विचार

निरंकुश शासन में महात्मा गांधी उपेक्षित, सत्ता की नीतियों के विरोध में आवाज उठाने वालों के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव

भय का प्रसार निरंकुश सत्ता का सबसे खतरनाक अस्त्र होता है। इसमें समाज को दो वर्गों ‘हम” और “वे” में बाँट कर दूसरे वर्ग के बारे में ऐसी अफवाहें फैलाई जाती हैं जिससे हम उनसे डरने लगें और धीरे-धीरे उन्हें अपना दुश्मन समझने लगें।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर टीवी समाचार चैनलों पर दो समाचार चल रहे थे बलात्कारी और हत्यारा राम रहीम को सरकार फिर से पेरोल पर जेल से बाहर निकाल रही है, और दिल्ली में शांतिपूर्ण प्रदर्शन के साथ ही गांधी जयंती के दिन राजघाट पर जाने का निश्चय किए पदयात्रा करते लद्दाखी सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर हिरासत में लेकर 24 घंटे से अधिक समय तक लगभग नजर बन्द रखा गया। बलात्कारी और हत्यारों की बीजेपी को सख्त जरूरत है, बल्कि यही दुनिया के तथाकथित सबसे बड़े राजनैतिक दल की केन्द्रीय नीति भी है। दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी ही ऐसे ही शातिर अपराधियों के सहारे खड़ी हुई है। जाहिर है, गांधी के देश में अब ऐसे ही अपराधी सत्ता में और सत्ता के समर्थन में हैं। दूसरी तरफ 56 इंच छाती वाली सत्ता किस हद तक डरी रहती है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सत्ता की नीतियों के विरोध में आवाज उठाने वालों के साथ अपराधियों और आतंकवादियों जैसा बर्ताव किया जाता है। ये दोनों घटनाएं अहिंसा, सत्य और मानवाधिकार के पुजारी गांधी जी को देश की सत्ता की तरफ से उपहार दिया गया है। सत्य के पुजारी के देश को अब झूठे, जुमलेबाज और शातिर अपराधी चलाने लगे हैं।

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इराक, यमन और सीरिया जैसे देशों में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन करते लोगों पर पुलिस हिंसक और बर्बर कार्यवाई करती है, दूसरी तरफ दुनिया के तथाकथित सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में सता की नीतियों का विरोध करते लोगों को राजद्रोही और नक्सल का तमगा दिया गया है। क्या आज के दौर में इराक, सीरिया, यमन और भारत के शासकों में कोई अंतर है? देश की वर्तमान सरकार के दौर में जितने तथाकथित राजद्रोही पनप रहे हैं उतने तो अंग्रेजों के दौर में भी नहीं रहे होंगे। हालत यहाँ तक पहुँच गयी है कि यदि आज गांधी भी जिन्दा होते और पहले जैसे सक्रिय रहते तो वो भी राजद्रोही करार दिए गए होते और सलाखों के पीछे होते, या शायद मार दिए गए होते।

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हाल फिलहाल में “एक देश, एक चुनाव” की खूब चर्चा की गयी, इससे पहले भी प्रधानमंत्री मोदी एक देश के साथ अनेक विषयों को जोड़ चुके हैं। पर, आज “एक देश” का आलम यह है कि देश के सामान्य नागरिक, यदि सत्ता की नीतियों के विरोध में खड़े हैं तो अपने ही देश में बेगाने हैं, पूरे देश में अपनी मर्जी से सफ़र भी नहीं कर सकते। गांधी जी ने अंग्रेजों का विरोध करते हुए अनेक लम्बी पदयात्राएं कीं, पर अंग्रेजों ने भी उनके रास्ते नहीं रोके। मोदी शासन में तो लगातार पंजाब-हरियाणा और हरियाणा-दिल्ली बॉर्डर को सुरक्षा बलों की छावनी में तब्दील किया जाता है, कभी सडकों पर कीलें बिछाई जाती हैं तो कभी कंक्रीट की बैरीकेडिंग की जाती है। ये सारे इंतजाम अपने देश के लोगों के लिए निहायत ही डरी हुई सत्ता करती है।

 अब तो न्यायालयों में न्यायाधीश आर्डर-आर्डर करते रहते हैं और सत्ता खुले आम इन ऑर्डर्स का मजाक उडाती है। मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया इसे विकास बताता है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया में समाज विज्ञान की प्रोफ़ेसर केसिलिया मेंजिवर ने हाल में ही अमेरिकन बिहेवियरल साइंटिस्ट नामक जर्नल के निरंकुश सत्ता से सम्बंधित विशेष अंक का सह-सम्पादन किया है और इसकी भूमिका लिखी है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा है कि दुनियाभर में निरंकुश शासक पनपते जा रहे हैं। अधिकतर निरंकुश शासक प्रजातांत्रिक तरीके से सत्ता तक पहुंचते हैं और फिर प्रजातांत्रिक तंत्र को खोखला कर अपनी ताकत बढाते हैं। निरंकुश शासक सत्ता तक पहुँचाने के लिए या फिर सत्ता में टिके रहने के लिए भय का वातावरण, गलत सूचनाओं का व्यापक प्रसार, प्रजातंत्र की व्यवस्था को खोखला कर, क़ानून-व्यवस्था को भ्रष्ट कर और सामाजिक ध्रुवीकरण वाले हिंसक समूहों को बढ़ावा का सहारा लेते हैं।

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भय का प्रसार निरंकुश सत्ता का सबसे खतरनाक अस्त्र होता है। इसमें समाज को दो वर्गों ‘हम” और “वे” में बाँट कर दूसरे वर्ग के बारे में ऐसी अफवाहें फैलाई जाती हैं जिससे हम उनसे डरने लगें और धीरे-धीरे उन्हें अपना दुश्मन समझने लगें। इसके लिए समय-समय पर झूठी खबरें चलाई जाती हैं और हमारे देश का मेनस्ट्रीम मीडिया इस काम में विश्व-गुरु बन चुका है। तमाम सामाजिक सिद्धांतों और राजनीति शास्त्र की परिभाषाओं के बाद भी धरातल पर प्रजातंत्र और निरंकुश शासन के बीच बहुत अंतर नहीं है। प्रजातंत्र की व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए निरंकुश शासकों की संख्या बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि निरंकुश शासकों की बढ़ती संख्या के बाद भी प्रजातांत्रिक देशों की सख्या में कमी नहीं आ रही है। प्रोफ़ेसर केसिलिया मेंजिवर ने अपने साक्षात्कार में प्रजातंत्र के सहारे सत्ता तक पहुंचे निरंकुश शासकों के उदाहरण में भारत के प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी लिया है। दूसरे उदाहरण हंगरी, तुर्कीये, एल साल्वाडोर, निकारागुआ, फिलीपींस, रूस और वेनेज़ुएला के हैं।

श्रीमती सोनिया गांधी ने वर्ष 2019 में कहा था, भारत में जो हो रहा है उसे देखकर गांधी जी दुखी होते, जो लोग झूठ की राजनीति कर रहे हैं वे गांधी के अहिंसा का दर्शन कभी नहीं समझ पायेंगे। इतिहासकार मृदुला मुखर्जी के अनुसार गांधी जी धर्मनिरपेक्षता के लिए जाने जाते हैं, गांधी जी के व्यक्तित्व से सबकुछ छोड़कर केवल आप स्वछता को नहीं चुन सकते, गांधी जी की सबसे बड़ी लड़ाई दमन के विरुद्ध थी, पर उसके बारे में कोई कुछ नहीं कहता।

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व्यंगकार हरिशंकर पारसाई ने जनसंघ के जमाने में, जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे, तब गांधी जी के नाम अपने ही अंदाज में एक पत्र लिखा था – जिसे पढ़कर आप पारसाई जी के व्यंग से अधिक उनके दूरदर्शी राजनैतिक विश्लेषण से प्रभावित होंगें। उन्होंने लिखा है, “आपके नाम पर सड़कें हैं- महात्मा गाँधी मार्ग, गाँधी पथ। इनपर हमारे नेता चलते हैं। कौन कह सकता है कि इन्होंने आपका मार्ग छोड़ दिया है। वे तो रोज़ महात्मा गाँधी रोड पर चलते हैं। इधर आपको और तरह से अमर बनाने की कोशिश हो रही है। पिछली दिवाली पर दिल्ली के जनसंघी शासन ने सस्ती मोमबत्ती सप्लाई करायी थी। मोमबत्ती के पैकेट पर आपका फोटो था। फोटो में आप आरएसएस के ध्वज को प्रणाम कर रहे हैं। पीछे हेडगेवार खड़े हैं। एक ही कमी रह गयी। आगे पूरी हो जायेगी। अगली बार आपको हाफ पैंट पहना दिया जायेगा और भगवा टोपी पहना दी जायेगी। आप मजे में आरएसएस के स्वयंसेवक के रुप में अमर हो सकते हैं। आगे वही अमर होगा जिसे जनसंघ करेगा।”

पारसाई जी ने आगे लिखा है, “कांग्रेसियों से आप उम्मीद मत कीजिये। यह नस्ल खत्म हो रही है। आगे गड़ाये जाने वाले कालपत्र में एक नमूना कांग्रेस का भी रखा जायेगा, जिससे आगे आनेवाले यह जान सकें कि पृथ्वी पर एक प्राणी ऐसा भी था। गैण्डा तो अपना अस्तितव कायम रखे है लेकिन कांग्रेसी नहीं रख सका। मोरारजी भाई भी आपके लिए कुछ नहीं कर सकेंगे। वे सत्यवादी हैं। इसलिए अब वे यह नहीं कहते कि आपको मारने वाला गोडसे आरएसएस का था। यह सभी जानते हैं कि गोडसे फांसी पर चढ़ा, तब उसके हाथ में भगवा ध्वज था और होठों पर संघ की प्रार्थना- नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि। पर यही बात बताने वाला गाँधीवादी गाइड दामोदरन नौकरी से निकाल दिया गया। उसे आपके मोरारजी भाई ने नहीं बचाया। मोरारजी सत्य पर अटल रहते हैं। इस समय उनके लिए सत्य है प्रधानमंत्री बने रहना। इस सत्य की उन्हें रक्षा करनी है। इस सत्य की रक्षा के लिए जनसंघ का सहयोग जरूरी है। इसलिए वे यह झूठ नहीं कहेंगे कि गोडसे आरएसएस का था। वे सत्यवादी है। तो महात्माजी, जो कुछ उम्मीद है, बाला साहब देवरास से है। वे जो करेंगे वही आपके लिए होगा। वैसे काम चालू हो गया है। गोडसे को भगत सिंह का दर्जा देने की कोशिश चल रह रही है। गोडसे ने हिंदू राष्ट्र के विरोधी गाँधी को मारा था। गोडसे जब भगत सिंह की तरह राष्ट्रीय हीरो हो जायेगा, तब तीस जनवरी का क्या होगा? अभी तक यह “गाँधी निर्वाण दिवस” है, आगे ‘गोडसे गौरव दिवस’ हो जायेगा। इस दिन कोई राजघाट नहीं जायेगा, फिर भी आपको याद जरूर किया जायेगा। जब तीस जनवरी को गोडसे की जय-जयकार होगी, तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि उसने कौन-सा महान कर्म किया था। बताया जायेगा कि इस दिन उस वीर ने गाँधी को मार डाला था। तो आप गोडसे के बहाने याद किए जायेंगे। अभी तक गोडसे को आपके बहाने याद किया जाता था। एक महान पुरुष के हाथों मरने का कितना फयदा मिलेगा आपको? लोग पूछेंगे- यह गाँधी कौन था? जवाब मिलेगा- वही, जिसे गोडसे ने मारा था।”

अभी जो देश के हालात हैं सरकार और हिन्दू अतिवादी संगठन सत्ता के नशे में चूर हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने आप को खुले तौर पर भारत का पर्यायवाची बता रहा है, जनता अपनी समस्याओं से जूझ रही है और खामोश है, विपक्ष को हरेक तरीके से कुचला जा रहा है ऐसे में संभव है आने वाले दिनों में गांधी पूरी तरह से पटल से गायब हो जाएँ और राष्ट्रीय स्तर पर हम गोडसे की जयन्ती मनाना शुरू कर दें। महात्मा गांधी हम शर्मिंदा हैं, हम आपको भूल चुके हैं।

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