राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महाराष्ट्र में BJP के लिए सत्ता में बने रहने को इतना जरूरी समझता है कि उसने खुद अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों की कमान संभाल ली है। वैसे, इस आशय की अटकलें हवा में तैर रही थीं लेकिन तब इसकी पुष्टि हो गई जब मुंबई और पुणे में हाल ही में हुई BJP कोर कमेटी की बैठकों में संघ के पदाधिकारी भी शामिल हुए। इन बैठकों से पहले BJP नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की नागपुर स्थित मुख्यालय में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ गुपचुप बैठक हुई थी।
BJP के एक नेता ने बताया कि संघ महसूस करता है कि महाराष्ट्र में पार्टी के लिए सत्ता में आना कितना जरूरी है। चूंकि महाराष्ट्र एक बड़ा राज्य है और मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, राज्य की सत्ता बड़ी अहमियत रखती है। हाल के लोकसभा चुनाव में हालांकि BJP 48 में से केवल 9 सीटें जीत सकी। लेकिन इन सीटों के आधार पर अगर बात करें, तो BJP नीत महायुति गठबंधन ने 130 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई और महा विकास आघाड़ी या ‘इंडिया’ ब्लॉक 288 में से 150 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रहा। वह कहते हैं कि सरकार बनाने के लिए 145 सीटों की जरूरत होती है और इस लिहाज से पलड़ा किसी भी तरफ झुक सकता है। इसीलिए BJP और संघ इस अंतर को पाटने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ने वाले।
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वैसे, चुनाव अभियान को लेकर अब तक भगवा खेमे में कोई सहमति नहीं बन पाई है। BJP सूत्रों के मुताबिक, संघ का मानना है कि हालात BJP के लिए अनुकूल नहीं हैं। ऐसी जानकारी मिल रही है कि संघ ने BJP को सुझाव दिया है कि मोदी की गारंटी या फिर उन्हें चेहरा बनाकर चुनाव नहीं लड़े क्योंकि प्रदेश में लोकसभा चुनावों में यह रणनीति खोटा सिक्का ही साबित हुई है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस मामले में प्रदेश इकाई केन्द्रीय नेतृत्व के सामने कितनी मजबूती से इस बात को रख सकती है। देवेंद्र फडणवीस और उनकी पत्नी के साथ प्रधानमंत्री मोदी की हालिया तस्वीर खासी चर्चा में रही और इस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं कि BJP के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए वह एक बड़े दावेदार हैं। जे.पी. नड्डा का कार्यकाल 30 जून को खत्म हो चुका है और उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करके नए अध्यक्ष के लिए जगह बना दी गई है।
इन्हीं सूत्रों ने बताया कि संघ चाहता है कि अजित पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी को महायुति से बाहर कर दिया जाए जिसके सिर वह प्रदेश के हताशापूर्ण चुनावी नतीजों का ठीकरा फोड़ सके। अब तक जिस अजित पवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे, उन्हें ही उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री बनाने से पार्टी और प्रधानमंत्री दोनों की साख को धक्का लगा है। संघ को लगता है कि यह बहुत बड़ी गलती थी। अगर लोकसभा चुनाव में उनके दयनीय प्रदर्शन के बाद भी गठबंधन उन्हें किसी कारण हटाने की स्थिति में नहीं है, तो कम-से-कम संघ की अजित से यह अपेक्षा तो है ही कि वह हिन्दुत्व का खुलकर समर्थन करें। संघ को अजित पवार की हिन्दुत्व के प्रति उदासीनता संदिग्ध लगती है और उसका मानना है कि वह कभी भी मौका मिलने पर पाला बदल सकते हैं।
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सीटों के बंटवारे को लेकर BJP में असमंजस साफ दिख रहा है। चंद्रकांत पाटिल जैसे कुछ BJP नेता यह कहकर इसका बचाव कर रहे हैं कि जरूरत पड़ी, तो पार्टी अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ेगी और सभी 288 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। यही नेता अन्य मौकों पर कहते हैं कि सीटों का बंटवारा चाहे जैसा भी हो, BJP महायुति गठबंधन के हिस्से के रूप में ही चुनाव लड़ेगी।
गठबंधन की प्रमुख घटक शिवसेना (शिंदे) आम चुनाव के बाद मजबूत होकर उभरी है। उसने BJP की नौ सीटों के मुकाबले सात लोकसभा सीटें जीतीं। अब यह अपनी ताकत दिखा रही है और 288 निर्वाचन क्षेत्रों में से 130 पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है। इसने तो एक कदम आगे बढ़कर निर्वाचन क्षेत्र प्रभारी के पदों पर अपने लोगों को नियुक्त भी कर दिया है। आरएसएस यह भी चाहता है कि BJP लोकसभा में चुनावी हार से सबक ले और सामाजिक इंजीनियरिंग पर ज्यादा ध्यान दे। इसने उन निर्वाचन क्षेत्रों में काम करने की पेशकश की है जहां BJP कमजोर है। मराठा, दलित और मुस्लिम समुदायों के पार्टी के खिलाफ खड़े होने के मद्देनजर इसने सलाह दी है कि राज्य में ओबीसी के बीच अपने समर्थन आधार को मजबूत किया जाए और खुलकर हिन्दू कार्ड खेला जाए।
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BJP-शिवसेना-एनसीपी (अजित पवार) सरकार लोगों को लुभाने के हरसंभव प्रयास कर रही हैं। पिछले महीने पेश किए गए बजट में रेवड़ियों की भरमार रही। पिछले साल मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की चुनावी सफलता को दोहराने की उम्मीद में महिलाओं को सीधे नकद हस्तांतरण योजनाओं की घोषणा की गई। यहां तक कि नाम भी वही रखा गया- ‘लाडली बहना योजना’। राज्य सरकार की इस नकदी हस्तांतरण को लंबे समय तक जारी रखने की क्षमता पर वाजिब ही संदेह जाता है। महाराष्ट्र सरकार पर सार्वजनिक ऋण 7.11 लाख करोड़ रुपये का है जिसके एवज में उसे सालाना 48,578 करोड़ रुपये का ब्याज देना पड़ता है।
राज्य में बुनियादी ढांचा खस्ताहाल है। सड़कों पर पहले से कहीं ज्यादा गड्ढे हैं और ऐसा लगता है कि उनकी मरम्मत के लिए पैसे नहीं हैं। सरकारी स्कूलों के छात्रों को अब तक किताबें और यूनिफॉर्म नहीं मिली हैं जिनका वादा किया गया था। क्या राज्य सरकार वास्तव में इन योजनाओं को जारी रख सकती है, या ये सिर्फ विधानसभा चुनाव जीतने के लिए उछाला गया चुनावी जुमला है? वित्तमंत्री अजित पवार ने इस तरह के संदेह को दूर करने में देर नहीं लगाई और दावा किया कि वास्तव में धन उपलब्ध है और बजट में इसके लिए प्रावधान भी किए गए हैं। उन्होंने संदेह करने वालों को आश्वस्त किया कि अगस्त से धन आना शुरू हो जाएगा।
सरकारी अधिसूचना उनकी बात की पुष्टि करती है। राज्य सरकार ने लोकलुभावन योजनाओं के प्रचार के लिए 270 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। यह राशि चुनाव से पहले अगले दो महीनों के दौरान खर्च की जानी है। आउटडोर विज्ञापनदाता, मीडिया, सलाहकार और एजेंसियां दिवाली के मौके पर मिलने वाले उपहार का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं - बशर्ते बिलों का भुगतान समय पर हो जाए।
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जबकि राज्य सरकार 'लाडली बहनों' को मासिक नकद सहायता देने के प्रयास में खुद ही उलझी हुई है, बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका ने उसके लिए खासी शर्मिंदगी पैदा कर दी है। सांगली के एक पूर्व सैनिक और राज्य सरकार के कर्मचारी शाहजी जगताप ने 2019 से महाराष्ट्र में एक लाख से अधिक महिलाओं के लापता होने की पड़ताल की मांग की है (2019 में 35,990, 2020 में 30,089 और 2021 में 34,763)। जगताप की बेटी जो कॉलेज में पढ़ती थी, 2021 में लापता हो गई। उन्होंने संजय नगर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई लेकिन बेटी का पता नहीं चला। तीन साल बाद वह वकील मंजरी परसानिस की मदद से अदालत पहुंचे।
जगताप का कहना है कि पुलिस ने जोर देकर कहा कि उनकी बेटी भाग गई होगी। विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने गृहमंत्री और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को लिखे एक पत्र में दावा किया था कि 70 महिलाएं और किशोरियां रोजाना लापता हो रही हैं। राज्य महिला आयोग ने दो साल पहले इस मुद्दे को उठाते हुए माना था कि ये महिलाएं संभवत: मानव तस्करी का शिकार हो गईं। महिला और बाल विकास मंत्री मंगल प्रसाद लोढ़ा ने 500 महिलाओं के लापता होने की बात स्वीकार की थी और उन्हें खोजने में मदद के लिए विशेष दस्तों के गठन की घोषणा की थी।
महाराष्ट्र में 1.91 लाख महिलाओं और नाबालिगों के लापता होने की सूचना (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार) के साथ, राज्य मशीनरी ने न केवल जगताप जैसे परेशान माता-पिता को निराश किया है बल्कि इसने अपनी प्यारी बेटियों, बहनों और माताओं के साथ भी बहुत बड़ा धोखा किया है।
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