अगर इस पूर्वी राज्य में बीजेपी हारती है, तो वह शोर मचाने वाले, नकारात्मक और ध्रुवीकरण वाले अपने अभियान को दोष दे सकती है। वह मान सकती है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों, हेमंत सोरेन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों और ‘रोटी-बेटी-माटी’ को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्यापे वगैरह काम नहीं आए, आदिवासी बिदक गए और गैरआदिवासियों में से अधिकतर को इससे लुभाया नहीं जा सका।
13 नवंबर को पहले चरण का मतदान हुआ और इससे ठीक पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने झारखंड में कई ‘छापे’ डाले और इन्हें बेतुके तरीके से बांग्लादेशी घुसपैठ से जोड़ा गया। अनाम सूत्रों ने इनमें मानव तस्करी में लिप्त घुसपैठियों और दलालों को लेकर सुबूत की ‘पुष्टि’ की। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने इस पर पलटकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से ठीक ही यह सवाल पूछा कि (अगर कोई घुसपैठ हुआ भी है, तो) इसे रोकने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है?
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अगर जेएमएम के नेतृत्व वाला गठबंधन जीतता है, तो इसका श्रेय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी-विधायक कल्पना मुर्मू सोरेन को दिया जाएगा। न सिर्फ जेएमएम बल्कि अपने साथी दलों- कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और सीपीआई (माले) के प्रत्याशियों के लिए भी दोनों राज्य के कोने-कोने में दौरा-प्रचार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत विभिन्न भाजपा नेताओं की सभाओं में तो लोग अपेक्षाकृत कम नजर आए, ग्रामीण इलाकों में सोरेन पति-पत्नी को सुनने-देखने भीड़ खुद ही उमड़ती दिखी।
पहले चरण के मतदान के बाद यह ज्यादा साफ हो गया है कि जेएमएम के नेतृत्व वाली सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने उसी तरह काम किया है जैसा वह चाहती थी। इनमें से कोई भी योजना किसी खास वर्ग के लिए नहीं है- वे सभी समुदायों और जातियों के लिए हैं। आदिवासियों और दलितों के साथ-साथ ‘आम जातियों’ की महिलाओं को भी मैया (मतलब, बेटी) सम्मान योजना की किस्तें मिलीं। वृद्धावस्था पेंशन की राशि अन्य राज्यों में 60 साल के बाद मिलती है लेकिन यहां यह 50 पार महिलाओं को दी गई। राज्य सरकार के ग्रीन राशन कर्ड का फायदा सभी वर्गों को मिला। माना जाता है कि आवास योजना के लाभ के नियमतः इच्छुक सभी लोग अब इसका लाभ उठाने की प्रत्याशा में हैं।
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अपने प्रचार अभियान के दौरान सोरेन पति-पत्नी ने ‘सम्मान देने’ के भाजपाई दावे की कलई खूब खोलीः गुजरात में बिलकिस बानो के साथ बलात्कार करने वाले दोषियों का जेल से रिहाई के बाद अभिनंदन किया गया, हरियाणा में बलात्कार के आरोपी ‘बाबा’ राम रहीम को बार-बार पैरोल-फरलो पर जेल से बाहर निकलने का मौका दिया गया, बलात्कार और छेड़छाड़ के आरोपी उत्तर प्रदेश के भाजपाई मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को भी कई मर्तबा विशेष सुविधाएं दी गईं। सभाओं में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि ‘अब ये लोग हमें बेटी बचाओ पर भाषण पिलाते हैं!’ ऐसी ही खोखली बातों की वजह से बीजेपी का अभियान अपना खास असर नहीं छोड़ पा रहा।
स्वतंत्र पर्यवेक्षक इस बात के लिए भी हेमंत सोरेन की प्रशंसा करते हैं कि उन्होंने जेएमएम को अधिक समावेशी राजनीतिक दल बना दिया है। जेएमएम को अब कट्टर, सिर्फ आदिवासी पार्टी नहीं माना जाता। मुख्यमंत्री के सहयोगी, नौकरशाह, विधायक और प्रत्याशी सभी वर्गों से आते हैं और ‘झारखंडी’ पहचान की लगातार बात करने के बावजूद वह सबको एक साथ मिलाकर चल रहे हैं। वह राज्य में खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों का भंडार होने लेकिन क्रोनी पूंजीपतियों द्वारा ही इसका दोहन करने देने पर जोर देने और मोदी सरकार द्वारा राज्य के साथ भेदभाव करने की बातें जोर-शोर से उठा रहे हैं। ऐसे में झारखंड के लोग बीजेपी को दोबारा मौका दें, इसकी कोई वजह नहीं है।
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कल्पना मुर्मू सोरेन राज्य में ‘उल्लेखनीय’ तौर पर उभरी हैं। उनमें आत्मविश्वास है, उनके विचारों और हाव-भाव में स्पष्टता है, और यहां तक कि कई लोग सभाओं में उन्हें हेमंत सोरेन से बेहतर वक्ता बताते हैं। ईडी ने तुच्छ-से मामले में हेमंत सोरेन को जनवरी 2024 में जब गिरफ्तार कर लिया, तब वह घर की चहारदीवारी से निकलीं। उनका राजनीतिक जीवन महज 10 महीने का है। इसी में वह उपचुनाव जीतीं, विधायक बनीं और लोकप्रिय ‘मैया सम्मान योजना’ को लागू करने के लिए उन्हें मुख्य प्रेरणा माना जाता है। उनकी इस बारे में भी स्वीकार्यता नजर आती है कि कई सहयोगी दलों के उम्मीदवारों ने अनुरोध कर अपने इलाकों में उन्हें प्रचार के लिए बुलाया है।
कल्पना का जन्म ओडिशा में हुआ है। उन्होंने पुणे में सिम्बायोसिस से एमबीए किया है, बीजू पटनायक यूनिवर्सिटी से बीटेक डिग्री ली है, कॉरपोरेट और कई प्राइवेट सेक्टर कंपनियों में काम किया है। वह उड़िया बोल सकती हैं। यही नहीं, कई आदिवासी बोलियों पर भी उनकी अच्छी पकड़ है। इस वजह से कई इलाकों में महिलाओं से बातचीत करने में वह सहज रहती हैं। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार पहले चरण में अधिक वोटिंग की एक बड़ी वजह उनका आकर्षण और विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं में महिलाओं को पैसे मिलने को भी दिया जा रहा है।
उनसे कई बार पूछा गया है कि जेएमएम में उन्हें ही क्यों तवज्जो दी गई। बीजेपी के परिवारवाद के आरोप का वह जोरदार प्रतिकार करती हैं। वह कहती हैं कि बीजेपी को यह आरोप लगाने का अधिकार ही नहीं है क्योंकि उसने खुद अपनी पार्टी के कई नेताओं के बेटों, पत्नियों और बहुओं को टिकट दिए हैं। वह इस बात पर भी जोर देती हैं कि दूसरे क्षेत्रों की तरह राजनीति में भी मेरिट देखी जाती है। अगर लोग उन्हें चाहेंगे और समर्थन देंगे, तब भी क्या उन्हें सिर्फ इसलिए अपने पैर खींच लेने चाहिए कि उनका राजनीतिक परिवार से रिश्ता है?
उन्होंने पीएम मोदी, अमित शाह, हिमंत बिस्वा सरमा और जेपी नड्डा के हमलों का जिस तरह करारा जवाब दिया, उसने सबको चौंका दिया है। वह लोगों को कहती रहती हैं कि वे नहीं भूलें कि भाजपा की दिलचस्पी अपने उद्योगपति और पूंजीपति दोस्तों को राज्य की खनिज संपदा सौंपकर इसका दोहन करना है।
वह पूछती हैं कि केन्द्र सरकार और उसके अधीन काम करने वाले सार्वजनिक उपक्रम निकाले गए खनिजों पर रॉयल्टी का बकाया कब जारी करेंगे? वह लोगों को याद दिलाती हैं कि कभी न भूलें कि हमारा 1.36 लाख करोड़ रुपये अब भी बाकी है। कहती हैं- जब भी बीजेपी नेताओं को एक चुनावी रैली से दूसरे चुनावी मैदान में ले जाने वाले हेलीकॉप्टर हमारे ऊपर मंडराते हैं, तो पैसा ही बोलता है। लेकिन हमारा पैसा?
इसे संकल्प कहें या हताशा, चुनाव जीतने की बीजेपी की बेचैनी दिख रही है। अगर वह हारती है, तो यह समय या प्रयास (या पैसे) की कमी के कारण नहीं होगा। नरेन्द्र मोदी ने एक चुनावी रैली को संबोधित करने के लिए रांची से जमशेदपुर तक सड़क मार्ग से 130 किलोमीटर की दूरी तय करने का फैसला किया, जब बारिश के कारण हेलीकॉप्टर से जाना संभव नहीं हुआ। हिमंत बिस्वा सरमा ने जेएमएम से चंपाई सोरेन और कांग्रेस से गीता कोड़ा को तोड़कर ‘हमेशा की तरह चतुराई’ दिखाई। लेकिन सोरेन दंपति ने दलबदलुओं की बुराई नहीं करके उनका सम्मान के साथ उल्लेख किया। साथ ही बीजेपी से यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि वह विभिन्न मुद्दों पर कहां खड़ी है: सरना संहिता की मांग (जिसका पालन वे गैर-ईसाई आदिवासी भी करते हैं जो हिन्दू नहीं हैं), भूमि अधिग्रहण और वन अधिकार अधिनियम, किरायेदारी और अधिवास नीतियां। राज्य के गठन के बाद से 24 में से 13 सालों तक राज करने वाली पार्टी इन सवालों से बच नहीं सकती।
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अगर झारखंड विधानसभा चुनावों में कोई छुपारुस्तम है, तो वह है जेएलकेएम (झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा)। यह 30 साल के जयराम महतो द्वारा स्थापित दो साल पुरानी पार्टी है। ‘टाइगर’ महतो के नाम से मशहूर पीएचडी स्कॉलर (जो अंग्रेजी में डॉक्टरेट कर रहे हैं) ने मुश्किल सवाल पूछकर युवाओं की कल्पना को जगाया है, मुख्यधारा की पार्टियों को पर्याप्त काम न करने के लिए जिम्मेदार ठहराया है और लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में पेश आने वाली दिक्कतों को मुद्दा बनाया है। जेएलकेएम कैसा प्रदर्शन करती है, इस पर सबकी नजरें हैं क्योंकि अन्याय से आजिज महतो बड़े आक्रामक अंदाज में ठोस बदलाव का वादा कर रहे हैं।
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