तो, आप चाहते हैं कि मैं देश में रेप की बढ़ती घटनाओं पर लिखूं। ठीक है, तो मैं कहां से शुरू करूं?
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एक उत्तर भारतीय शहर में पलते-बड़ा होते हुए मुझे अपरिचित लोगों, युवाओं और अंकल्स ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करते समय जबरन छूआ, मेरे साथ रगड़ लगाई और अश्लील इशारे किए। मैं सड़कों पर दौड़ नहीं लगाती हालांकि एक खेल के तौर पर दौड़ मुझे प्रिय है।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करते समय मैं हर वक्त सतर्क रहती हूं। मैं अपनी कुहनियां निकाले रखती हूं ताकि कोई पुरुष मेरी ओर झुक नहीं पाए। कोई तर्क नहीं है, फिर भी मैं किसी आशंका की कंपकंपाहट के बिना युवाओं की घूरती टोली को पार नहीं कर सकती। और ये वे घटनाएं हैं जो मेरे दिमाग में गहरे बैठ गई हैं, मैं इन्हें याद में भी नहीं करना चाहती। मैं पूरे नोटबुक को ऐसी घटनाओं से भर दे सकती हूं। ऐसा ही भारत में कोई दूसरी स्त्री कर सकती है।
एक दिन तो मैंने यह तक महसूस किया कि इस दुनिया में क्या मुझे किसी बच्ची को आने देना भी चाहिए क्योंकि मैं दरिंदों से उसकी रक्षा नहीं कर सकती। जैसे मेरे अभिभावक मेरी सुरक्षा नहीं कर सके। यह सिर्फ अमेरिका में ही हो पाया कि मैं उन लगातार चिंताओं से अपने आपको मुक्त कर सकूं जिससे मैं भारतीय सड़कों पर रू-ब-रू हो चुकी थी।
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तब भी, मैं अपने आपको भाग्यशालियों में गिनती हूं।
जब तेलंगाना या हैदराबाद में एक निर्भया के बलात्कार पर भारतीय उबल रहे हैं, उसी समय एक अन्य महिला को एक पुलिस वाहन में घसीट लिया गया और उसके साथ बलात्कार किया गया। मैं 75 साल की एक महिला को व्यक्तिगत तौर जानती हूं जिनके साथ 18 साल के एक युवक ने बलात्कार की कोशिश की।
अगर मैं दुर्भाग्यशाली होती, तो मैं भी कोई निर्भया, आसिफा या प्रियंका होती। रात में बस पकड़ती और मेरे साथ बलात्कार होता और मैं जला दी जाती। बाहर खेलने जाती, मेरा अपहरण हो जाता, मेरे साथ बलात्कार होता और मेरी हत्या कर दी जाती।
कुल मिलाकर यही स्थिति है जो भारतीय महिलाएं और उनके अभिभावक हर वक्त झेलते हैं जब वे अकेले घर से बाहर जाती हैं, हर रात जब वे देर से लौटती हैं। हम जानते हैं कि बोलना बेकार है। हम कुलटा, बहकाने वाली, शिकार या हिंसक, बदनाम हो जाएंगे क्योंकि हमारे परिवार का आत्मसम्मान हमारे यौनांगों पर टिके हैं। इससे भी बुरी बात है कि अगर हम किसी शक्तिशाली व्यक्ति पर आरोप लगाएं तो संभव है कि हमें ही गिरफ्तार कर लिया जाए। इसलिए हम इन सदमों को पी जाते हैं और अपनी बेटियों को भय के तौर पर पास ऑन कर देते हैं।
तब, हमारे शिक्षित पुरुष और महिलाएं (अधिकांशतः पुरुष) बलात्कारियों के लिए कड़े से कड़े दंड की मांग करते हुए उठ खड़े होते हैंः ‘बलात्कारियों को फांसी पर लटकाओ’, ‘रसायन देकर उन्हें नपुंसक बना दो’, ‘इस्लामी देशों की तरह सार्वजनिक तौर पर उनके सिर उड़ा दो।’ मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मध्यवर्ग गुस्से का यह दिखावा इसलिए करता है ताकि वह भारत की रेप कल्चर की तरफ से अपने उत्तरदायित्व से हाथ झाड़ ले सके। इसलिए, ताकि वह अपनी अंतरात्मा को सांत्वना दे सके और यह भुला दे कि वह भारत में बलात्कार करने वालों को शक्ति देता है।
यह बात कटु लगी? हां, लेकिन यही सच्चाई है। क्योंकि यौन दुर्व्यवहार भारत में महिलाओं को अमानवीय बनाने की उस प्रक्रिया का चरम विंदु है जो हर रोज, हर कदम पर होती है- शिक्षित और अशिक्षित; लिबरलों और परंपरावादियों द्वारा।
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अब संभव है, आप सोच रहे हों- अरे, मूर्ख ! मैं किस तरह बलात्कार को शक्ति देता हूं।
इस तरह, कि जब आप महिलाओं के शरीर और उनके कपड़ों पर किए जाने वाले भद्दे फिकरों के लिए अपने जिगरी दोस्तों को झिड़कते नहीं। आप साथ-साथ हंसते हैं क्योंकि आप अपने को उनसे अलग बुद्धिमान नहीं दिखना चाहते। जब आप किसी महिला को समान मानव की जगह किसी व्यक्ति की बेटी/बहन/मां के तौर पर सम्मान देने की बात करते हैं। जब आप अपनी आंखों से किसी महिला के कपड़े अपने दिमाग में उतार देते हैं। जब आप मा.., ब... -जैसी सेक्सिस्ट गालियां बकते हैं या किसी आदमी को अपमानित करने के लिए उसे छक्का, भड़वा आदि कहते हैं।
जब आप महिलाओं के सेक्स जीवन पर विचार करते हुए उसे आइस क्वीन या छिनाल ठहराते हैं। जब वैसी महिलाओं को जो आपसे अलहदा राय रखती हैं, उन्हें आप फेमि-नाजीज ठहरा देते हैं या कहते हैं कि वह हंसी-मजाक नहीं करती। जब आप बलात्कार के किसी आरोपी को लेकर तर्क-वितर्क करते हैं क्योंकि वह आपका दोस्त, रिश्तेदार, अपना धर्म वाला या साथी विचारक है।
जब आप राजनीतिज्ञ, पुलिस वाला या किसी अधिकारी के तौर पर ऐसी महिला को बहलाने-फुसलाने के लिए अपने अधिकार या शक्ति का उपयोग करते हैं जो अपनी नौकरी या भविष्य के लिए आप पर निर्भर है या ऐसा होते रहने पर भी आप चुप रहते हैं। अगर आप बौद्धिक हैं, तो महिलाओं पर अपने साथ सोने के लिए दबाव डालते हैं क्योंकि अन्यथा वह सचमुच मुक्त नहीं हो पाएगी।
कोई भी भारतीय महिला हजारों ऐसी बातें जोड़ सकती है। ये सभी चीजें वस्तुतः सीधे बलात्कार की ओर नहीं ले जातीं; लेकिन आप इस कड़ी में एक हिस्सा बन जाते हैं जो महिलाओं पर भारतीय पुरुषों की थाती की जबर्दस्त भावना है। इस कड़ी का अंतिम सिरा यौन दुर्व्यवहार है। महिलाओं को लेकर भारतीय समाज की संपूर्ण संरचना का रुख पूरी तरह जंग खाया हुआ है। अगर आप भारतीय महिलाओं को सचमुच सुरक्षित करना चाहते हैं, तो हर रोज हर मिनट अपने खुद के व्यवहार पर निगरानी रखिए और उसे बदलिए। और भगवान के लिए, छह साल की आयु से ही हर पुरुष और स्त्री के लिए लैंगिक संवेदीकरण (जेंडर सेन्सिटाइजेशन) शुरू कीजिए- किंडरगार्टेन, प्राइमरी स्कूल, हाई स्कूल, काॅलेज, ऑफिस में .. मृत्यु होने तक।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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