किसी महामारी के समय में सरकार की क्या भूमिका है?
कोई भी प्राकृतिक आपदा आने पर आबादी का बड़ा हिस्सा अपनी रक्षा और अपना ध्यान खुद नहीं रख सकता। करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई हैं। केंद्र सरकार कहती है कि अब तक एक करोड़ से ज्यादा लोग विशेष ट्रेनों और बसों से अपने गांवों को लौट गए हैं। ये लोग उन शहरों, नगरों, कस्बों को छोड़ आए हैं जहां यह अपनी जीविका कमाते थे और कुछ पैसा अपने घर भेजते थे। कितने लोग पैदल, साइकिलों से या किसी अन्य तरीके से अपने घर लौटे हैं, इनकी तादाद का किसी को अंदाजा नहीं हैं। इस सबका हमारे देश में कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड रखा ही नहीं जाता है, क्योंकि हम वैसे भी आंकड़ों के मामले में बेहद कमजोर हैं।
जमीन के छोटे टुकड़े पर खेती करने वाले किसान, दिहाड़ी मजदूरी पर जीने वाले मजदूर, ये सब भी बेरोजगार हुए हैं और इनकी संख्या भी करोड़ों में है। जिन बच्चों को स्कूलों में मिडडे मील मिल रहा था उनकी संख्या भी करोड़ों में है।
मोटे तौर पर देखें तो करीब 50 करोड़ भारतीय बीते तीन महीनों में जो कुछ हुआ उससे प्रभावित हुए हैं और खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जब लोग भोजन के लिए लड़ रहे हैं। मरे हुए जानवरों का मांस खा रहे हैं। सरकार की भूमिका है कि वह महामारी को फैलने से रोकने की कोशिश करे और उसने लॉकडाउन कर दिया। लेकिन इस लॉकडाउन का देश की आबादी के बड़े हिस्से पर क्या असर हुआ और उसे मुसीबत से कैसे निकाला जाए, यह जिम्मेदारी भी सरकार की ही है।
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यहां सरकार का अर्थ समूची सरकारी मशीनरी से है, लेकिन बड़ी जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर है, क्योंकि इसी के पास सबसे ज्यादा संसाधान हैं और इसी के पास अधिकार हैं कि वह जरूरत पड़े तो नोट छाप सके। राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे कोई अधिकार नहीं हैं और वे एक सीमा के बाद टैक्स आदि के जरिए और पैसा नहीं उगाह सकते।
इसमें कोई संदेह नहीं कि हम एक बड़े संकट से दो-चार हैं। और इस कारण हमें आम सहमति से ही कदम उठाने चाहिए, न कि संकट को लेकर कोई राजनीतिक मुद्दा बनाया जाए।
सभी राजनीतिक दलों और सरकार ने इस बात को माना है कि संकट बड़ा है, हम मुसीबत में हैं और आने वाले दिन और मुश्किलों भरे होंगे। मुंबई में 99 फीसदी आईसीयू बेडों पर मरीज हैं और महामारी का फैलाव जारी है। अगर हम बढ़ते मरीजों की संख्या देखें तो पता चलेगा कि जून के अंत तक अकल्पनीय स्थिति हो सकती है। ऐसे में हमें तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।
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तो हम क्या कर सकते हैं? अभी कुछ दिन पहले एक समूह ने मिशन जयहिंद नाम से कुछ सुझाव हालात को बेहतर बनाने के लिए सामने रखे थे:
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इस सूची में जो भी मांगे उठाई गई हैं, अद्भुत हैं और किसी ने इनका विरोध नहीं किया है। देश के करोड़ों लोगों को अगले 6 महीने क्या चाहिए, इससे पूरा हो सकता है। 2021 कैसा होगा हमें नहीं पता, लेकिन हमें भारतीयों को आने वाले साल के लिए तैयार करना होगा। समाज में भरोसा बढ़ाना होगा क्योंकि कानून का राज आम तौर पर भरोसे से नहीं भय से कायम होता है। हमें देखना होगा कि किसी के बच्चे भूखे न रहें, हताश न रहे।
इतनी बड़ी तादाद में लोग मुसीबतों का शिकार हए हैं कि अब उनकी राहत में देरी करना ज्यादती ही होगी। अभी 28 मई को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरकार से मांग की कि गरीबों के खाते में अगले 6 महीने तक 7,500 रुपए डाले जाए। उन्होंने मरनेगा के काम के दिनों को भी बढ़ाकर 200 करने की मांग की। फिलहाल सरकार सिर्फ 100 दिन के काम की गारंटी देती है और ज्यादातर मामलों में यह काम भी लोगों को नहीं मिल पाता, क्योंकि केंद्र मजदूरी के पैसे ही राज्यों को समय से नहीं देता।
मेरा मानना है कि मिशन जय हिंद को सरकार माने और उस पर अमल करे।
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