इस महीने की 13 तारीख को महाराष्ट्र के आबकारी राज्य मंत्री ने ऐलान किया कि उनकी सरकार ई-कॉमर्स के जरिये सीधे घर में शराब पहुंचाने की सुविधा उपलब्ध करवाने वाली है। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री चन्द्रशेखर बावनकुले ने यह बयान इस अंदाज में दिया जैसे उनकी सरकार कोई महान कार्य करने वाली है। जरूरत तो इस बात की है कि शराब की उपलब्धि को कम करने के प्रयास किये जाएं। विश्व स्तर पर विशेषज्ञों में सहमति है कि जितनी सरल शराब की उपलब्धि होती है, उतनी ही तेजी से शराब का उपभोग बढ़ता है। गनीमत है कि बाद में विरोध का सामना करने पर महाराष्ट्र सरकार ने इस नीति को वापस ले लिया है, लेकिन जो सोच इस अनुचित नीति के पीछे थी, वह सोच तो अभी तक बनी हुई है।
हाल के समय की एक बेहद चिंता पैदा करने वाली खबर ये है कि भारत की पहचान उस देश के रूप में बनती जा रही है जहां शराब की खपत बहुत तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2005 और 2016 के बीच 11 वर्षों में भारत में प्रति व्यक्ति शराब की खपत में दोगुने से भी कहीं अधिक वृद्धि हुई। यह आंकड़ा 15 वर्ष से अधिक आयु वर्ग (पुरुष व महिला) में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष प्योर एल्कोहल के उपभोग के रूप में एकत्र किया जाता है। वर्ष 2005 में भारत में यह खपत 2.4 लिटर थी जबकि 2016 में बढ़कर 5.7 लिटर हो गई। यह आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘एल्कोहन और स्वास्थ्य’ पर वर्ष 2018 की स्टेटस रिपोर्ट में दिये गए हैं, जो सितंबर 2018 में जारी हुई।
इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि मौजूदा प्रवृत्तियों के आधार पर भारत में शराब की खपत में वृद्धि जारी रहेगी और 2020 तक प्योर एल्कोहल की प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति उपभोग में 2.2 लिटर की वृद्धि और हो जाएगी यानि यह लगभग 8 लिटर तक पहुंच जाएगी। इतनी तेज वृद्धि ऐसे समय में हो रही है जब एक के बाद एक अनुसंधानों में शराब द्वारा होने वाली व्यापक और गंभीर तबाही के समाचार मिल रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की शराब और स्वास्थ्य स्टेटस रिपोर्ट (2018) के अनुसार विश्व में 2016 में शराब से 30 लाख मौतें हुईं। विश्व में होने वाली सभी मौतों में से 5.3 प्रतिशत मौतें शराब के कारण हुईं। पुरुषों के संदर्भ में 23 लाख मौतें और महिलाओं के संदर्भ में 7 लाख मौतें शराब के कारण हुई। 2016 में बीमारियों और चोटों का जितना बोझ था (डिसएबिलिटी एडजस्टेड लाईफ इयर) उसमें से 5.1 प्रतिशत शराब उपयोग के कारण था। 2016 में शराब के कारण हुई मौतों में से 28.7 प्रतिशत चोटों के कारण हुईं, 21.3 प्रतिशत पाचन रोगों के कारण हुईं, 19 प्रतिशत हृदय रोगों के कारण हुईं, 12.9 प्रतिशत संक्रामक रोगों से हुईं और 12.6 प्रतिशत कैंसर से हुईं। 20 से 29 साल के आयु वर्ग में होने वाली मौतों में से 13.5 प्रतिशत शराब के कारण होती हैं।
यह तो सब जानते हैं कि शराब स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है, पर शराब उद्योग यह मिथक फैलाने के लिए प्रयासरत रहा है कि थोड़ी सी शराब पीने से नुकसान नहीं होता है। यह केवल एक मिथक ही है। सच्चाई हाल के अध्ययन में सामने आई है जो प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल द लांसेट में 24 अगस्त को प्रकाशित हुआ।
लगभग 500 विशेषज्ञों के समूह के मुख्य लेखक मैक्स ग्रिसवोल्ड ने इस अध्ययन के निष्कर्ष के बारे में बताया है, “एल्कोहल की कोई ऐसी सुरक्षित मात्रा नहीं है (न्यूनतम मात्रा से भी नुकसान होता है)। आगे जैसे-जैसे एल्कोहल का प्रतिदिन उपयोग बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे स्वास्थ्य के खतरे भी बढ़ते जाते हैं।”
नशीली दवाओं, एल्कोहल और एडिक्टिव बिहेवियर के विश्वकोष के अनुसार होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में से 44 प्रतिशत में एल्कोहल की भूमिका पाई गई है। दुर्घटना में मरने वाले 50 प्रतिशत तक मोटर साईकिल चालकों के शराब के नशे में होने की संभावना पाई गई है। इस विश्वकोष के अनुसार घर में होने वाली दुर्घटनाओं में 23 से 30 प्रतिशत में एल्कोहल की भूमिका होती है। आग लगने और जलने से मौत होने की 46 प्रतिशत दुर्घटनाओं में एल्कोहल की भूमिका होती है।
यदि शराब न पिये हुए व्यक्ति से तुलना करें तो शराब पीने के बाद किसी व्यक्ति में आत्महत्या का खतरा सात गुणा बढ़ जाता है और अधिक मात्रा में शराब पीने के बाद यह खतरा 37 गुणा बढ़ जाता है। एल्कोहल उपयोग डिसआर्डर के कारण अवसाद की संभावना कम से कम दोगुनी बढ़ जाती है।
कुछ साल पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक औऱ रिपोर्ट तैयार करवाई थी जिसे हिंसा और स्वास्थ्य पर विश्व रिपोर्ट (हिंस्व रिपोर्ट) का शीर्षक दिया गया था। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि डिप्रेशन या अवसाद के लिए भी एल्कोहल एक महत्त्वपूर्ण कारक है। हिंस्व रिपोर्ट के अनुसार एल्कोहल और नशीली दवाओं के दुरुपयोग की आत्महत्या में भी एक अहम भूमिका है। संयुक्त राज्य अमेरिका में होने वाले चार आत्महत्याओं में से में से कम से कम एक में एल्कोहल की भूमिका रिपोर्ट की गई है।
एक अन्य चिंता का विषय यह है कि कुछ समाजों में महिलाओं द्वारा शराब की खपत में तेजी से वृद्धि हो रही है जबकि सामान्य समस्याओं के अतिरिक्त महिलाओं को शराब से विशेष स्वास्थ्य समस्याएं भी होती हैं। गर्भावस्था के दौरान एल्कोहल के उपयोग के परिणाम के रूप में फेटल एल्कोहल सिंड्रोम और फेटल एल्कोहल अफेक्ट उत्पन्न हो सकते हैं। गर्भावस्था में शराब के सेवन से अनेक गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना बढ़ती है। जैसे कि मृत शिशु का जन्म, स्वतः गर्भापात, समय से पहले शिशु का जन्म, जन्म के समय शिशु का कम वजन और इंट्रायूट्राइन ग्रोथ रिटार्डेशन। इतना ही नहीं, इसके असर के कारण बच्चे को ‘फेटल एल्कोहल स्पैक्ट्रम डिसआर्डर (एफएएसडी) के अंतर्गत आने वाली अनेक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं (इनका असर अधिक उम्र तक रह सकता है) जैसे बुद्धि का उचित विकास न होना, कुछ अंगों व शरीर का सही विकास न होना, व्यवहार में समस्याएं आदि।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों की अपेक्षा कम वजन होने के कारण और एल्कोहल पचाने की उनके लीवर की क्षमता कम होने के कारण और शरीर में वसा की अधिकता के कारण महिलाओं के रक्त में पुरुषों की अपेक्षा अधिक एल्कोहल केंद्रित होता है। स्तन कैंसर का एक महत्त्वपूर्ण कारक भी एल्कोहल है।
कुछ संस्कृतियों में शराब के विरुद्ध प्रचलित विचारों ने विशेषकर महिलाओं की शराब से रक्षा परंपरागत तौर पर की है। यह सोचने की बात है कि यदि महिलाओं के कम से कम शराब उपभोग वाले क्षेत्र में खपत अधिकतम क्षेत्र जितनी हो जाए जो जनस्वास्थ्य की कितनी बड़ी क्षति होगी। इसके बावजूद कुछ स्वार्थी तत्त्व महिलाओं में शराब का उपभोग बढ़ाने के कुप्रयास कर रहे हैं और यहां तक कि इसे महिलाओं की समता और आधुनिकता का प्रतीक बताकर दुष्प्रचार कर रहे हैं। ऐसे तत्त्वों से सावधान रहना जरूरी है और उनके महिला और महिला स्वास्थ्य विरोधी चरित्र को सामने लाना आवश्यक है।
Published: 27 Oct 2018, 7:59 AM IST
अक्सर शराब के दुष्परिणाम का आकलन इस तरह किया जाता है कि शराबी को क्या नुकसान हुआ, लेकिन अब अनुसंधानकर्ता इस ओर ध्यान देने लगे हैं कि शराबी के संपर्क में आने वालों पर क्या, कितना और कैसा नुकसान हुआ। न्यूजीलैंड के एक अध्ययन से पता लगा कि दूसरी तरह की क्षति पहली तरह की क्षति से अधिक है।
इस तरह का सबसे चर्चित अध्ययन आस्ट्रेलिया में फाउंडेशन फाॅर एल्कोहल रिसर्च एंड एजूकेशन की सहायता से किया गया। इस अध्ययन को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बहुत महत्त्वपूर्ण माना है। इस अध्ययन से पता चला है कि एक वर्ष में किसी दूसरे के शराब पीने से अन्य लोगों की आस्ट्रेलिया में क्या क्षति हुई। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि सरकार शराब की खपत न्यूनतम करने वाली नीतियां अपनाएं जबकि महाराष्ट्र के मंत्री महोदय घर में सीधे शराब पहुंचाने की नीति की वकालत कर रहे थे।
Published: 27 Oct 2018, 7:59 AM IST
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Published: 27 Oct 2018, 7:59 AM IST