विचार

प्रदूषण दूर करने का ईमानदार इरादा हो तो पेरिस-सियोल से सीख सकते हैं केजरीवाल

दिल्ली जिस तरह प्रदूषण की चपेट में है, पेरिस, सियोल, बीजिंग- जैसे शहर कभी ऐसी ही स्थितियों से जूझ रहे थे। वहां जरूरी उपाय किए गए, जिसके परिणाम भी आए। पड़ोसी राज्यों को पराली जलाने के लिए कोसने वाले केजरीवाल ने अगर ठोस उपाय किए होते तो स्थिति ऐसी न होती।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

दिल्ली समेत लगभग पूरे उत्तर भारत को इन दिनों काला धुआं, धुंध और प्रदूषण से जूझना पड़ रहा है। दिल्ली और केंद्र की सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टियों को लगता है कि यह प्रदूषण पराली जलाने से हो रहा है जबकि ऐसा है नहीं। दरअसल, मूल समस्या हमारे ट्रांसपोर्ट सिस्टम और औद्योगिकीकरण में है। शहरों में लाखों मोटर वाहन निर्बाध ढंग से चल रहे हैं और इन्हें व्यवस्थित ढंग से चलाने केलिए नियम-कानून-परिस्थिति-सुविधा को लेकर सरकारें कुछ सोच नहीं रहीं। इस मामले में हमें कुछ अन्य देशों-शहरों के उदाहरण देखने चाहिए।

साल 2015 में पेरिस का एफिल टावर नजदीक से भी दिखना मुश्किल हो गया था। वजह वही थी- प्रदूषण बहुत बढ़ गया था और इस वजह से हवा की पारदर्शिता बहुत कम हो गई थी। पेरिस के लोगों ने बीजिंग, दिल्ली और दूसरे शहरों में ऐसी हालत होने के बारे में तो खबरें सुन रखी थीं लेकिन उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि खुद उनके शहर में उनके साथ ऐसा होगा। धीरे-धीरे यह प्रदूषण पेरिस के आसपास के शहरों तक फैलता गया।

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फ्रांस के पर्यावरण और स्वास्थ्य मंत्री ने बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं, सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों और छोटे बच्चों को इस प्रदूषित वायु से बचने के लिए सतर्क किया। सरकार ने साइकिल शेयरिंग, इलेक्ट्रिक कार और सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल का आग्रह किया तथा शहर में सम-विषम (ऑड-इवन) योजना लागू कर दी गई। यह तीसरा अवसर था जब पेरिस को ऐसी आपातकालीन स्थिति का सामना करना पड़ रहा था। इससे पहले 1997 और 2014 में भी ऐसी ही हालत पैदा हुई थी। तब से नगर निकाय आपातकालीन उपाय के तौर पर सम-विषम, कार-फ्री डे और सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल की अपील करती रही थी। इसके बावजूद शहर में वायु प्रदूषण, सड़क-जाम और सड़क-दुर्घटनाओं में कोई दीर्घकालिक सुधार होता हुआ नहीं दिख रहा था।

इस बार फिर ऐसी हालत होने पर पेरिस के मेयर ऐनी हिडैल्गो ने आपातकालीन उपाय के रूप में वही पुराना तौर-तरीका लागू किया। तब फ्रांस के इकोलॉजी मिनिस्टर सेगोलेने रॉयल ने इसका सार्वजनिक विरोध किया और कहा कि “एक लंबी योजना के बगैर शहर के परिवहन, वायु-प्रदूषण, सड़क-जाम और दूसरी समस्याओं से निजात पाना संभव नहीं है। ऐनी हिडैल्गो वास्तव में ‘रीयल ट्रांसपोर्ट पाॅलिसी’ लागू करने में विफल रही हैं, इसीलिए पुराने कार्यक्रम को बार-बार दुहरा रही हैं।”

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पेरिस की मेयर सुश्री ऐनी हिडैल्गो और फ्रांस की इकोलॉजी मंत्री सुश्री सेगोलेने रॉयल- दोनों ही वहां की सोशलिस्ट पार्टी की सदस्य हैं लेकिन इस मुद्दे पर दोनों एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हो गईं। बाद में, पेरिस के लोगों का दबाव इतना बढ़ गया कि दोनों को एक साथ आना पड़ा। पेरिस आजकल इस समस्या से तात्कालिक निजात पाने के लिए तो सक्रिय है ही, दूरगामी प्रभाव वाली योजनाओं पर भी वहां तीव्रता से काम शुरू कर दिया गया है।

पेरिस में बहुमंजिली इमारतें बनाने पर रोक है। ‘एफिल टावर’ इसका अपवाद है। शहर में ‘खुली सार्वजनिक जगह’ है जिसे ‘पेरिस स्क्वायर्स’ के रूप में जाना जाता रहा है। वहां हरी घास, खुली हवा और रोशनी हर व्यक्ति के लिए सुलभ रही हैं। कालांतर में मोटर-वाहन इन ‘सार्वजनिक स्थानों’ को अपने कब्जे में लेते गए और ‘खुले सार्वजनिक स्थान’ लुप्त प्राय होते गए। मेयर ने विलुप्त हो चुके ‘पेरिस स्क्वायर्स’ में से सात को ‘रिक्लेम पब्लिक स्पेस’ घोषित किया और सड़कों पर ‘पद-पथिक-पेरिस’ योजना की शुरुआत की। सातों स्क्वायर्स पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों की सुविधा के अनुरूप विकसित होंगे जहां आराम से बातचीत और मिलने- जुलने के लिए फर्नीचर और मूलभूत जरूरतें उपलब्ध होंगी। यहां मोटरगाड़ी का प्रवेश वर्जित होगा। ‘पद-पथिक-पेरिस’ के संदर्भ में कहा गया है कि यह समय शहर में कारों के प्रवेश और इस्तेमाल पर पुनः विचार करने का है और शहर के विकास में नागरिकों के गुणवत्तापूर्ण जीवन का समावेश तथा पेरिस के सार्वजनिक स्थानों पर उनके हक की बहाली का है।

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द डिपार्टमेंटऑफ रोड एंड मोबिलिटी ने पेरिस शहर के अंदर 185 एकड़ में बनी सड़क को साइकिल चालकों, पैदल चलने वालों के लिए छोड़ दिया है। यहां गाड़ियों की पार्किंग पर रोक होगी। शहर के सार्वजनिक स्थानों की री-डिजायन का काम जोरों से चल रहा है। इस कारण ऑटोमोबाइल ट्रैफिक में 25 प्रतिशत और निजी कारों की संख्या में 37 प्रतिशत की कमीआई है। शहर केअंदर कारों की गति सीमा 50 किलोमीटर प्रति घंटा थी, लेकिन दूसरे वाहनों के लिए पब्लिक स्पेस शेयर करने केलिए स्थानीय निकाय ने पूरे शहर में कारों की गति सीमा 20 किलोमीटर प्रति घंटा कर दी है। अब सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना सुगम हो गया है। इस तरह ही, पेरिस प्रदूषण दूर करने के साथ बेहतर सार्वजनिक परिवहन वाला शहर बनता जा रहा है।

सियोल का उदाहरण

1970 में दक्षिण कोरिया ने सीयोल शहर के चेओन्ग्चे ओन नदी को पाटकर सड़क और फ्लाईओवर का निर्माण किया। सरकार ने इसे “विकास के प्रतीक” के रूप में प्रचार किया। लेकिन 2000 आते-आते यह इलाका सीयोल का सबसे अधिक जाम और शोर वाला हो गया। कोई उपाय होता नहीं दिख रहा था। सन 2000 में स्थानीय निकाय का चुनाव आया, तो लोगों ने तय किया कि हम उसे ही मेयर चुनेंगे जो सड़क जाम और शोर से मुक्ति दिलाएगा। इस बार लीमयुंग-बक मेयर चुने गए। उन्होंने योजना तैयार की और फ्लाईओवर हटा दिया गया एवं चेओन्ग्चे ओन नदी को नया जीवन दिया गया। इस नदीमें पास के पहाड़ों से 23 सहायक नदियां आकर मिलती हैं। नदी के उत्तर तथा दक्षिण में घनी आबादी है। नदी केआसपास के इलाके को खुले मैदान और पार्क के रूप में विकसित किया गया। सार्वजनिक परिवहन की सुविधा के लिए बस रैपिड ट्रांजिट प्रणाली लागू की गई और कारों की संख्या आधी कर दी गई।

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अपने यहां कुछ नहीं हो रहा

दिल्ली में तीसरी बार ऑड-इवन योजना लागू तो की गई लेकिन अन्य उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया, इसी वजह से स्थिति जब-तब गंभीर हो जाती है, जबकि आने वाले दिनों में हालात और खराब होंगे। आम आदमी पार्टी ने पिछली बार अपने चुनाव-प्रचार में बीआरटी के खिलाफ मुहिम चलाई। सरकार में आने के बाद उसे तोड़ने का निर्णय लिया और उत्सव मनाया। लेकिन अन्य कोई ऐसा उपाय नहीं किया जो उल्लेख लायक हो। विकासपुरी से वजीराबाद तक पद-पथिकों, साइकिल और रिक्शा चालकों के लिए अलग लेन बनाने की योजना थी। इस मार्ग पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कई बार कई फ्लाईओवर मार्ग का उद्घाटन कर चुके हैं लेकिन पैदल चलने वालों, साइकिल और रिक्शा चालकों की सहूलियत के लिए बनने वाले ढांचे का कहीं कोई नामोनिशान नहीं दिखता।

सरकार ने दो नए बीआरटी कॉरिडोर और दो-मंजिले फ्लाईओवर के निर्माण की घोषणाएं की हैं। इसकी एक मंजिल कारों के लिए होगी और दूसरी मंजिल पर बाकी गाड़ियां चलेंगी। इसके ही एक लेन में बीआरटी बसें भी चलेंगी। सड़क किनारे के बस स्टॉप तक पहुंचने के लिए सुविधा का अभाव झेल रहे लोग दूसरी मंजिल के फ्लाईओवर पर बने बस स्टॉप पर किस तरह पहुंच पाएंगे, इसे लेकर अभी से आशंकाएं हैं। बसों की खरीद, बसों में सीसीटीवी, किराये की साइकिल, शेयरिंग साइकिल, नए बस डिपो के निर्माण- ये सब जरूरी काम हो सकते हैं। लेकिन इससे जरूरी काम जिसे पहले करना है, जिसकी अनुपस्थिति में इस सबका चलना नामुमकिन है, वह है- इनके अनुकूल ढांचा बनाना और वाहनों के बढ़ते ग्राफ पर अंकुश लगाना ताकि पैदल चलने वालों, साइकिल और रिक्शा चालकों के लिए रास्ता बनाया जा सके। इसके लिए कोई सोच नहीं दिख रही।

(नवजीवन के लिए इंस्टीट्यूट फाॅर डिमाॅक्रेसी एंड सस्टेनैबिलिटी के निदेशक राजेंद्र रवि का लेख)

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