विचार

देश के नाम संबोधन में कई तथ्य छिपा गए प्रधानमंत्री, राज्यों को दोष देने में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की बात दबा गए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में ऐलान कर दिया कि पूरे देश को मुफ्त मिलेगी कोरोना वैक्सीन। लेकिन इस ऐलान में उन्होंने सारा दोष राज्य सरकारों पर मढ़ दिया। साथ ही कई तथ्य भी प्रधानमंत्री छिपा गए।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

देश में कोरोना की आमद के बाद बीते 15 महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज (सोमवार, 7 जून को) एक बार फिर देश को संबोधित किया। इस बार उनका पूरा भाषण कोरोना महामारी और इससे लड़ने के लिए वैक्सीन पर केंद्रित था। उन्होंने ऐलान किया कि आने वाले दिनों में वैक्सीनेशन का सारा काम केंद्र सरकार अपने हाथ में लेगी और सभी राज्यों को वैक्सीन मुफ्त में मुहैया कराई जाएगी। उन्होंने यह ऐलान भी किया कि देश में बनने वाली कुल वैक्सीन का 25 फीसदी निजी अस्पतालों को दिया जाएगा और निजी अस्पताल वैक्सीन की कीमत के अलावा प्रति डोज़ अधिकतम 150 रुपए सर्विस चार्ज के रूप में ले सकेंगे। पीएम ने कहा कि अब देश के लिए सारी वैक्सीन हासिल करने का काम केंद्र सरकार ही करेगी और राज्यों को समय रहते बता दिया जाएगा कि किस राज्य को कब और कितनी वैक्सीन खुराकें मिलेंगी। उन्होंने घोषणा की कि 21 जून से देश में 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन मुफ्त में दी जाएगी। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को भी दीवाली तक बढ़ाने का ऐलान किया। इस योजना में गरीबों को राशन मुफ्त दिया जाता है।

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यह तो रही प्रधानमंत्री की घोषणाएं। लेकिन अपने भाषण की शुरुआत में प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा, वह भारत जैसे विविधता वाले लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री के शब्द कम और चुनावों के दौरान किसी राजनीतिक दल के नेता के ही अधिक प्रतीत हुए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 2014 से पहले तक देश में वैक्सीनेशन कवरेज सिर्फ 60 फीसदी था, और वैक्सीन हासिल करने में दशक लग जाते थे। प्रधानमंत्री का यह दावा तथ्यात्मक रूप से सही प्रतीत नहीं होता। सिर्फ पोलियो की ही बात करें तो भारत को जनवरी 2014 में पोलिय मुक्त घोषित किया जा चुका है, वह भी इससे पहले के तीन साल तक देश में पोलियो का एक भी केस सामने न आने के बाद। भारत में पोलियो का आखिरी केस जनवरी 2011 में सामने आया था। और इस उपलब्धि का कारण सिर्फ वैक्सीन ही थी जिसे पोलियो ड्रॉप कहा जाता था, या फिर प्रचलित भाषा में दो बूंद जिंदगी की। तो वैक्सीन निर्माण, वैक्सीन विकास और देश को वैक्सीन उपलब्ध कराने का पीएम का दावा सही नहीं लगता।

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अब दूसरी बात, प्रधानमंत्री ने कहा कि इस साल जनवरी में वैक्सीनेशन की शुरुआत से लेकर अप्रैल अंत तक वैक्सीनेशन का सारा काम केंद्र सरकार की देखरेख में ही हो रहा था। यानी वैक्सीन को खरीदने से लेकर उसके वितरण तक का काम केंद्र ही कर रहा था। पीएम का कहना था कि इसके लिए सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और संसद में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत के बाद ही ऐसी व्यवस्था की गई थी। लेकिन अगर मीडिया रिपोर्ट्स ही उठाकर देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों के साथ बैठके किस तरह की रही हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा बैठक का सीधा प्रसारण करने और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा पीएम से फोन पर हुई बातचीत सामने रखने से स्थिति स्पष्ट हो जाती है। तो पीएम का यह कहना है कि सारी व्यवस्था राज्यों से बात करके तय हुई थी, सही नहीं है।

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तीसरी बात, प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्य खुद ही चाहते थे कि उन्हें भी वैक्सीनेशन कार्यक्रम में जिम्मेदारी दी जाए। यहां प्रधानमंत्री ने संविधान का भी जिक्र किया कि संविधान के अनुसार स्वास्थ्य और आरोग्य तो राज्यों का मामला है। पीएम ने कहा कि राज्यों के इस आग्रह को मानते हुए वैक्सीनेशन का 25 फीसदी काम राज्यों को दे दिया गया। लेकिन यहां पीएम ने देश को यह स्पष्ट नहीं बताया कि इस 25 फीसदी काम में क्या-क्या दिया गया। रिकॉर्ड के लिए बता दें कि केंद्र ने ऐसा फैसला करने से पहले वैक्सीन की कीमतें तय कर दीं। भारत में वैक्सीन बनाने वाली दोनों कंपनियों ने भी ऐलान कर दिया कि राज्यों को वैक्सीन की कीमत ज्यादा चुकाना पड़ेगी और केंद्र को सस्ते दामों पर मिलती रहेगी। दूसरा यह कि यह जानते हुए भी कि देश को जितनी वैक्सीन की जरूरत है, उतनी वैक्सीन का उत्पादन अभी नहीं हो पा रहा है, केंद्र ने फिर भी नियम बना दिया कि जितनी भी वैक्सीन तैयार होंगी उसका 50 फीसदी केंद्र सरकार ही खरीदेगी। इसके अलावा यह जानते हुए भी कि विश्व की बाकी कंपनियां किसी भी राज्य सरकार से सीधे सौदा नहीं करेंगी, और केंद्र सरकार से ही सौदा करेंगी, केंद्र ने दुनिया की कंपनियों से राज्यों को वैक्सीन खरीदने के लिए कह दिया। एक और सबसे अहम काम केंद्र सरकार ने यह किया कि देश में वैक्सीन की पर्याप्त उपलब्धता न होने के बावजूद 1 मई से 18 से 45 वर्ष आयुवर्ग के लिए वैक्सीनेशन शुरु करने का ऐलान कर दिया।

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इस ऐलान के बाद वैक्सीन के लिए अफरा-तफरी मचना तय थी। प्रधानमंत्री जिस कोविन ऐप की तरीफ अपने भाषण में कर रहे थे, वह जवाब दे गया और उस पर वैक्सीन लगवाने का स्लॉट मिलना दूभर हो गया।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि एक साल के भीतर ही भारत ने कोरोना की वैक्सीन तैयार कर ली। उन्होंने कहा कि भारत के पास इस समय दो देसी वैक्सीन हैं। उनका भाव ऐसा था मानो यह भी उन्हीं की सरकार की उपलब्धि हो। लेकिन यहां ध्यान देना होगा कि जो दो वैक्सीन इस समय देश में उपलब्ध हैं, उन्हें बनाने वाली कंपनियों की स्थापना मोदी के सत्ता में आने से दशकों पहले हो चुकी थी।

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पूरे भाषण में पीएम मोदी ने ऐसा जताया मानो देश में वैक्सीन को लेकर मची मारा-मारी और राज्यों की अक्षमता के चलते उन्होंने यह फैसला लिया है कि पूरे देश में वैक्सीनेशन केंद्र करेगा और सबको मुफ्त वैक्सीन मिलेगी। लेकिन यहां याद दिलाना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट लगातार केंद्र को निर्देश देता रहा है कि पूरे देश में वैक्सीनेशन की नीति होनी चाहिए।

एक और बात जो तथ्यात्मक रूप से प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में गलत थी वह थी अभी तक देश में दी गई कोरोना वैक्सीन की संख्या। प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस समय वे देश से संबोधित हैं उस समय तक देश में 23 करोड़ वैक्सीन की डोज दी जा चुकी हैं। उनके इस बयान से ऐसा भाव आता है कि देश में 23 करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है। लेकिन वास्तविकता यह है कि देश में अब तक ऐसे लोगों की संख्या 4,62,71,709 (4 करोड़ 62 लाख, 71 हजार, 7 सौ 9 है) जिन्हें कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज दी जा चुकी हैं।

प्रधानमंत्री की इस घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस ने सही ही कहा है कि आंकड़ों की बाजीगरी के बजाय हकीकत देश के सामने रखते पीएम तो सही होता। कांग्रेस ने यह चुटकी भी ली है कि पूरे देश को वैक्सीन मुफ्त मुहैया कराने के लिए इतना लंबा चौड़ा भाषण और बातें करने के बजाय पीएम ने राहुल गांधी के ट्विटर ही चेक कर लिए होते तो सबकुछ आसान हो जाता।

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