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ये कोविड-19 से जुड़ी वे बातें हैं जो वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, वेबसाइटों और चैनलों के जरिये हम तक रोजाना पहुंच रही हैं। दिलचस्प है कि ये सब के सब गलत हैं। झूठ हैं। इनमें कोई सच्चाई नहीं है। कोविड-19 की जानकारी मिलते ही इससे जुड़ी झूठी खबरें दौड़ने लगी थीं। तब ही पूरी दुनिया में झूठी खबरों से लड़ने वालों को लग गया था कि वायरस के संक्रमण की तरह ही यह भी फैल सकता है। लाख चेताने के बावजूद वायरस, इससे होने वाले संक्रमण से बचने, संक्रमण के इलाज के बारे में सूचनाओं की बाढ़ रुक नहीं रही है। इनमें ज्यादातर वे सूचनाएं हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार या पुख्ता स्रोत नहीं है।
अब यह कितना गंभीर मसला बन गया है, इसका अंदाजा प्वायंटर फैक्ट चेकिंग की एक पोस्ट से लगाया जा सकता है। दो अप्रैल की इस पोस्ट के मुताबिक, 60 से ज्यादा देशों के 100 से ज्यादा फैक्ट चेक करने वालों ने 43 भाषाओं में अब तक 3,000 से ज्यादा कोविड-19 से जुड़ी अफवाहों का पर्दाफाश किया है। फेक न्यूज को सामने लाने वाली ब्रितानी सरकार की इकाई की मानें तो वे हर रोज कोरोना वायरस से जुड़ी 10 गलत सूचनाओं का पर्दाफाश कर रही हैं।
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अफ्रीका भी ऐसी अफवाहों से लड़ रहा है। एशिया भी इससे जूझ रहा है। हमारे देश में कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं उपलब्ध है, लेकिन वाट्सएप और फेसबुक पर ध्यान दें तो औसतन चार से पांच ऐसी गलत सूचनाएं रोज मिल ही जा रही हैं। आखिर, इतनी गलत सूचनाएं, खबरें, अफवाहेंं कैसे फैल रही हैं? इतनी चेतावनियों और सावधानियों के बावजूद आखिर झूठ की ये उड़ान कैसे संभव हो पा रही है।
आमतौर पर सेहत से जुड़ी खबरें बहुत देखी-पढ़ी जाती हैं। कोरोना वायरस, नई वैश्विक महामारी है। इसके बारे में जानकारी के लिए वैज्ञानिक शोध चल रहे हैं। कुछ जानकारियां पुख्ता हैं। वैज्ञानिक उन्हीं पर भरोसा करने के लिए कह रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन पुख्ता जानकारी देने में लगा है। दूसरी ओर, संक्रमण की रफ्तार तेज है। एक देश से दूसरे देश में फैलता हुआ यह दुनिया के कई देशों तक पहुंच चुका है। इस रफ्तार ने लोगों के अंदर इस वायरस के बारे में जिज्ञासा और भय, दोनों पैदा किया है। इससे निपटने के जो तरीके बताए या अपनाए गए या जा रहे हैं, उसने भी लोगों में भय पैदा किया है।
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नई चीजों के बारे में जानने की जिज्ञासा और इस नए वायरस का भय- दोनों जब मिले तो इसने खबरों, सूचनाओं, जानकारियों के नाम पर झूठ और अफवाह का बाजार बढ़ा दिया। नतीजा, कोई यह बताने लगा कि यह कैसे फैलता है, तो कोई यह जानकारी देने लगा कि इससे बचाव का तरीका क्या है। कोरोना वायरस को बेअसर करने के लिए यह खाएं, यह पीएं, यह पढ़ें, यह बजाएं...। कोई यह तलाशने लगा कि कैसे चीन ने साजिश की तो किसी को अमेरिका की साजिश नजर आई। तो कोई यहां तक ले आया कि कैसे यह अमेरिका और चीन की मिलीभगत है। कोई इसके लिए कठोर से कठोर कदम उठाए जाने की अफवाह फैलाने लगा। कुछ लोग कोरोना से बचाव के लिए दुआ-ताबीज, मंत्र, नक्षत्र, ग्रह का संयोग भी बताने लगे।
अपना जीवन सबको कीमती लगता है। उसे बचाने का हर उपाय वह जानना चाहता है, अमल करना चाहता है। और कोरोना जैसे संक्रमण के बारे में जानकारी और उससे बचाव, इतनी आसानी से मिलने लगे तो वह न सिर्फ खुद उसे पढ़ता-देखता-सुनता है बल्कि दूसरों को भी तुरंत पढ़ाना-दिखाना-सुनाना चाहता है। वह अपना दिमाग कतई इस्तेमाल नहीं करता है। तब धड़ाधड़ शेयर करता है। एक बात चंद घंटों में लाखों इनबॉक्स और टाइम लाइन पर तैरने लगती है। इसलिए मुमकिन है कि आज जो बात किसी भारतीय के वाट्सएप पर नजर आ रही हो, चंद दिनों पहले किसी अमेरिकी या ब्रितानी के वाट्सएप या फेसबुक से गुजर चुकी हो।
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यही नहीं, डर में इजाफा करने के लिए जरूरी है कि कुछ होते हुए दिखे। झूठ भी सत्य की तरह ही दिखना चाहता है। तो इस डर के आग में घी का काम तस्वीरें और वीडियो करते हैं। जैसे- पिछले दिनों कुछ तस्वीरें आईं। सड़क पर अनेक स्ट्रेचर हैं, कई बिल्डिंगों के बगल में कई स्ट्रेचर हैं, लोग लेटे हैं, पानी चढ़ रहा है आदि-आदि। वाट्सएप पर बताया गया कि यह इटली का है और अब यहां कोरोना से इतने लोग संक्रमित हो चुके हैं कि मरीजों को रखने के लिए अस्पतालों में जगह नहीं बची है। चेताया गया, संभल जाओ, नहीं तो ऐसे दिन आ सकते हैं।
पड़ताल में पता चलता है कि ये तस्वीरें क्रोएशिया की राजधानी जाग्रेब में आए भूकंप के बाद की हैं। इसी तरह बड़ी मुश्किल से सांस लेते एक युवक का वीडियो आया। खूब घूमा। वीडियो एक अस्पताल का बताया जा रहा था। अस्पताल ने इनकार किया। झूठे संदेशों के ऐसे अनेक उदाहरण पिछले दिनों हमारे सामने आ चुके हैं।
मगर हमारे देश में इस अफवाह में सिर्फ और सिर्फ झूठ ही नहीं, बल्कि इसके साथ नफरत भी है। कोरोना ने भारतीय समाज में छिपे इस ‘वायरस’ को एक बार फिर उजागर कर दिया है। ऐसे अनेक वीडियो, तस्वीरें और मैसेज हमारे आसपास घूम रही हैं, जिनमें कोरोना फैलाने के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। उन्हें हिंसक और कायदे-कानून न मानने वाला बताया जा रहा है। ये सब इतनी तेजी से घूम रहे हैं कि एक पकड़ में आता है, तब तक दूसरा हाजिर रहता है। बार-बार की पड़ताल के बावजूद ये वीडियो क्यों चल रहे हैं?
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ये संदेश किसी समुदाय के बारे में हमारे अंदर बैठे पूर्वाग्रह से मेल खाते हैं। इसलिए हमें अपनी राय को आगे बढ़ाने का ‘एक और सुबूत’ के साथ एक मौका मिलता है। इनमें इंसान की इंसानी भावनाओं पर हमला किया जाता है। इसलिए इनमें सिर्फ डर ही नहीं होता है। गुस्सा भी होता है। गुस्से के साथ नफरत होती है। ये सब हम में असुरक्षा की भावना भी पैदा करती हैं। इस असुरक्षा के लिए हमें आसानी से एक आसान टारगेट अपने अगल-बगल मिलने लगता है।
दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में जलसे के लिए सैकड़ों लोगों को एकत्र कर तबलीगी जमात ने जो किया, वह जाहीलियत और बेवकूफाना तो है ही, उसने सैकड़ों की जान खतरे में भी डाल दिया। मगर इस घटना का जिस व्यापक तौर पर आज तक इस्तेमाल हो रहा है, वह जमात तक सीमित नहीं है। जमात के बहाने निशाने पर सभी मुसलमान हैं। क्यों? क्योंकि मुसलमानों के बारे में पूर्वाग्रह की सालों की खेती है। वही पूर्वाग्रह, कोरोना वायरस के मामले भी काम आ रहा है।
मीडिया के अलग-अलग माध्यमों के जरिये झूठ-अफवाह अलग-अलग रूपों में आधुनिकतम मंचों और तरीकों से इतनी बार दोहराया जाता है कि किसी के लिए उसे सच न मानना कठिन होता है। वह एक झूठ पढ़ता है, फिर उसी को सुनता है, फिर उसे देखता है, फिर उसे चलते हुए पाता है। एक जगह से निकलता है, तो दूसरी जगह भी वही पाता है। वह बचे तो बचे कैसे?
इस मुश्किल से लड़ने का एक उपाय तो यही है कि झूठ को सिर्फ एक बार झूठ बता कर इतिश्री न कर ली जाए। कोई बात झूठी है, उसे अलग-अलग रूपों, मंचों से बार-बार दोहराया जाए। जितना दोहराया जा सकता हो, उतनी बार दोहराया जाए। यह कतई न सोचा जाए कि किसी झूठ का एक बार तो पर्दाफाश हो ही चुका है। हम झूठ के संगठित हमले से लड़ रहे हैं और झूठ चलता नहीं, उड़ता है। अफवाह उड़ती है। तो सच को भी उड़ने की ताकत लगानी होगी। एक साथ सच के कई बवंडर खड़े करने होंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट हैं)
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