-प्रदर्शन क्या, विरोध नामक चिड़िया का नाम तक भूल जाएं, वह हमें रुलाना नहीं छोड़ेंगे। यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर से लेकर लक्षद्वीप तक किसी को भी वह रुलाए बगैर छोड़ते नहीं!

फोटोः विपिन
फोटोः विपिन 

मोदीजी, ओ, मोदी जी, आप रोया मत करो। आपकी बुनियादी जिम्मेदारी, जनता को रुलाना है, खुद रोना नहीं! आप जब रोते हो तो लोग कहते हैं, यह भी रामदेव की तरह पुराना ड्रामेबाज है, रोने का ड्रामा कर रहा है। मगर जब आप रुलाते हो तो कोई नहीं कहता कि नहीं भाई, यह रुला नहीं रहा है, रुलाने का ड्रामा कर रहा है। कोई इस मामले में आपकी 'जेनुइननेस' पर सवाल नहीं उठाता, इसलिए मोदी जी, रुलाओ और रुलाओ। जनता भी आपके आह्वान पर बार-बार रोने को तैयार है। उसे अब प्रतीक्षा रहती है कि अगली बार कब, किस बहाने आप उसे रुलाएंगे। वह जानती है कि आप उसे रुलाएंगे जरूर, मानेंगे नहीं!

वैसे जनता मानती है कि मोदी जी को हमसे प्रेम है, इसीलिए वह हमें रुलाते हैं। पहले कोई प्रधानमंत्री रुलाता था, तो जनता उसकी खटिया खड़ी कर देती थी, मगर आपकी रुलाने की अदा उसे इतनी मस्त लगी कि उसने आपको 2019 में फिर से यह मौका दिया। सोचा होगा कि इस नेता का यह लक्ष्य अभी अधूरा है और हमें भी रोते रहने का अच्छा अभ्यास नहीं हुआ है।

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वैसे आज भी मोदी जी रुलाते हैं तो कई बार हम उन पर गुस्सा हो जाते हैं, जैसे किसानों को ही लीजिए। जब तक रुला-रुलाकर हमें वह इतना मजबूत नहीं बना देंगे कि हम धरने-प्रदर्शन क्या, विरोध नामक चिड़िया का नाम तक भूल जाएं, वह हमें रुलाना नहीं छोड़ेंगे। यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर से लेकर लक्षद्वीप तक किसी को भी वह रुलाए बगैर छोड़ते नहीं!

अब हममें से अधिकांश दुखी तब होते हैं, जब संयोग से कोई एक महीना ऐसा गुजर जाता है, जब रोने का कोई नया कारण वह दे नहीं पाते। इस हालत में जनता उनके स्वास्थ्य की दुआएं करने लगती है। लोग प्रार्थना करने लगते हैं कि हे भगवान, हमारे मोदी जी को जल्दी से जल्दी ठीक कर, ताकि वे हमें ठीक समय पर ठीक तरह से रुला सकें। रोये बिना हमारा जी अब इस दुनिया में नहीं लगता। जीवन सूना-सूना लगता है। एक सूनी नाव, जैसा लगता है, जिसे कभी कवि सर्वेश्वर अपनी कविताओं के चप्पू से चलाया करते थे, अब वे भी नहीं हैं!

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खतरा केवल एक है कि इस तरह कभी वह दिन भी आ सकता है, जब आप रुलाओगे और जनता रोएगी नहीं। जो इतना रो चुके होते हैं कि रोना तक भूल जाते हैं, वे बहुत खतरनाक हो जाते हैं, मगर खतरों से तो मोदी जी खेलते आए हैं। फिर एक ऐसा दिन आएगा, जब कमान किसी और के हाथों में आएगी। वह रुलाएगा और तब भी जनता नहीं रोएगी। फिर भी रुलाने में आपके ऐतिहासिक योगदान को जनता कभी नहीं भूलेगी!

मोदी जी आप वाकई ओरिजिनल हो। आपसे पहले जनता को रुलाने का रास्ता किसी ने आपकी तरह प्रश्स्त नहीं किया था। रुलाना अब आपका धर्म है, ईमान है, आपका हिंदुत्व है, आपका राम मंदिर है, आपकी बुलेट ट्रेन है, आपका सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट है, आपका जल्दी ही बनने वाला बंगला है। सात साल तक आपने हमें रुलाया। तीन साल और अच्छी तरह रुलाना। इसमें कोई कमीबेशी न रह जाए, वरना जनता आपको भी घर का रास्ता दिखा देगी, जबकि आप मान बैठे हैं कि प्रधानमंत्री निवास ही आपकी अंतिम शरणस्थली है!

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मुझ जैसे आलोचक भी अब खुश हैं कि रुलाने के मामले में मोदी जी ने हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई का भेद मिटा दिया है। भूगोल-इतिहास का भेद मिटा दिया है। पहले लोग समझते थे कि यह हिन्दुओं को नहीं रुलाएगा, केवल मुसलमानों को निबटाएगा। लोगों की इस सोच पर आप शत-प्रतिशत खरे उतरे भी। फिर धीरे-धीरे आपको समझ में आया कि यह देश सेकुलरिज्म के बिना चल नहीं सकता!

तो आपने ऐसी जुगत भिड़ाई कि सब रोने लगे। आपने रुलाने में जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र की ही नहीं, वर्ग की दीवारें भी तोड़ दीं। आपने कोरोना काल में यह ऐसा क्रांतिकारी काम किया है कि आने वाली कई पीढ़ियां यह नहीं भूलेंगी कि इस आदमी ने दिखा दिया था कि बेटा हम तुम्हें ऐसे संकट में डालेंगे कि ये रुपये-पैसे का जो तुम्हें बहुत घमंड है, वह चकनाचूर हो जाएगा। झोला लेकर मैं नहीं, अब तुम जाओगे। यह मोदी ब्रांड सेकुलरिज्म है। यही आगे का ध्वजवाहक है!

हां यह सही है कि अडाणी-अंबानी नहीं रोए। जो हवाई जहाज किराए पर लेकर देश से भाग सकते थे, वे नहीं रोए। जो घोटाला करने की छूट हासिल करके सुरक्षित विदेश भेज दिए गए, वे नहीं रोए। रोते भी क्यों? पुराने सेकुलर भी इन्हें रुलाते नहीं थे!

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