करीब एक हजार साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी की 90 लाख किताबें जलाने के बाद मौका पाकर बख्तियार खिलजी फिर से 'मिशन बुकबर्निंग’ में लग गया है। वह अब स्मार्ट हो गया है। वह खुद खड़े होकर अपनी आंखों के सामने लाइब्रेरी नहीं जलवाता। उसके स्वयंसेवक यह काम करते हैं। वह दिल्ली में या कहीं और होता है। वह भाषण दे रहा होता है। पूजा-पाठ में लीन होता है।
वह वंदे भारत ट्रेन को झंडी दिखाने गया होता है, पर खबर सब रखता है। दिशा-निर्देश जारी करता है! वह इतना स्मार्ट है कि किताबें जलाने अब विदेश से नहीं आता। वह पक्का देसी है। यहां तक कि अल्पसंख्यक भी नहीं है। इस बार भी उसने श्रीगणेश बिहार के नालंदा से किया है। नालंदा से थोड़ा हटकर उसी जिले के बिहारशरीफ से, ऐन मुख्यमंत्री चुनाव क्षेत्र से। कर लें, मुख्यमंत्री जो कर सकते हों!
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उसने अभी-अभी 112 साल पुरानी संस्थान की सैकड़ों किताबें जला दीं, जिनका धुआं चार दिन तक उठता रहा। (वैसे इस बार वह दयालु-सा है, क्योंकि नालंदा में चार महीने तक धुंआ उठा था) ये किताबें दर्शनशास्त्र की थीं, यूनानी चिकित्सा की थीं, इतिहास की थीं लेकिन ये, न देववाणी में थीं, न हिन्दी में थीं। होतीं तो ये शायद बच जातीं। ये अरबी, फारसी और उर्दू में थीं। ऊपर से ये किताबें मदरसा अजीजिया में थीं और भीड़ रामनवमी का उत्सव मनाने निकली थी। आजकल रामनवमी हो या हनुमान जयंती का उत्सव इसी तरह मनाया जाता है। यही परंपरा बन चुकी है। जयश्री राम कहते हुए गुंडे अगर मुस्लिम बस्ती में जाकर डराएं-धमकाएं नहीं, तोड़फोड़ न करें, मस्जिद पर भगवा न फहराएं, तो कैसा उत्सव, कैसी खुशी!
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नहीं-नहीं अकेला खिलजी नहीं आया है। बीसवीं सदी के हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स के साथ आया है। उसके नेतृत्व में आया है। खिलजी पीछे है, गोयबल्स आगे है। वही गोयबल्स जिसने बर्लिन में चालीस हजार लोगों की झूमती-गाती भीड़ के सामने 90 साल पहले हजारों किताबें जलवाने का उत्सव मनाया था। जिनकी किताबें जलाई थीं, वे बीसवीं सदी के गौरव थे। मार्क्स, एंगेल्स, आइंस्टीन, ब्रेख्त, गोर्की, हेमिंग्वे और दुनिया के दूसरे महान लेखक-विचारक थे मगर हिटलर की नजर में जर्मनविरोधी थे! हिटलर आत्महत्या कर लेते हैं, गोयबल्स दफ्न हो जाते हैं। किताबें और लेखकों की आयु सदियों के पार चली जाती हैं।
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नाजियों का काम अब बलात्कारियों और हत्यारों को आम माफी देने से, सामूहिक नरसंहार से जलाने-मारने, किताबों, डाक्यूमेंट्री, फिल्मों को प्रतिबंधित करने से, विरोधियों को बरसों-बरस जेल में ठूंसने से, जगहों के मुस्लिम नाम बदलने से, नेहरू जी के खिलाफ दुष्प्रचार करने से नहीं चल रहा। किताबें जलेंगी तो आदमियों को गैस चैंबर में डालने का रास्ता साफ हो जाएगा। जिंदा बच गए लोग अच्छी तरह चुप रहना सीख जाएंगे! जो चुप हैं, वे सपने में बोलने से भी डरेंगे! देसी नाजी कहीं रात में उनका कत्ल करके न चले जाएं!
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अभी तो श्रीगणेश हुआ है। प्रधानमंत्री मौन हैं। गृहमंत्री चुप हैं। ये अनंतकाल तक मौन रहेंगे। उन्हें ऐतराज़ नहीं कि आप उनके असली रूप में जानते हैं। वे चाहते हैं कि आप खुद सब समझ जाएं! अभी उनका 'अमृतकाल ' चल रहा है, उनके जगद्गुरुत्व का अद्भुत क्षण है।
तो तैयार रहिए। यूनिवर्सिटीज़ बर्बाद हो चुकीं, तो किताबों के जलने का क्या मातम? वैसे भी व्हाट्सएप के युग में किताबें पढ़ता कौन है? जिन्होंने किताबों की पूंजी जमा कर रखी है, उनके घर वाले भी उनके जल्दी मरने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि किताबों को भी दफा किया जा सके। एक दरवाजे से उनका शव बाहर जाएगा, दूसरे से उनकी पुस्तकें!
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