विचार

सियासत की धुरी पर खड़े मध्यवर्ग की मजदूरों से ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ तो पहले से है, लॉकडाउन ने उसे और बढ़ा दिया है

मध्यवर्ग संसदीय राजनीति की धूरी पर खड़ा हैं और उसकी मजदूर वर्गों के साथ सोशल डिस्टेंसिंग बढ़ती चली गई हैं। राजनीतिक स्तर पर मजदूर केवल दया और कृपा का पात्र बना हुआ हैं।

फोटो : Getty Images
फोटो : Getty Images 

आखिर क्या करें मजदूर? 24 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने टेलीविजन में खड़े होकर चार घंटे के भीतर रात बारह बजे से पूरे देश में तालाबंदी का फैसला सुना दिया तो मजदूर क्या करते? मजदूर का अपना सब कुछ मजबूर होता है। वे चार घंटे के अंदर सामान समेटकर, अपना काम छोड़कर , मालिक, ठेकेदार, छोटा ठेकेदार या कमीशन पर मजदूर सप्लाई करने वाली कंपनी से फटाफट हिसाब किताब करके, उनसे पैसे लेकर और फिर गाड़ी पकड़कर फटाफट हजार, दो हजार, तीन हजार किलोमीटर नहीं निकल सकते हैं। जैसे प्रधानमंत्री का फैसला सुनते ही दिल्ली , मुंबई, सूरत और न जाने ऐसे कितने शहरों के सभ्य, सुसंस्कृत और पढ़े लिखे लोगों ने जेब में पैसे डाले और अपने घरों में किसी तरह की तकलीफ नहीं हो इसका इंतजाम करने निकल गए।

Published: undefined

यदि मोटा अनुमान लगाएं तो असंगठित क्षेत्र के 42 करोड़ मजदूरों में से नामालूम तादाद में मजदूर ल़ॉक डाउन में फंसे हो सकते हैं। असंगठित क्षेत्र के लिए कामगार भारत में एक राज्य के अंदर दूर दराज के जिलों में अपनी मेहनत बेचने के लिए जाते हैं। एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हैं और इसकी सीमा कश्मीर से कन्या कुमारी तक है। कामगार भारत से बाहर दूसरे देशों में भी जाते हैं। प्रधानमंत्री के ऐलान के वक्त इनके बारे में सोचा गया ?

ऐसा नहीं हैं कि ये अचानक फैसला लिया गया। फैसला लिया जा चुका था और जरुरी राजनीतिक काम निपटाने के लिए पहले 19 मार्च को प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन की मॉक ड्रिलिंग शुरू कर दी थी। 22 मार्च को जनता के कर्फ्यू और प्रधानमंत्री की ताली थाली बजाने का दिन मुकर्रर हुआ। फिर 24 मार्च को 15 अप्रैल तक के लिए नगरबंदी और इसके बीच 5 अप्रैल को “ दीपावली ” मनाने का ऐलान किया गया। फिर 14 अप्रैल को देश को बचाने में मदद के लिए 3 मई तक के लिए नगरबंदी को बढ़ाने का समर्थन हासिल किया गया।

Published: undefined

24 मार्च को नगरबंदी से पहले देश से बाहर रह रहे “होनहारों” को हवाई रास्ते से अपने देश में वापस लाने के लिए सरकार की पूरी मशीनरी लगा दी गई। कोरोना विदेशों से ही आया है। तालाबंदी से पहले चार घंटे का समय उनके लिए पर्याप्त हो सकता है जिनके पास केवल और केवल अपने घरों में सुख चैन में खलल नहीं पड़ने के इंतजाम करने हो। सरकार की मशीनरी का इस्तेमाल कर तत्काल ही इन घरों में हिन्दू पौराणिक महाकाव्यों पर आधारित तैयार टैलीविजन के कार्यक्रमों का फिर से प्रसारण करने का फैसला कर मनोरंजन का भी इंतजाम कर दिया गया। टेलीविजन पर रामायण और महाभारत ने पहले भी भारतीय जनता पार्टी को अपने सामाजिक और आर्थिक आधार के लिए ज्यादा वोटों का समर्थन हासिल करने में मदद की है।

भारत की संसदीय प्रणाली में राजनीतिक पार्टियों का अपना सामाजिक एवं आर्थिक वर्गों के बीच आधार है। अपने सामाजिक आर्थिक वर्गों के आधार के अलावा सभी प्रतिद्वंदी राजनीतिक पार्टियों के मुकाबले चुनाव में ज्यादा मत हासिल करने में कामयाब होना ,यह अलग बात हैं। वोटों का समर्थन हासिल कर लेना और सामाजिक -आर्थिक वर्गों के बीच आधार में भिन्नता है। जरूरी नहीं है कि उनके सामाजिक-आर्थिक आधार से दूर रहने वाले वर्ग ने किसी चुनाव में किसी राजनीतिक दल का समर्थन कर दिया तो वे उनके सामाजिक आर्थिक आधार के हिस्से हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के नेता है और भारतीय जानता पार्टी का सामाजिक-आर्थिक आधार देश के असंगठित मजदूर नहीं रहे हैं।

Published: undefined

दो स्थितियां होती है। एक तो सरकार को देश में सबके लिए सरकार माना जाता हैं। लेकिन जो पार्टियां होती है वह सबकी पार्टी नहीं होती है। यह बड़ा मुश्किल काम है कि एक सीमित सामाजिक और आर्थिक आधार पर राजनीति करने वाली पार्टी का नेता सरकार का नेतृत्व करते हुए सभी के लिए एक सामान होने की उदारता को ग्रहण कर लें। भारतीय जनता पार्टी जिस तरह विचारों के साथ खड़ी हुई है वह विभिन्न वर्गों के बारे में अपनी एक दृष्टि रखती है और उसी के आधार पर सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी कायम रखती है। यह सामाजिक दूरी हर वर्ग के बारे में उसकी सांस्कृतिक विचारधारा द्वारा परिभाषित होती है।

अब सरकारी ढांचे के बारे में विचार कर सकते हैं। दो महत्वपूर्ण अनुभव इन 70 वर्षों से ज्यादा के कार्यकाल में सामने आए हैं। पहला तो यह है कि सरकार के उपरी ढांचे से नीचे लोगों तक लोगों के बेहतरी और हितों के लिए जो राशि तय होती है वह केवल 10 से 15 प्रतिशत तक ही पहुंचती है। 85 प्रतिशत तक की राशि नहीं पहुंचने का एक ढांचा बना हुआ है। दूसरा अनुभव यह है कि सरकार का ढांचा कमजोर वर्गों या जातियों के लिए निर्धारित बजट खर्च ही नहीं हो पाता है। यह अक्षमता कमजोर वर्गों के हितों के लिए योजनाओं के साथ ही होती है और यह सरकारी ढांचे में एक विचारधारात्मक ढांचे के रूप में समानांतर मौजूद है।

Published: undefined

इस तरह हम कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री के रूप में सोचना और एक राजनीतिक पार्टी के नेता के तौर पर सोचते रहना, दो तरह की स्थितियां होती है। हम यह कह सकते हैं कि नेतृत्व की राजनीतिक और सरकार की विचारधारात्मक पृष्ठभूमि मजदूरों के साथ सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी का नजर आता है। सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी सरकार की मशीनरी का इस्तेमाल करने के लिए तभी दबाव महसूस करती है जब मजदूर राजनीतिक तौर पर दबाव बनाने की स्थिति में होते हैं।

इस वक्त संसदीय राजनीति से मजदूर पूरी तरह गायब है। लोकसभा में शायद ही कोई प्रतिनिधि हो सकता है जो कि खुद के मजदूर होने की पृष्ठभूमि को जाहिर करता है। मध्यवर्ग संसदीय राजनीति की धूरी पर खड़ा हैं और उसकी मजदूर वर्गों के साथ सोशल डिस्टेंसिंग बढ़ती चली गई हैं। राजनीतिक स्तर पर मजदूर केवल दया और कृपा का पात्र बना हुआ हैं।

Published: undefined

शायद ही संसदीय राजनीति में आगे निकलने की होड़ में फंसा कोई नेतृत्व यह भी देश को ठीकठाक बता सके कि कितने प्रकार के मजदूर होते हैं। महीने भर का वेतन पाने वाले मजदूरों की संख्या नगण्य होती चली गई हैं। एक मजदूर के कई कई मालिक होते हैं। दिहाड़ी मजदूरों में भी रोजाना की दिहाड़ी सुनिश्चित नहीं हैं। दिहाड़ी में भी मालिकों के शर्तों के मुताबिक जितना काम उतनी ही मजदूरी। मजदूर एक दिन भी बीमार होने की भी मोहलत नहीं ले सकते हैं। कमीशन पर जीने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है। यानी सरकार के विज्ञापनों में मजदूरी की दर का जो प्रचार होता है वह मजदूरों के लिए नहीं होता है। बिचौलियों का हिस्सा उसमें शामिल होता है।

यह एक महत्वपूर्ण सवाल है कि विचारधारात्मक स्तर पर जिन ढांचों की सोशल डिस्टेंसिग बनी हुई है क्या वह रास्तों में फंसे मजदूरों, किसी छत्त के नीचे बंद मजदूरों के हालात के बारे में कल्पना भी कर सकती है? सचमुच कहें तो भारत में सामाजिक ताने बाने की जड़े गहरी नहीं होती तो कोरोना से ज्यादा भयावह भूख से मरने वालों की तादाद होती।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined