एक बड़े अखबार में विचित्र किंतु सत्य टाइप खबर पढ़ी कि पीएम मोदी ने ईसाई धर्मगुरुओं से कहा है कि वह किसी एक जाति और धर्म के नहीं, बल्कि सारे देश के प्रधानमंत्री हैं। अगर यह गलत है तो मैं मोदीजी से अभी और यहीं माफी मांग लेता हूं, ताकि वे या उनके भक्त मुझ पर क्रिमिनल केस दायर नहीं कर दे। वैसे इस मामले में मोदी जी, जेटली जी का अनुसरण नहीं करते और जेटली जी भी इस एक मामले में मोदीजी के नक्शे कदम पर नहीं चलते। मोदीजी कभी सीधे केस नहीं करते, बाकी सब करते हैं और जेटली जी केस अवश्य करते हैं।
हम मुद्दे पर आते है, मोदीजी ने कहा है कि वह सबके प्रधानमंत्री हैं। यह बात पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और अटल जी कहते तो शक नहीं होता। शक तो अभी भी होकर भी नहीं हो रहा है क्योंंकि नेता चाहे मोदी जी क्यों न हो, उन्हें भी मन मारकर गाहे-बगाहे कुछ अच्छी बातें भी कहनी पड़ती हैं।यही सोचकर शायद हिंदू महासभा, विश्व हिंदू परिषद आदि के नेताओं ने इस बात का नोटिस तक नहीं लिया। सोचा होगा यह सब भी चलता है, मोदी जी आखिर प्रधानमंत्री भी तो हैं, कह दिया होगा। वैसे कहने से होता क्या है? और सत्य कुछ भी हो मगर तथ्य यह भी है कि मोदीजी तो सारे देश के प्रधानमंत्री हैं। तथ्य तथा सत्य का हमेशा एक होना जरूरी नहीं होता और अगर नेता मोदी जी या उनके तरह हो तो बिल्कुल नहीं होता क्योंकि मोदीजी, मोदीजी पहले हैं, प्रधानमंत्री- अगर वह वाकई हैं - तो बाद में हैं।
एक ने कहा अरे, आशावादी बनो, कम से कम उनके ‘मुखकमल’ से ऐसी शुभ बात तो निकली, हालांकि तत्काल दूसरे ने कहा कि माफ कीजिएगा, मैं उनके मुंह को ‘मुख’ तक कहने को तैयार नहीं हूं, कमल कहना तो बहुत दूर की बात है। तीसरे ने कहा कि उनका मुंह, मुख कहने के काबिल भले न हो, मगर मुंह तो है और वह जब बोलते हैं, तो बोलते ही चले जाते हैं। जब बोलते-बोलते वह तक्षशिला को पाकिस्तान से उठाकर भारत ला सकते हैंं, तो यह भी कह सकते हैं कि मैं किसी जाति-धर्म का नहींं, सारे देश का प्रधानमंत्री हूं। इसे इतना सीरियसली नहीं लेना चाहिए। जैसे रोते बच्चे को टॉफी देकर बड़े चुप कराते हैं न, वैसी ही यह भी एक टॉफी है। ईसाई धर्मगुरु इस बहाने बहल जाएं, खुश हो जाएं कि ऐसा किसी और ने नहीं, देश के प्रधानमंत्री ने कहा है तो क्या दिक्कत है।
लेकिन एक अच्छे नागरिक की तरह यह मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं सबको बताऊं कि मोदीजी ने ऐसा भी कहा है। तो संघ और विहिप के नेता तो एक बार कान खोलकर जरूर सुन लें कि मोदीजी ने ऐसा कहा है, वरना बाद में यह न कहें कि किसी ने हमें बताया नहीं तो हम क्या करते। वैसे तो मोदीजी को लोग सीरियसली लेने लगें तो इसका मतलब यह भी होगा कि मोदीजी इस देश को हिंदू राष्ट्र नहीं बनने देंगे और वह हिंदुवादियों के ही नहीं, ईसाइयों के ही नहीं, मुसलमानों के भी प्रधानमंत्री हैं और हम जैसे उनके विरोधियों के भी हैं, लेकिन इस देश की बदकिस्मती कि लोग प्रधानमंत्री की बात को गंभीरता से नहीं लेते।
अरे, यह तो सोचो जरा कि जब वह सबके प्रधानमंत्री हैं, तो नीरव मोदी और मेहुल भाइयों के प्रधानमंत्री नहीं हैं क्या? उनके भी हैं, तभी तो उनसे कहा कि सरकारी बैंक का माल है, ले उड़ो आराम से और मौज करो। सबके हैं यानी आत्महत्या के कगार पर खड़े किसानों के भी हैं और उनके लिए मोदीजी का संदेश है कि देखो भैया, तुमने खूब कर ली खेती, खूब कर्ज में डूब लिए मगर तुम न नीरव हो, न मेहुल, तो तुम ऐसा करो कि फांसी का फंदा अब लगा लो और इस दुनिया से ही बढ़ लो। वह सबके प्रधानमंत्री हैं यानी उनके भी, जो हमसे-आपसे कहते रहते हैं कि तुम पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते और वह चुप रहते हैं, खुश रहते हैं। वह सबके हैं इसीलिए तो चुनाव का चंदा काले धनवालों से, विदेशियों से भी लेने को तत्पर हैं। सबके हैं मगर किसी के बहुत ज्यादा हैं और किसी के सिर्फ कहने वास्ते हैं, लेकिन हैं सबके और इतनी भी छूट उन्हें नहीं मिलेगी तो वह सबका ‘विकास’ कैसे करेंगे।
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