लीजिए, जो भी कुछ कसर थी, वह हज़रत मौलान अरशद मदनी ने पूरी कर दी। जी हां, आप इस बात से परिचित हैं कि मौलाना अरशद मदनी ने आरएसएस के दिल्ली मुख्यालय केशव कुंज जाकर संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की। एक तरह से कहा जाए तो उन्होंने संघ मुख्यालय में हाजिरी लगाई। खबर आई कि मौलाना अरशद और संघ प्रमुख एक ही मंच पर आने पर विचार करेंगे।
जाहिर है कि इस खबर के आते ही मुस्लिम समुदाय में तरह-तरह की सरगोशियां शुरु हो गईं। सवाल यह उठा कि आखिर मौलाना को ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि वह खुद चलकर संघ के द्वार जा पहुंचे। वैसे इस बारे में न तो मौलाना अरशद मदनी ने और न ही उनकी संस्था जमीयत उलेमाए हिंद ने कोई स्पष्टीकरण दिया है। और तो और संघ भी इस मामले में चुप है। लेकिन अटकलें और कयास तो लगने ही थे, और उनका कोई जवाब अभी तक सामने नहीं है।
लेकिन, जिस तरह यह मामला सामने आया है वह कुल मिलाकर असमंजस में डालने वाली बात है। दरअसल मौलाना और भागवत की मुलाकात पिछले शुक्रवार को हुई। उस दिन तो इस बारे में कोई खबर या सूचना सामने नहीं आई। लेकिन अगले दिन शनिवार को संघ और बीजेपी से नजदीकियों वाले एक न्यूज चैनल ने इस खबर को दिखाया। कुछ ही देर में इस मुलाकात से जुड़ी एक न्यूज क्लिप जमीयत की अपनी वेबसाइट पर भी नजर आई। इसी के बाद खबर फैल गई और खासतौर से मुस्लिम समुदाय में शोर मच गया कि अरशद मदनी खुद चलकर संघ के द्वार पर दस्तक देने पहुंचे हैं।
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इससे एक बात तो साफ हो गई कि इस खबर के सामने आने से पहले तक जमीयत की तरफ से इस मुलाकात का कोई ऐलान नहीं किया गया था। तो क्या जमीयत और मौलाना अरशद इस मुलाकात को राज रखना चाहते थे। लेकिन संघ ने जानबूझकर अपने पसंदीदा चैनल पर इस मुलाकात की खबर सार्वजनिक कर भांडा फोड़ दिया। अब जमीयत के लिए इस बात से इनकार करने का कोई रास्ता ही नहीं बचा था। लेकिन जमीयत ने कोई बड़ा बयान इस बारे में नहीं दिया है। लेकिन एक वेबसाइट को दिए एक इंटरव्यू में मौलाना अरशद मदनी ने यह जरूर कहा कि आरएसएस अपने नजरिए में बदलाव ला सकता है।
यह ऐसा बयान है जिस पर पहली नजर में विश्वास नहीं किया जा सकता। यह ऐसा काम है जिसे महात्मा गांधी और पंडित नेहरू जैसे बड़े नेता भी नहीं करा सके, उसके बारे में मौलाना अरशद कैसे इतने भरोसे के साथ कह सकते हैं। आखिर किस भ्रम में हैं मौलाना अरशद मदनी।
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लेकिन, सवाल यह है कि वह जमीयत कल तक अदालत से लेकर सड़क तक संघ का विरोध करती रही है, आखिर उसके प्रमुख रातों-रात खुद संघ के दरबार में हाजिरी लगाने कैसे चले गए। सूत्रों के मुताबिक अरशद मदनी और संघ प्रमुख भागवत के बीच कुछ लोगों की मध्यस्थता से बातचीत इस साल हुए लोकसभा चुनाव के पहले से चल रही थी। इसी संदर्भ में मौलाना अरशद मदनी और मोहन भागवत की मुलाकात हुई। यूं तो आधे घंटे की मुलाकात होनी थी, लेकिन बताया जाता है कि जुगलबंदी ऐसी हुई कि दोनों करीब डेढ़ घंटे तक बातें करते रहे।
जाहिर है कि भारतीय मुसलमानों के लिए यह कोई छोटी घटना नहीं है। क्योंकि जमीयत उलेमाए हिंद कोई मामूली संस्था तो है नहीं। इसका संबंध मदरसा दारुल उलूम देवबंद से भी है और दारुल उलूम देवबंद मुग़ल काल के बाद से मुसलमानों के शरई (इस्लामी कानून) मामलों में केंद्रीय भूमिका निभाता रहा है। यहां तक कि दारुल उलूम के मानने वाले आमतौर पर देवबंदी मुसलमान कहलाए जाते हैं।
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जमीयत उलेमाए हिंद अर्ध राजनीतिक -सामाजिक संस्था है जो स्वतंत्रता आंदोलन के समय से सक्रिय है। यह वह संस्था है जिसने पाकिस्तान बनाए जाने और मोहम्मद अली जिन्नाह का खुलकर विरोध किया था। मदरसा दारुल उलूम और जमीयत से संबंध रखने वाले उलेमा ने अंग्रेजों का इस हद तक विरोध किया था कि उनमें से कुछ लोगों को जेल तक में डाला गया था, लेकिन उन्होंने कभी अंग्रेजों के सामने हथियार नहीं डाले।
दरअसल मौलाना अरशद मदनी जिस खानदान से संबंध रखते हैं, उसका भी स्वतंत्रता आंदोलन से गहरा रिश्ता रहा है। खुद मौलान अरशद के पिता मौलान हुसैन अहमद मदनी स्वतंत्रता आंदोलन में खुलकर सक्रिय थे, बल्कि उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर काम किया था। देश की आजादी और खिलाफत आंदोलन (असहयोग आंदोलन) में मौलान हुसैन अहमद ने बड़ी भागीदारी की थी। ऐसे महान पिता के पुत्र मौलाना अरशद मदनी को संघ के दरबार में हाज़िरी लगाने में कोई एतराज नहीं आता।
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सवाल यह है कि आखिर दारुल उलूम देवबंद और जमीयत पर ऐसा कौन सा दबाव था या कौन सी मजबूरी थी कि चुनाव के बाद से उनके दिलों में संघ के लिए एकाएक नर्म जगह पैदा हो गई। मौलाना अरशद मदनी कोई पहले व्यक्ति नहीं हैं जिनका हाल के दिनों में संघ से या मोदी से संपर्क हुआ हो। इससे पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार देश के पीएम बने तो उनके पहले भाषण में, उन्होंने मुसलमानों के लिए कुछ खास बातें कहीं। पीएम के इस बयान की मौलाना अरशद मदनी के भतीजे और जमीयत के दूसरे नेता महमूद मदनी ने एक पत्र लिखकर प्रशंसा की थी।
इसके बाद खबर आई थी कि संघ प्रमुख मोहन भागवत एकाएक ईद के बाद दारुल उलूम देवबंद पहुंच गए थे जहां, उनसे दारुल उलूम के उलेमाओं ने बातचीत की थी। यानी यह साफ है कि दारुल उलमू और मोदी-संघ के बीच कोई न कोई तो खिचड़ी पक रही है। इसका सिलसिला अब यहां तक पहुंच गया है कि मौलान अरशद मदनी खुलकर संघ प्रमुख से मिलने लगे हैं। बात यहां तक भी जा पहुंची है कि दोनों एक ही मंच पर साथ आकर हिंदू-मुसलमान के बीच अमन और शांति का संदेश देने पर विचार कर रहे हैं। अखबारों में इन दोनों की मुलाकातों के बारे में प्रकाशित खबरें तो ऐसा ही इशारा करती हैं।
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अब जरा गौर फरमाइए, कि वह संघ जो मुसलमानों की शरीयत (इस्लामी कानून) से जुड़े पर्सनल लॉ को खत्म करने पर आमादा है, जिस संघ ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विरोध किया और जिसकी एक संस्था विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या से बाबरी मस्जिद हटाने का आंदोलन चलाया, जिसके नतीजे में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया और उसके बाद हुए दंगों में हजारों मुसलमान मारे गए। वह संघ जिसने गुजरात दंगों की निंदा आज तक नहीं की, और वह संघ जो मुसलमानों को इस देश में दूसरे दर्जे का नागरिक मानता हो, उसी संघ को अब हिंदू-मुस्लिम के बीच अमन और शांति की इतनी चिंता हो गई कि वह मौलान अरशद मदनी के साथ मिलकर एक मंच से काम करने को तैयार नजर आने लगा है।
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यह बातें मौलाना अरशद मदनी तो मान सकते हैं, लेकिन आम मुस्लिम समुदाय की समझ में नहीं आने वाली बातें हैं यह। मौलाना अरशद मदनी जमीयत के प्रमुख हैं और जिस हैसियत में उन्होंने मोहन भागवत से मुलाकात की थी, उनकी जिम्मेदारी है कि वह सिर्फ जमीयत के सदस्यों को ही नहीं, बल्कि पूरे मुस्लिम समुदाय को जवाब दें कि आखिर संघ के साथ मुलाकात के क्या कारण और मकसद थे। और यह भी बताएं कि इस मुलाकात आखिर नतीजा कुल मिलाकर क्या रहा?
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