महाराष्ट्र के गृह मंत्री और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मुश्किल में फंस गए हैं। नागपुर के पुलिस कमिश्नर कार्यालय से मिले जवाब में कहा गया है कि इस साल जनवरी से लेकर अगस्त 2024 के अंत तक महिलाओं के खिलाफ अपराधों की चौंकाने वाली संख्या दर्ज है। यह ध्यान में रखने वाली बात है कि नागपुर फडणवीस का गृह नगर और निर्वाचन क्षेत्र और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय भी है।
मुंबई स्थित आरटीआई कार्यकर्ता अजय बोस को दिए गए जवाब से पता चलता है कि कैलेंडर वर्ष के पहले आठ महीनों में नागपुर में बलात्कार के 213 मामले दर्ज गिए गए। इसके अलावा महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने की 320 शिकायतें दर्ज की गई हैं। यह शर्मनाक है क्योंकि अपंजीकृत और अप्रतिबंधित मामलों की संख्या आम तौर पर बहुत अधिक होती है।
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जैसे इतना ही काफी नहीं था। बदलापुर में दो चार वर्षीय लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न मामले में मुख्य आरोपी अक्षय शिंदे को पुलिस ने 23 सितंबर को ‘आत्मरक्षा में’ उस समय गोली मार दी जब उसे अदालत से वापस लाया जा रहा था। बहुत सारे लोगों का कहना था कि उसे चुप करा दिया गया। ऐसी सोच वालों के अनुसार, शिंदे को मामले में गलत तरीके से फंसाया गया था और वह अपने मुकदमे के दौरान सारी बातें बता सकता था। यह सच्चाई किसी से छिपी नहीं थी कि स्कूल में लाए जाने से पहले वह स्कूल के दो प्रमोटरों में से एक के खेत में काम करता था। इसकी पुष्टि इस तरह से भी होती है कि बीजेपी पदाधिकारी दोनों प्रमोटर तुषार आप्टे और उदय कोटवाल अभी भी फरार हैं।
नाबालिग बच्चियों के वकील असीम सरोदे का कहना है कि अक्षय की इस तरह से मौत “न्याय की हत्या” है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री फडणवीस की प्रतिक्रिया थी कि वास्तव में “अच्छा हुआ”। हर कोई चाहता था कि उसे फांसी दी जाए। ऐसे में हंगामा किस बात का है। उल्लेखनीय है कि स्कूल प्रबंधन की ओर से हमले के बारे में 12 अगस्त को सूचना दी गई। भारी विरोध प्रदर्शनों के बाद अनिच्छा से 16 अगस्त को एफआईआर दर्ज की गई और आरोपी शिंदे को 17 अगस्त को गिरफ्तार किया गया।
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इस सब पर फडणवीस को बाहर तो तीखी आलोचना झेलनी ही पड़ रही है, बीजेपी के भीतर भी उनके सितारे गर्दिश में फंसते नजर आ रहे हैं। कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संभावित उत्तराधिकारी और हाल ही में जेपी नड्डा की जगह अगले बीजेपी अध्यक्ष के रूप में देखे जाने वाले फडणवीस के बारे में अब यह कहा जाने लगा है कि पार्टी को आने वाले विधानसभा चुनावों को संभालने की उनकी क्षमता पर भरोसा नहीं रह गया है।
माना जा रहा है कि तैयारियों का जायजा लेने के लिए चुनाव आयोग की चार सद्स्यीय टीम इस सप्ताह महाराष्ट्र का दौरा कर सकती है। फडणवीस उम्मीद लगा सकते हैं कि शायद उनके लिए कोई अच्छी खबर मिल सके। चुनाव की अधिसूचना कुछ ही सप्ताह में जारी होने वाली है। इसी बीच पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मराठा नेता रावसाहेब दानवे को बीजेपी का चुनाव समन्वयक नियुक्त किया गया है। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी के चुनाव प्रयासों का समग्र प्रबंधन आरएसएस द्वारा किया जाएगा जिसमें केन्द्रीय मंत्रियों और राष्ट्रीय नेताओं को विभिन्न क्षेत्रों के प्रबंधन का जिम्मा सौंपा जाएगा।
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संघ और पार्टी के बीच समन्वय के लिए आरएसएस के वरिष्ठ नेता अतुल लिमये का चयन किया गया है। इस सबसे साफ संकेत मिलता है कि पार्टी ने फडणवीस के पर कतरने का फैसला कर लिया है। पार्टी के खराब प्रदर्शन पर जवाबदेही के तौर पर जून में उन्होंने इस्तीफे की पेशकश की थी लेकिन उन्हें यह आश्वासन देकर पद पर बने रहने के लिए राजी कर लिया गया था कि विधानसभा चुनाव उन्हीं की देखरेख में लड़ा जाएगा। उनकी जिम्मेदारी में न केवल सत्तारूढ़ गठबंधन में अन्य दोनों दलों के बीच समन्वय शामिल होगा बल्कि पार्टी प्रत्याशियों का चयन भी शामिल होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाने वाले फडणवीस ने 2019 के बाद राज्य में बीजेपी सरकार बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। हालांकि इस तरह का पहला प्रयास अजित पवार के पीछे हट जाने की वजह से असफल होग था लेकिन दूसरा प्रयास शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में विभाजन के जरिये एमवीए सरकार को हटाने सफल हो गया था।
शिवसेना से अलग होकर आए एकनाथ शिंदे को बतौर मुख्यमंत्री स्वीकार करना पड़ा क्योंकि उनके बिना सरकार नहीं बन सकती थी। ऐसे में फडणवीस और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बनाना गया ताकि शिंदे पर लगाम लगाई जा सके। लेकिन सारी साजिश असफल हो गई क्योंकि शिंदे लगातार मुखर होते गए। मुख्यमंत्री के खेमे में समर्थकों की संख्या भी बढ़ती गई जो खुले तौर पर दावे कर रहे हैं कि फडणवीस की तुलना में शिंदे कहीं ज्यादा लोकप्रिय नेता हैं जो एक ब्राह्मण हैं।
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पूर्व मुख्यमंत्री के प्रशंसक फडणवीस को राज्य में बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में पेश कर रहे हैं जबकि विरोधी उन पर पार्टी को कमजोर करने और उन नेताओं को किनारे लगाने का आरोप लगा रहे हैं जिन्हें उनके लिए खतरा माना जाता है। ऐसे नेताओं की लंबी सूची में विनोद तावड़े, एकनाथ खडसे और पंकजा मुंडे शामिल हैं। पूनम महाजन भी लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने के बाद से निष्क्रिय हैं।
खडसे एनसीपी में शामिल हो गए। हालांकि वह फिर बीजेपी में वापस आ गए लेकिन नाराज चल रहे हैं क्योंकि आसन्न चुनाव में पार्टी में उनकी भूमिका अभी तक परिभाषित नहीं की गई है। मास्टरस्ट्रोक बताए जाने वाले शिवसेना और एनसीपी में विभाजन ने भी वास्तव में बीजेपी को कमजोर ही किया है।
फडणवीस समर्थकों का तर्क है कि 54 वर्ष की उम्र के होने के कारण अभी उनके पास समय है और वह अन्य नेताओं की तुलना में कहीं ज्यादा स्वीकार्य चेहरा हैं। उन्हें समाज के सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त है। मराठाओं पर उनकी पकड़ है। हालांकि मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मनोज जरांगे का आरोप है कि इसमें फडणवीस बाधाएं पैदा कर रहे हैं।
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फडणवीस खुद फिलहाल जल्द केन्द्र में जाने के लिए उत्सुक नहीं हैं (उनका मानना है कि इसके बाद उनकी वापसी मुश्किल हो जाएगी) क्योंकि मुख्यमंत्री बनने की उनकी अंदरूनी इच्छा किसी से छिपी नहीं है। शिंदे खेमे का दावा है कि फडणवीस ने शिंदे को आश्वासन दिया है कि वह बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने रहेंगे। इसका कोई मतलब नहीं होगा कि विधानसभा चुनाव में शिंदे गुट को कितनी सीटें मिलती हैं।
माना जाता है कि फडणवीस के भविष्य को लेकर आरएसएस भी बंटा हुआ है। कुछ इस पक्ष में हैं कि वह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें जबकि बाकी अन्य विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। इस बीच, फडणवीस जोर-शोर से प्रचार में लगे हैं और खुद को आधुनिक अभिमन्यु तक बता रहे हैं जो लड़ते हुए नहीं मरेगा बल्कि बिना किसी खरोच के निकलेगा।
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अजित पवार के लिए अग्नि परीक्षा
चाचा को धोखा देने वाले भतीजे अजित पवार सत्ताधारी गठबंधन में खुद को अलग-थलग पा रहे हैं। चर्चा है कि उन्हें स्वतंत्र रूप से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। उन्होंने अपनी गलती सुधारी है और माना है कि ‘परिवार’ के खिलाफ नहीं जाना चाहिए था। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में बात की है और बीजेपी विधायक नितेश राणे के नफरती भाषणों की आलोचना की है।
दो उपमुख्यमंत्रियों में से एक होने के बावजूद अजित पवार मंत्रिमंडल में अलग-थलग हैं। शिंदे जहां उन्हें बोझ के रूप में देखते हैं, बीजेपी और आरएसएस ने उन्हें ठंडे बस्ते में डाल रखा है। कोई भी उनके समूह को अपनी सीटें देने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि वे गठबंधन में एनसीपी (अजित पवार) के बिना चुनाव लड़ने को तैयार हैं। लेकिन बगावती भतीजे के तेवर में नरमी नहीं आ रही है। वह संकेत दे रहे हैं कि उनकी पार्टी कम-से-कम 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में उतारेगी। माना जा रहा है कि ऐसे में अगले दो महीने अजित पवार के लिए अग्निपरीक्षा वाले होंगे।
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