क्या सरकार आलोचनाओं से घबरा गई है? या आर्थिक मोर्चे पर विफलताओं की चर्चाओं से डरी हुई है? या फिर आंदोलनों को लेकर जवाब दे पाने की स्थिति में नहीं है? यदि नहीं तो सरकार की ओर से कैसे प्रेस और मीडिया को नियंत्रित करने, पत्रकारों को ‘ब्लैक लिस्टेड’ तक कर देने का एकाएक फैसला ले लिया गया था?
ऐसे कई सवाल उस समय उठे थे, जब कुछ घंटों पहले ही लिए गए फैसले ने सरकार की मंशा पर सवाल उठा दिए थे, जिसमें ‘फेक न्यूज’ के बढ़ने की बात कहते हुए पत्रकारों की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने और ‘ब्लैक लिस्टेड’ तक कर देना शामिल था ! लेकिन, फैसले और इसके दूरगामी प्रभाव को देखते हुए प्रधानमंत्री ने खुद आगे बढ़कर न केवल इसे बदल दिया, बल्कि यह तक कह दिया कि मामला केवल भारतीय प्रेस परिषद यानी प्रेस काउंसिल में ही उठाया जाना चाहिए। निश्चित रूप से सरकार इस पूरे मामले में बैकफुट पर नजर आई। लेकिन सरकार की मंशा पर तो सवाल उठेंगे ही !
यह नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी ही 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' की सबसे बड़ी पक्षधर होने का दंभ भरती थी। यह भी सही है कि तमाम राजनैतिक दलों में बीजेपी ही प्रमुख रही है, जिसके प्रवक्ता पहले भी और अब भी काफी मुखर होकर अपनी बातें विपक्ष में रहते हुए भी और सत्ता में आने के बाद भी कहने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में सूचना-प्रसारण मंत्री का यह फैसला निश्चित रूप से कई तरह के सवालों को खड़ा करता है। प्रधानमंत्री की ओर से भले ही मरहम लगाने की कोशिश की गई है, लेकिन फैसले ने कई चर्चाओं को विषय जरूर दे दिया है।
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यह भी अहम हो चला है कि क्या स्मृति ईरानी ने, जो अतिउत्साह और लीक से हटकर काम करने के लिए जानी जाती हैं, बिना प्रधानमंत्री कार्यालय को बताए फैसला किया? या इसके पीछे कोई और वजह है? अब कारण जो भी हों, उनसे क्या। मुख्य तो यह है कि स्मृति ईरानी की नजरों में ‘फेक न्यूज’ की परिभाषा क्या है? बिना परिभाषा तय हुए उन्होंने इतने बड़े और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को प्रभावित करने वाला, जानते-बूझते हुए कदम उठा लिया कि जो करने जा रही हैं, वह न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, वरन आपातकाल के अघोषित ऐलान की पुनरावृत्ति जैसी बात होगी।
गौरतलब है कि स्मृति ईरानी के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पत्रकारों की मान्यता संबंधी गाइड लाइंस को संशोधित करते हुए कहा था कि यदि कोई पत्रकार फर्जी खबरों के प्रकाशन या प्रसारण का दोषी पाया गया तो उसे ‘ब्लैकलिस्टेड’ कर दिया जाएगा। इसमें फर्जी समाचार के प्रकाशन या प्रसारण की पुष्टि होती है तो पहली बार मान्यता छह महीने के लिए निलंबित होगी, दोबारा ऐसा करने पर साल भर मान्यता निलंबित रहेगी। लेकिन तीसरी बार उल्लंघन करते पाए जाने पर उस पत्रकार को हमेशा के लिए ब्लैकलिस्टेड कर दिया जाएगा और उसकी मान्यता स्थायी रूप से रद्द कर दी जाएगी, यानी पत्रकारिता के पेशे से छुट्टी।
आगे कहा था कि फैसला 'प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया' और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) लेगी जो प्रिंट और टेलीविजन मीडिया की नियामक संस्थाएं हैं। इस फैसले के बाद चुनावी तैयारियों में जुटी मोदी सरकार पर कई तरह के सवाल उठने शुरू हो गए थे। स्थिति की नजाकत को भांपते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत चतुराई दिखाई, लेकिन सवाल तो यह बरकरार है कि क्या इसे प्रेस/मीडिया के प्रति सरकार का नजरिया नहीं कहा जाएगा?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)
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