तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव आजकल मोदी विरोधी मूड में चल रहे हैं, हालांकि आजकल किसका मूड कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता। इसी मूड में उन्होंने कहा है कि मोदी जी टोपियां बहुत बदलते हैं। जहां जाते हैं, वहां की टोपी धारण कर लेते हैं। मणिपुर में मणिपुरी, उत्त्तराखंड में उत्तराखंडी। कहीं क्या, तो कहीं और क्या से क्या हो जाते हैं!
पश्चिम बंगाल में टोपी पहनने का रिवाज नहीं है तो वहां रवीन्द्र नाथ टाइप दाढ़ी रख कर टैगोर बनने की कोशिश की। अब बंगाली जनता अपने किसी दूसरे बड़े कवि को तो टैगोर के आसपास फटकने नहीं देती। वह दाढ़ी बढ़ाकर टैगोर बनने की कोशिश करने वाले मोदी जी के चक्कर में कैसे आ जाती? उन्हें यह बात समझाए कौन?
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इतने समझदार को समझाना भी असंभव है। उतना ही असंभव है, जितना बिल्ली के गले में घंटी बांधना! नासमझ बने रहना, हां में हां मिलाना सबसे सुरक्षित है! मुंह लटका कर जनाब को दिल्ली लौटना पड़ा। इस शॉक से वह अभी तक उबरे नहीं हैं। डर तो यह है कि यूपी कहीं उनकी इस मनोदशा को स्थायी न बना दे! यज्ञ-शज्ञ अभी से करवा लें तो शायद लाभ हो। योगी जी तो ये सब कर करवा ही रहे हैं!
खैर छोड़िए इसे। चूंकि भले लोग ही मुख्यमंत्री बन पाते हैं और कभी-कभी प्रधानमंत्री भी बन जाते हैं तो चंद्रशेखर राव जी ने टोपी और दाढ़ी तक ही बात को सीमित रखा, मगर उन्हें शायद पता होगा कि हिंदी में टोपी पहनाना भी एक मुहावरा है और मोदी जी टोपी (या साफा) पहनकर दिखाते इसीलिए हैं कि इससे साधारण जनता को टोपी पहना सकें। कभी लोग उनकी पहनाई टोपी पहन लेते हैं कि प्रधानमंत्री ने खुद पहनाई है। इसका कैसे अपमान करें? कहीं उतार कर फेंक देते हैं, यह कहते हुए कि पहनाई होगी प्रधानमंत्री ने पता नहीं कितनी पुरानी और तैलिया है कि इससे तो सिर में खुजली होती है, सिर फटने लगता है!
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आजकल यूपी में जोरशोर से टोपी पहनाओ अभियान उन्होंने चलवा रखा है। इतना तो पक्का है कि राममंदिर बनवाओ या हनुमान मंदिर, रामलला या हनुमान जी उनकी मदद को आने वाले नहीं हैं। रामलला नये-नये मंदिर में अरविंद केजरीवाल के भिजवाए दर्शनार्थियों को दर्शन देना अभी एंजॉय कर रहे हैं। वह काफी समझदार हैं। मोदी जी से तो बहुत ही अधिक समझदार! चुनाव के लफड़े में वे फंसने वाले नहीं। न 2024 में, न अभी। चाहे जितना जयश्री राम भज लो, भजवा लो!
सुनते हैं मोदी जी टोपी बदलने के अलावा भी बहुत कुछ करना चाहते थे, मगर कर नहीं पाए।कपड़े बदल कर, टोपी और साफा, कुर्ता और पायजामा बदल कर रह गए। हुंकार भरी कि मैंने गुजरात को बदला था, अब भारत को भी बदल दूंगा। लोगों ने समझा कि इनको समय दो, यह वाकई सबकुछ बदलकर रख देंगे। पता चला कि उन्होंने और कुछ तो नहीं बदला है, अपनी कार जरूर बदल ली है। लोगों ने सोचा कि चलो कोई बात नहीं। कार तो ऐरे-गैरे नत्थूखैरे भी हर साल बदलते रहते हैं। प्रधानमंत्री ने बदल ली है तो कोई बात नहीं।
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मोदी जी ने फिर हुंकार भरी। इस बार तो सब बदलकर रख ही दूंगा। पता चला कि इस बार उन्होंने अपना हवाई जहाज बदल लिया है। वह फिर हुंकारे कि मगर इस बार सब बदलना ही है, भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। पता चला इस बार वह राष्ट्रपति की बगल में अपना नया बंगला बनवाकर भारत को आत्मनिर्भर बनाने में व्यस्त हैं। वह फिर कहते हैं, बस एक बार और। इस बार सब बदल ही दूंगा। पता चला कि उन्होंने 142 अरबपति कोरोना काल में खड़े कर दिये हैं। अपने दो गुजराती स्पांसरों के बीच नंबर वन नंबर टू का खेल शिक्षा-शिक्षा शरू करवा दिया है।अरबों के चंदे का पार्टी के लिए प्रबंधन करवा दिया है!
दूसरी तरफ जो साईकिल पर पैडल मार रहे थे, उनके पहियों की हवा निकालकर उन्हें समझा दिया है कि यह हवा नहीं, आक्सीजन है। इसकी कोरोना के मरीजों को अभी खास जरूरत है, तुम साइकिल घसीटते हुए पैदल चलो, स्वास्थ्य बनाओ मेरी तरह। जो नौकरी पर थे, उन्हें घर बैठा दिया कि घर बैठने का भी अपना आनंद है, इसे लूटो। जो नौकरी चाहते थे, उन्हें तीन साल तक इतना झूला झुलाया कि उन्हें चक्कर आ गए और वे चक्कर खाकर सीधे रेल की पटरी पर आ गिरे। तब से वे वहीं हैं। रेल रोकने, आंदोलन करने में लगे हैं। बाकी युवाओं को पकौड़ा बेचने और जयश्री राम करने में लगा दिया है!
तो आइए मोदी जी को, योगी जी को जिताइए और पुरस्कार में नये मंदिर, ऊंची मूर्तियां, झूठ का पिटारा, उच्चस्तरीय मूर्खता का नगाड़ा मुफ्त में पाइए।
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