विचार

ममता का प्रस्ताव बेकार है, कांग्रेस नेतृत्व में ही कोई गठबंधन बीजेपी का मुकाबला कर सकता है : बालासाहेब थोराट

सोनिया जी ने राजीव जी के बाद कठिन परिस्थितियों में कांग्रेस का जिम्मा संभाला और अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन किया। एक राजनीतिज्ञ की पत्नी और पार्टी के पहले परिवार की बहू होने की वजह से कांग्रेस में जोश भरने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 
कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को दिशा देते हुए सोनिया जी ने अद्भुत कार्य किए। उनकी निगरानी में सभी फैसले के केन्द्र में आम लोग थे। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत ऐसा विधान बनाया गया कि छह साल तक के हर बच्चे को स्कूल में एडमिशन की गारंटी मिले। खाद्य सुरक्षा कानून ने सभी भारतीयों को भूख से बचाए रखा। अन्य उल्लेखनीय भागीदारी भूमि अधिग्रहण कानून, रोजगार गारंटी स्कीम और सूचना के अधिकारी कानून थे। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आंतरिक या वाह्य- विभिन्न कारणों से बुरी तरह प्रभावित होने वाली अर्थव्यवस्था को बचाए रखा।

सोनिया जी कांग्रेस परिवार की कुलमाता हैं। उनकी प्रसन्नता में परिवार के सभी सदस्यों की खुशी है। इस परिवार के हर सदस्य पर वे सभी काम पूरे करने का दायित्व है जो उन्हें दिया गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं के प्रति अपनी मातृत्व-समान प्रवृत्ति और इस तरह की बड़ी पार्टी के अपने कुशल प्रबंधन के अतिरिक्त सोनिया जी ने राष्ट्रीय मुद्दों से निबटने में अपनी क्षमता प्रदर्शित की है।

उन्होंने अत्युत्तम संप्रेषण कुशलताओं का भी प्रदर्शन किया है। किसी भी मुद्दे पर उनके साथ कोई भी विचार-विमर्श पांच-छह मिनट से अधिक नहीं होता और फिर वह अगले मुद्दे की ओर बढ़ जाती हैं। लेकिन इस छोटी अवधि में ही हर व्यक्ति संतुष्ट हो जाता है। मैं उनकी क्षमताओं से विस्मय में हूं और उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता हूं। जब वह किसी पार्टी कार्यकर्ता से किसी मुद्दे पर जानकारी मांगती हैं और वह व्यक्ति उन्हें उचित उत्तर देता है, तब वह काफी खुश हो जाती हैं। मैंने अपने समर्पित कार्य से उनका विश्वास अर्जित किया है। उन्होंने न मुझे एक महत्वपूर्ण विभाग का मंत्री बनने का मौका दिया बल्कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में पार्टी नेता के तौर पर चुनने के अलावा राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य भी नियुक्त किया।

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सोनिया जी ने राजीव जी के बाद सबसे कठिन परिस्थितियों में कांग्रेस पार्टी का जिम्मा संभाला और उसके बाद अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन किया। एक राजनीतिज्ञ की पत्नी और पार्टी के पहले परिवार की बहू होने की वजह से कांग्रेस में फिर जोश भरने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने पार्टी के काम के बीच परिवार का हालचाल नियमित तौर पर जान-पूछकर तुरंत ही पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ अच्छा तादात्म्य बना लिया। उन्होंने ऐसी पार्टी को विस्तार देने का जिम्मा पूरा किया जिसकी उनके परिवार ने स्थापना की थी और जिसके लिए अपने प्राण भी उत्सर्ग कर दिए।

मुझे सोनिया जी के सक्षम नेतृत्व में पार्टी के काम में भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं ऐसे परिवार से आता हूं जो पीढ़ियों से कांग्रेस के प्रति समर्पित रहा है। मेरे दादा जी ने महात्मा गांधी के साथ नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया था। मेरे पिता भी सब दिन कांग्रेस के प्रति निष्ठावान रहे। 1978 में जब शरद पवार पार्टी से अलग हो गए, तब मेरे पिता को पता चला कि उनका नाम उस सूची में शामिल है जिसने पवार का साथ दिया है। उन्होंने तत्काल ही सुनिश्चित किया कि उनका नाम उस सूची से हटाया जाए। उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी क्योंकि वह कांग्रेस की विचारधारा के प्रति समर्पित थे। मेरे दादा जी ने अपनी पार्टी के स्थापना के शताब्दी दिवस समारोहों में हिस्सा लिया था।

कांग्रेस पार्टी ने भी बहुत कुछ दिया है। 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की लहर महाराष्ट्र में थी, मेरे जिले- अहमद नगर के राधाकृष्ण विखे पाटिल जो विपक्ष के नेता भी थे, मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणनवीस की तरफ खिंचे चले गए और अंततः उन्होंने पार्टी छोड़ दी। दूसरी तरफ, मैं कांग्रेस में बना रहा। 2019 में जब राज्य विधानसभा चुनाव के दो माह ही बचे थे, मुझे पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। इस बात में संदेह ही था कि पार्टी दहाई अंक तक भी पहुंचेगी या नहीं। मैं अन्य लोगों के साथ काम में जुट गया और हमलोगों ने 44 सीटों पर जीत पाई। मैंने लातूर और उस्मानाबाद में चुनाव रैलियां आयोजित कीं जिनमें जबर्दस्त भीड़ जुटी। सोनिया जी का कामकाजी वर्ग के बीच विशेष आकर्षण है। उन्हें जनता के मुद्दों की गहरी समझ है।

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2019 चुनावों के बाद जब शिव सेना भाजपा से अलग हो गई, तो ठाकरे परिवार ने नए गठबंधन सहयोगियों के साथ सरकार बनाने की इच्छा प्रकट की। सोनिया जी शिव सेना के साथ साझेदारी के खिलाफ थीं। मैं बारामती गया। शरद पवार हाथ बढ़ाने और सरकार बनाने को तैयार थे और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री-पद पर बिठाने के लिए पहले ही तैयारी कर चुके थे। तब, सोनिया जी से अनुमोदन कराने का जिम्मा मुझ पर आ गया।

जब मैं इस संभावना पर दिल्ली में सोनिया जी से मिला, तो उन्होंने दीवारों पर सुसज्जित पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के चित्रों की तरफ दिखाते हुए पूछा कि 'अगर हम शिव सेना के साथ गए, तो वे क्या महसूस करेंगे?' इस पर मैंने निवेदन किया कि भाजपा को दूर रखने के लिए हमें शिव सेना के साथ गठबंधन बनाना ही चाहिए। मैंने यह भी ध्यान दिलाया कि शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने आपातकाल के दौरान श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ-साथ कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री एआर अंतुले का समर्थन किया था। अंततः, वह इस शर्त पर तैयार हुईं कि शिव सेना हिन्दुत्व का अपना एजेंडा अलग रखेगी और अपने देश के संविधान की प्रस्तावना के अनुरूप चलेगी। इसे स्वीकार कर लिया गया और आखिरकार, शपथ ग्रहण समारोह हुआ।

यह होने के बाद मुझे गुजरात में विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान का जिम्मा दिया गया जिसे मैंने सफलतापूर्वक पूरा किया।

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को दिशा देते हुए सोनिया जी ने अद्भुत कार्य किए। उनकी निगरानी में सभी फैसलों के केन्द्र में आम लोग थे। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत ऐसा विधान बनाया गया कि छह साल तक के हर बच्चे को स्कूल में एडमिशन की गारंटी मिले। खाद्य सुरक्षा कानून ने सभी भारतीयों को भूख से बचाए रखा। अन्य उल्लेखनीय भागीदारी भूमि अधिग्रहण कानून, रोजगार गारंटी स्कीम और सूचना का अधिकार कानून थे। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आंतरिक या वाह्य- विभिन्न कारणों से बुरी तरह प्रभावित होने वाली अर्थव्यवस्था को बचाए रखा।

आज कांग्रेस इस पुरानी महत्वपूर्ण पार्टी को छोड़कर विपक्षी गठबंधन बनाने के ममता बनर्जी के प्रयासों के विरुद्ध है। यह बेकार का प्रयास है! पार्टी अध्यक्ष के तौर पर सोनिया जी रहें या राहुल जी, कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए को शक्ति दी जानी चाहिए। इसकी जिस तरह पूरे देश में जड़ें हैं, कांग्रेस संयुक्त फ्रंट के नेतृत्व में सबसे अच्छी अवस्था में है।

(वरिष्ठ पत्रकार राही भिडे से बातचीत पर आधारित)

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