कपिला वात्स्यायन के निधन के साथ ही भारत ने एक सांस्कृतिक रत्न खो दिया है। रामलाल और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेना सत्यवती मलिक की पुत्री 91 वर्षीय कपिला वात्स्यायन की शिक्षा-दीक्षा शांति निकेतन, दिल्ली विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुई।
वह एक अद्भुत शास्त्रीय नृत्यांगना, इतिहासकार, ब्यूरोक्रेट और सांसद थीं। उन्होंने बहुत से काम लीक से हटकर किए और कई शानदार संस्थाओं की स्थापना की। इनमें इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर परफाॅर्मिंग आर्ट्स भी शामिल है। उन्हें मिले पुरस्कारों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, जिनमें उनके बौद्धिक उत्कर्ष को सराहा गया है।
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लंबे कद की आभामयी कपिला जी आमतौर पर बंगाल और उत्तर-पूर्व की हस्तशिल्प वाली सूती साड़ियां पहनती थीं। उनका राजधानी के बौद्धिक केंद्र इंडिया इंटरनेशनल सेंटर से जीवन के अंत तक गहरा नाता रहा।
जब युवा और छरहरी सी कपिला मलिक शांति निकेतन में शिक्षा लेने पहुंचीं तो उस समय मेरी मां शिवानी जी वहां उनकी सीनियर थीं। वार्डन ने कपिला जी को मेरी मां की देखरेख में रखा। उन्होंने एकदम नए माहौल में आई इस बच्ची का अच्छी तरह ध्यान रखा, यहां तक कि एक बार चिकन पॉक्स होने पर उनकी तीमारदारी भी की। कपिला जी ने विख्यात हिंदी कवि अज्ञेय से विवाह किया था, लेकिन बाद में दोनों ने अपनी राह जुदा कर ली।
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जब मैं अपने दोनों बच्चों के पालन-पोषण से निवृत्त होने के बाद अपने काम की दूसरी पारी शुरू कर रही थी और खुद को असुरक्षित सी महसूस कर रही थी, तो मेरी मां ने मुझे कपिला जी के पास भेजा। कपिला जी ने जिस तरह वात्सल्य के साथ मुझे समझा और कैसे उत्साहित किया, मैं कभी नहीं भूल सकती। मुझे जब भी कोई दिक्कत होती तो वह हमेशा मेरे लिए मौजूद रहतीं। हालांकि उनका जाना अपेक्षित ही था, लेकिन उनके निधन से मुझे बेहद गहरा निजी सदमा पहुंचा है। मानो जैसे मैंने एक बार फिर अपनी मां को खो दिया हो।
कपिला जी का लंबा और शानदार जीवन इस बात का जीता जागता सबूत है कि जब महिला को उसके अनुभव और मिजाज के मुताबिक काम मिल जाए तो वह कितना ऊंचा जा सकती है। अपने बेहद वफादार स्टाफ के प्रमुख शांत स्वभाव के रामाचंद्रन जी की तरफ इशारा करते हुए वे अकसर कहा करती थीं कि अगर आप ऐसा करते हैं जिसकी लोगों को परवाह होती है तो लोग भी आप की परवाह करते हैं। वे कहती थी कि कई बार हमारी गलतियां भी लाभप्रद हो सकती हैं, बशर्ते आप सामने से आकर खेलें।
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उनका मिजाज थोड़ा शाही तुनकमिजाजी वाला था और वह बेतरतीबी और आधे-अधूरे काम को देखकर भड़क उठती थीं। उनके इस मिजाज के चलते उनके साथ काम करने वाले लोगों में परफेक्शनिज्म और काम को समय से पूरा करने की आदतें बनीं, हालांकि भारतीय परंपरा आमतौर पर इसके उलट है। उनकी सोच एकसाथ दो राहों पर चलती थी, एक तो वह आने वाले प्रोजेक्ट की कल्पना करतीं और दूसरा यह है कि इसे हकीकत में ढालने की योजना बनातीं।
मेरी आध्यात्मिक गुरु कपिला जी, आपमें एक साथ एक ऐसा आदर्श सूक्ष्म जगत मौजूद था जिसमें भूत और भविष्य विद्यमान था. जो मेरे जैसों को एक नए वर्तमान के लिए प्रोत्साहित करता है। मेरी दुनिया आपके सौम्य और समृद्ध उपस्थिति के बिना अकेली हो जाएगी।
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