अरे मोहन भागवत जी, आप बिल्कुल दुखी न हों। हम आइंदा लिचिंग को लिंचिंग नहीं कहेंगे। हिंदी-उर्दू में नहीं कहेंगे और किसी भी भारतीय भाषा में नहीं कहेंगे। मैंं तो अंग्रेजी वालों से भी निवेदन करूंगा कि भाइयों-बहनों, लिचिंग को अंग्रेजी में भी लिचिंग न कहो। इस शब्द को इतना नरम, इतना मुलायम, इतना दयालु, इतना सुगंधित, इतना मनोनुकूल, इतना पवित्र बना दो कि लिचिंग, लिचिंग न लगे, मटन पुलाव लगे, गोभी का, पनीर का नरम-नरम पराठा लगे, खीर लगे, चमचम लगे और हां भागवत जी को पूरणपोली बहुत पसंद है, उस जैसी बल्कि वही लगे।
लिचिंग हो, खूब प्रेम से हो, पहले से बहुत ज्यादा हो, हर घंटे, हर पल हो। सरकार की नाक के ठीक नीचे हो, उसकी मौन अनुमति से हो, उसके वीडियो जारी होंं, मगर लिचिंग, लिचिंग जैसी नहीं, लता मंगेशकर की सिंगिंग जैसी लगे। यज्ञ में आहूति देने जैसी, आरती करने जैसी, रूद्राभिषेक करने जैसी, दान-दक्षिणा लेने जैसी, ब्रह्म भोज करने जैसी- शुद्ध-नैतिक कर्म लगे। स्वर्ग पठाने का कर्मकांड जैसी लगे। मैं ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी वालों से भी प्रार्थना करूंगा कि वे भारत आएं और नये सिरे से अंग्रेजी डिक्शनरी भागवत जी, सरकार्यवाह जी, मोदीजी, शाहजी के साथ 'बौद्धिक' करके ऐसी बढ़िया बनाएं कि उसमें लिचिंग का अर्थ, गौरक्षा हो, बलात्कार का अर्थ स्त्री को संस्कारी बनाना हो, लव-जेहाद हो।
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सबकुछ संघदक्ष, ध्वजप्रणाम, दंडप्रहार जैसा हो। शाखा लगाने जैसा, खाकी निक्कर छोड़ भूरी पैंट पहनने जैसा, काली टोपी सिर पर फिट करने जैसा हो। जिसे आप भारतीय लोकाचार कहते हो, ठीक वैसा हो। सबकुछ हो मगर देश बदनाम न हो, मतलब मोदीजी बदनाम न होंं, ऐसा कुछ प्रबंध हो जाए। मतलब लिचिंग के विरोध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखना तक देशद्रोह घोषित हो जाए, लिखने वालों के खिलाफ ऑटोमेटिकली एफआईआर दर्ज हो जाए और इस तरह इस 'महान' देश का पूरे विश्व में 'सुनाम' हो जाए।
कोई भाजपाई भी लौहपुरुष हो सकता है, ऐसा वायु प्रदूषण फैल जाए और लोगों का घुट-घुटकर मरना, स्वाभाविक मौत मरना मान लिया जाए। बांग्लादेशी घुसपैठिया बताकर तमाम विरोधियों को जेल के हवाले कर दिया जाए या देश के बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए और कश्मीर जैसे मौन का कर्फ्यू सब तरफ लग जाए। सबकुछ हो जाए मगर 'गर्व से कहो- हिंंदू हैं' कहना, 'जय श्रीराम' कहना रुकने न पाए, बल्कि 'राष्ट्रीय कर्तव्य' मान लिया जाए।
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'भारत पिता' के रहते, भारत को जिस तरह मिटाया और जिस तरह 'बनाया' जा सकता है, वैसा कुछ होता चला जाए और कोई चूं तक न कर पाए। कुछ बुरा हुआ नहीं है, कुछ बुरा हो नहीं सकता, ऐसा मोदीजी का भाषण, अमेरिका में बताता जाए। कुछ और, कुुछ और मोदी-मोदी हो जाए तो मान लिया जाए कि वाह भारत जितना सत्तर साल में आगे नहीं बढ़ा है, अब बढ़ चुका है। सारा भारत, काली टोपी, खाकी निक्कर, भूरी पैंट, सफेद शर्ट हो चुका है, ऐसा विश्व को लगने लग जाए। अंधेर नगरी, अंधेर नगरी नहीं है, राजा इसका चौपट राजा नहीं है, ऐसी कुछ छवि बन जाए। जन गण मन होना बंद होकर वंदेमातरम ही वंदेमातरम होता चला जाए। झूठ बोलना, दिन में दस ड्रेस बदलना, वंदे मातरम गाने जैसा हो जाए। जय श्रीराम न कहने वाले की लिंचिंग, लिचिंग नहीं है, ऐसा वातावरण बन जाए।
आप तो भागवत सर, भोले भंडारी हो। आप तो अभी भी शब्द से आपत्ति के युग में जी रहे हो, जैसे मार्गदर्शक मंडल के सदस्य लालकृष्ण आडवाणी कभी अपने अच्छे दिनों में जी रहे थे। तब के आडवाणी जी, आज के मोदीजी थे। उन्होंने बाबरी मस्जिद को 'ढांचा' कहना शुरू किया तो सारे मीडिया ने उसे 'ढांचा' कहना शुरू कर दिया। आडवाणी तो मुसलमानों को 'मोहम्मदी हिंदू' भी कहलवाना चाहते थे, मगर आडवाणी, इतने मोदी भी न बन पाए थे कि पत्रकार, मुसलमानों को 'मोहम्मदी हिंदू' कहना शुरू कर देते।
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तब तो एक ही 'आर्गेनाइजर' और एक 'पांचजन्य' था, अब तो लगभग हर अखबार, हर टीवी चैनल या तो 'आर्गेनाइजर' है या 'पांचजन्य' है। उनमें मनुष्य हत्यारे, गौभक्त हो जाते हैं। हर संघी राष्ट्रवादी हो जाता है। हर चैनल पर 18-18 घंटे बकवास करने वाले एंकर मोदी का चैनली अवतार बन जाता है।उसे वही दीखता है, जो उससे देखने को कहा जाता है। वही सुनता है, जो उनसे सुनने को कहा जाता है। उससे जिन मुद्दों पर मुंह पर पट्टी बांधने को कहा जाता है, वह बांध लेता है। वह गांधीजी का नहीं, मोदीजी का पहला, दूसरा और तीसरा बंदर बन जाता है। सरसंघचालक जी बात अब लिंचिंग जैसे दो-चार शब्दों से परे जा चुकी है। अब तो पूरा हिंंदी शब्दकोश तैयार है। बस ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी वालों को समझाने-पटाने की जरूरत है।
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