क्या उमर अब्दुल्ला की नई सरकार जम्मू और कश्मीर के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोल पाएगी जिसका इस प्रदेश को बहुत लंबे वक़्त से इंतज़ार है? वर्ष 2014 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव और इस चुनाव के बीच प्रदेश का संवैधानिक और राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है। जम्मू और कश्मीर अब एक विशेष राज्य की बजाए एक सामान्य राज्य भी नहीं बचा है। विशेष दर्जा देने वाला संविधान का अनुच्छेद 370 निरस्त हो चुका है। अब जम्मू और कश्मीर बस एक केन्द्रशासित प्रदेश रह गया है। केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में लेफ्टिनेंट गवर्नर को विशेष अधिकार हासिल है।
नए परिसीमन के बाद जम्मू क्षेत्र और कश्मीर घाटी का आंतरिक राजनीतिक संतुलन बदल चुका है। अब जम्मू का वजन कश्मीर के बराबर हो गया है। जम्मू और कश्मीर की परछाई में गुमनाम और नजरअंदाज रहा लद्दाख अब एक अलग केन्द्रप्रशासित प्रदेश बन चुका है और अपनी अलग लड़ाई लड़ रहा है। उधर, पाकिस्तान अपनी परेशानियों में उलझा है। कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान का साथ देने वाली ताकतें चीन की चिंता में पड़ी हैं। इस लिहाज से यह पिछले छह साल से चले आ रहे राजनीतिक गतिरोध को सुलझाने का एक बड़ा अवसर है।
Published: undefined
जम्मू और कश्मीर में हाल ही में संपन्न हुए चुनावों की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुए। उसमें कश्मीर घाटी समेत सभी इलाकों की जनता की अच्छी भागीदारी हुई और छह साल के बाद प्रदेश में लोकतांत्रिक सरकार की बहाली हुई। इस चुनाव में जनता ने केन्द्र की सत्तारूढ़ बीजेपी और राज्य में नई सरकार संभालने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन- दोनों को सबक सिखाए हैं।
इस चुनाव में बीजेपी की रणनीति यह थी कि जम्मू इलाके में वह एकतरफा जीत हासिल कर ले जहां सीटों की संख्या बढ़ गई है। उधर, कश्मीर घाटी में वोटों और सीटों का बंटवारा हो जाए, और काफी सीटें उन दलों को मिल जाए जो खुले या छुपे तौर पर बीजेपी का साथ दे सकती हैं। ऐसे में, बीजेपी पहली बार अपने नेतृत्व में जम्मू और कश्मीर में सरकार बना पाएगी। जरूरत पड़े तो उपराज्यपाल द्वारा नामांकित 5 विधायकों की मदद ली जाएगी। लेकिन यह योजना सफल नहीं हुई।
Published: undefined
जम्मू के हिन्दू इलाके में तो बीजेपी को एकतरफा सफलता मिली लेकिन जम्मू के पहाड़ी और क़बायली इलाक़े में वैसी कामयाबी नहीं मिली। उधर, कश्मीर घाटी में तमाम गाजे-बाजे के बावजूद बीजेपी को अधिकांश सीटों पर उम्मीदवार नहीं मिले; जहां उम्मीदवार मिले, उन्हें वोट नहीं मिले। महबूबा मुफ्ती, राशिद इंजीनियर और सज्जाद लोन सरीखे जिस-जिस पर बीजेपी की बी टीम होने की तोहमत लगी, उन संभावित सहयोगियों को कश्मीर घाटी की जनता ने पूरी तरह खारिज कर दिया। सबक ये हैं कि सुरक्षा बलों के सहारे जनता को डराया जा सकता है लेकिन उनका दिल नहीं जीता जा सकता है; प्रचारतंत्र के सहारे बाक़ी देशों को मोहक तस्वीरें दिखाई जा सकती हैं लेकिन स्थानीय जनता को भरमाया नहीं जा सकता है।
साथ ही चुनाव जीतने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन के लिए भी जनता के सबक हैं। बेशक कश्मीर घाटी ने पूरी तरह नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपना समर्थन दिया है लेकिन चार महीने पहले इसी कश्मीर घाटी में बारामूला संसदीय क्षेत्र की जनता ने खुद उमर अब्दुल्ला को चुनाव में पटकनी दी थी और उनके मुकाबले जेल में बंद रशीद इंजीनियर को पसंद किया था। इस चार महीने में कश्मीर घाटी की जनता का मन नहीं बदला है- बस, उनकी उम्मीद का बोझ एक बार फिर नेशनल कॉन्फ्रेंस के कंधे पर आ गया है। यह बोझ बहुत भारी है।
Published: undefined
सीएसडीएस-लोकनीति का सर्वेक्षण दिखाता है कि जनता की असल चिंता बेरोजगारी, मंहगाई और विकास के मुद्दों की है। इन उम्मीदों को पूरा करना आसान नहीं होगा। यह चुनौती और भी बढ़ जाती है चूंकि जम्मू क्षेत्र के हिन्दू मतदाताओं में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन, और ख़ासतौर पर कांग्रेस बिलकुल असफल हो गई। नई सरकार के सामने यह चुनौती रहेगी कि वह अल्पसंख्यक हिन्दुओं का विश्वास जीते।
नई सरकार की पहली चुनौती जम्मू और कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा हासिल करना होगा। इसे केन्द्र सरकार और संसद ही कर सकती है। वैसे, इस सवाल पर सब राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की सहमति है। सुप्रीम कोर्ट के सामने केन्द्र सरकार यह वायदा भी कर चुकी है। बीजेपी ने भी जम्मू और कश्मीर की जनता को यह वायदा किया है। उम्मीद करनी चाहिए कि अब प्रदेश में अपनी मनपसंद सरकार न बनने के बाद भी बीजेपी अपने वादे पर कायम रहेगी और बिना किसी देरी या पेंच के इसे राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा ताकि चुनी हुई सरकार जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप काम कर सके।
Published: undefined
अनुच्छेद 370 का मामला ज्यादा पेचीदा है लेकिन उससे मुंह चुराना संभव नहीं है। सीएसडीएस और लोकनीति के सर्वेक्षण ने एक बार फिर इस सच को रेखांकित किया है कि 370 समाप्त करने के दावे से बाकी देश में बीजेपी को जो भी समर्थन मिला हो, इस कदम से जम्मू और कश्मीर की जनता खुश नहीं है। सच यह है कि प्रदेश की दो तिहाई जनता (और कश्मीर घाटी में लगभग सभी) 370 की वापसी चाहते हैं। सच यह भी है कि बदले हुए हालात में और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे स्वीकार करने के बाद 370 की पुरानी शब्दावली पर जाना न तो संभव है, न ही जरूरी है। लेकिन यह साफ है कि इस प्रदेश की विशिष्ट स्थिति को देखते हुए इसे एक विशेष दर्जा और कुछ विशेष स्वायत्तता देनी ही होगी।
ध्यान रहे कि संविधान में अनुच्छेद 371 के तहत ऐसे ही विशेष स्वायत्तता पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को मिली हुई है। यही नहीं, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक- जैसे राज्यों के कुछ क्षेत्रों को भी अनुच्छेद 371 के तहत विशेषाधिकार प्राप्त है। ऐसे में 370 की जगह 371 के सहारे जम्मू और कश्मीर के नागरिकों को जमीन और नौकरी संबंधी विशेषाधिकार देना अपरिहार्य है। इस सच को स्वीकार करने के लिए बीजेपी को जम्मू और कश्मीर का इस्तेमाल सिर्फ राष्ट्रीय राजनीति के मुहावरे और मोहरे की तरह करने का लालच छोड़ना होगा। यही सच्चा राष्ट्रहित होगा।
-- --
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined