विचार

समय आ गया है जब राहुल गांधी अर्ध पंडितों और अर्ध राजनीतिज्ञों को उनकी ही भाषा में तुर्की-ब-तुर्की जवाब दें

बीते करीब 10 साल में संघ-बीजेपी ने राहुल गांधी का मजाक उड़ाने और तमाम किस्म के कुप्रचार में कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन राहुल गांधी की शालीनता, देश और लोगों के प्रति उनका समर्पण कम नहीं हुआ है। समय आ गया है कि राहुल आलोचकों को उनकी ही भाषा में जवाब दें।

फोटो : Getty Images
फोटो : Getty Images Hindustan Times

पिछले साल आरएसएस राहुल गांधी से उनके 50वें जन्मदिन पर कांग्रेस को भंग करने की अपील कर रहा था। लेकिन यह एक हकीकच है कि बीजेपी और उसकी आईटी सेल की तमाम कोशिशों के बावजूद उनका पीछा राहुल गांधी से नहीं छूटा है। हो सकता है कि आज राहुल गांधी के 51वें जन्मदिन पर आरएसएस अपनी उसी अपील को फिर से जारी करे, और हमेशा की तरह तमाम राजनेता, अर्ध-राजनेता और राजनीतिक पंडित और अर्ध-पंडितों इस मुद्दे को उठाएंगे और तरह-तरह की सलाहें सामने रखेंगे।

उनकी सलाहों में बहलाने-फुसलाने, तंग करने और यहां तक कि ये बातें भी होंगी कि राहुल गांधी को किनारे हट जाना चाहिए और किसी और को कांग्रेस की बागडोर सौंपकर इसके पुनर्उत्थान का जिम्मा दे देना चाहिए। उन्हें कांग्रेस में हो रहे दलबदल, कांग्रेस की चुनावी हार, पार्टी की ताकत और किस्मत सबके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा, और इस तरह वे इस तथ्य को स्वीकार कर लेंगे कि यह राहुल गांधी ही हैं जो कांग्रेस पार्टी को जिंदा रखे हुए हैं और इसकी धमक का ऐहसास करा रहे हैं और इसीलिए वे उन्हें सलाह देंगे कि वे पार्टी छोड़ दें ताकि कांग्रेस की धमक भी खत्म हो जाए।

लेकिन यह भी सत्य और तथ्य है कि और बीजेपी-आरएसएस निस्संदेह इस तथ्य को जानते हैं कि राहुल गांधी ही अकेले ऐसे नेता हैं, सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि पूरे विपक्ष में ऐसे नेता हैं जो आरएसएस और बीजेपी के साथ कभी समझौता नहीं करेंगे। इस दावे पर सिर्फ एक और ही नेता खरे उतरते हैं, वे हैं लालू प्रसाद यादव। लेकिन उम्र, बीमारियां और जेल में रहने के चलते वे काफी कमजोर हो चुके हैं और बीजेपी को लिए कोई खतरा नहीं हैं। बाकी दूसरे दलों और विपक्ष के कुछ मुख्यमंत्रियों ने किसी न किसी समय-समय पर बीजेपी को करारा जवाब दिया है और नरेंद्र मोदी से प्लेग की तरह परहेज किया है।

संघ के एक विचारक ने एक बार स्वीकार किया था कि संघ ने कांग्रेस के कई नेताओं के साथ संवाद स्थापित किया है और मौजूदा सत्ता और शासन की ताकत को देखते हुए वे कांग्रेस की विचारधारा के साथ समझौता करने को भी तैयार थे, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ही संघ के साथ किसी भी तरह के समझौते या संवाद के लिए तैयार नहीं हो सकते।

आरएसएस इस बात से भी भलिभांति परिचित है कि बीते करीब 10 साल में राहुल गांधी का मजाक उड़ाने और तमाम किस्म के कुप्रचार के बावजूद राहुल गांधी की शालीनता, उनकी समझ, देश के प्रति उनका समर्पण, लोगों के साथ उनका जुड़ाव और खरी बात कहने की उनकी योग्यता संघ के लिए हमेशा चिंता का विषय रहा है।

कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए राहुल गांधी से पार्टी से अलग-थलग होने की बात करने वाली बीजेपी की टूलकिट के वायरल होने सेकुछ दिन पहले हाल ही में इस लेखिका ने कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता से बातचीत की थी, जिसमें उन्होंने माना था कि दरअसल संघ चाहता है कि राहुल गांधी अलग हो जाएं और कांग्रेस की बागडोर किसी और के हाथ में दे दें। इस नेता ने एक विशेष कांग्रेस नेता का नाम लिया था, जो पहले से ही बीजेपी के साथ सार्वजनिक तौर पर समझौता कर चुका है, और कहा था कि संघ उन्हें कांग्रेस के संभावित अध्यक्ष के रूप में देखता है। इस नेता ने बीजेपी के साथ नेता के जुड़ाव का बचाव करते हुए कहा था, "अगर आपको एक पद देने का वादा किया जाए और फिर इसे पूरा न किया जाए, तो क्या आप साथ छोड़कर दूसरे दल में नहीं शामिल हो जाएंगे।"

ऐसे ही कुछ कांग्रेसी नेता हैं जो राजनीतिक को एक पेश की तरह देखते हैं न कि किसी विचारधारा या देश की सेवा के संकल्प के रूप में। जैसा कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने हाल में कहा था कि किसी राजनीतिक दल में शामिल होना किसी बैंक में एक कर्मचारी की तरह काम करना नहीं है। लेकिन बीजेपी और संध को तो ऐसे ही नेता भाते हैं और इसीलिए वे उन लोगों से नफरत करते हैं जो उनके सिद्धांतों से अलग सोच रखते हैं।

बीजेपी की सोशल मीडिया टीम और प्रचार मशीनरी राहुल गांधी पर इस उम्मीद में हमले जारी रखेगी कि शायद कुछ हो जाए, लेकिन राहुल गांधी अपनी जगह जमे हुए हैं और इसी से उनके आलोचकों को काफी तकलीफ होती है। राहुल गांधी यहां तक अपने दम पर आए हैं, अपने साहस और विश्वास के भरोसे से आगे बढ़े हैं। वे अपने आलोचकों पर प्रतिक्रिया नहीं देते। उन्होंने बहुत ही कठोर शब्दों का सामना किया है, लेकिन आलोचकों की टिप्पणियों पर उनकी चुप्पी ने उनके आलोचकों को उत्साहित और निराश दोनों किया है और संभवतः उनके प्रशंसकों को भ्रमित किया है।

कांग्रेस के कई प्रवक्ता हैं जिन्होंने कांग्रेस और राहुल गांधी विरोधी प्रचार और अभियान का तीखा जवाब दिया है और इससे उनकी एक अलग पहचान भी बनी है। उन्होंने सत्ता और सत्ताधारी दल के सामने सच बोलने के लिए असहज सवाल भी उठाए हैं। लेकिन पार्टी के प्रवक्ताओं को आमतौर पर ऐसे सवालों का जवाब देना होता है जिनका जवाब सीधे-सीधे हां या न में नहीं हो सकता।

सबको याद है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ‘दीदी-ओ-दीदी’ खहने पर किस तरह तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खरी-खरी सुनाते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी थी। महुआ मोइत्रा ने एकदम ठीक प्रधानमंत्री के लहजे पर सवा उठाया था कि आखिर यह सब क्या था, लेकिन ममता बनर्जी खुद उतनी प्रभावी प्रतिक्रिया नहीं दे सकती थीं क्योंकि वे प्रोटोकॉल और गरिमा से बंधी हुई थीं।

कांग्रेस को महुआ मोइत्रा जैसे तेज नेताओं की जरूरत है जो किसी भी तरह के कटाक्ष और वाक हमलों का उसी लहजे में जवाब दे सकें। अर्ध पंडित और अर्ध राजनीतिज्ञ सिर्फ एक भी भाषा समझते हैं, वह भाषा जिसमें वे खुद बात करते हैं। ऐसे में राहुल गांधी को इस समय सिर्फ एक ऐसे निजी प्रवक्ता की जरूरत है जो तेज हो और खरी-खरी सुना सके।

1988 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान, माइकल डुकाकिस पर जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश के रिपब्लिकन अभियान ने जबरदस्त हमले किए और उनके ग्रीक मूल का उपहाल उड़ाते हुए उन पर बेतहाशा निराधार आरोप लगाए थे। डुकाकिस ने इन आरोपों का जवाब नहीं दिया और उनका मानना था कि ऐसा करना सम्मानजनक नहीं होगा और लोग इस बात को समझेंगे। दुर्भाग्य से, लोग नहीं समझ पाए और बेहतर उम्मीदवार होने के बावजूद डुकाकिस बुश से चुनाव हार गए।

वहीं इन्हीं बुश के खिलाफ मैदान में उतरे बिल क्लिंटन ने अगले ही चुनाव में बुश की इस तिकड़म को समझ लिया और ऐसे प्रवक्ताओं की फौज मैदान में उतारी जो तुर्की-ब-तुर्की हर आरोप और हमले का जवाब देते थे। लोगों पर इसका असर हुआ और बुश हार गए। बुश से रिपब्लिकन भी उसी तरह नफरत करते थे जिस तरह आज संघ और बीजेपी राहुल गांधी से करते हैं।

पार्टी के भीतर-बाहर कांग्रेस नेता को विरोधियों के जवाब के लिए खुद खड़े होने की जरूरत नहीं है।

(लेखिका एक स्तंभकार हैं। लेख में विचार उनके निजी हैं।)

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined