पूरी दुनिया आज विश्वगुरु को लेकर चिंतित है क्योंकि कोरोना महामारी से निपटने में हमारा कुप्रबंधन आज पूरी दुनिया के सामने है। अमेरिका के एक स्वतंत्र रिसर्च सेंटर द इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन का कहना है कि आने वाले 4 महीनों यानी सितंबर तक भारत में और 10 लाख लोगों की जान कोरोना के कराण जा सकती है। रिसर्च सेंटर ने यह अनुमान सरकारी आंकड़ों के आधार पर लगाया है, हालांकि श्मशानों की तस्वीरों और अखबारों में आ रही खबरों को देखते हुए सरकारी आंकड़ों पर यकीन करना मुश्किल है।
अभी 6 मई को गुजरात के एक अखबार ने खबर लिखी कि राज्य के सात बड़े शहरों , अहमदाबाद, सूरत, गांधीनगर, बड़ौदा, राजकोट, जामनगर और भवनगर में बीते एक महीने के दौरान कोविड प्रोटकॉल से 17,822 शवों का अंतिम संस्कार किया गया। लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में इस दौरान सिर्फ 1745 लोगों की मृत्यु कोरोना से हुई है, यानी असली संखया का सिर्फ 10 फीसदी। और ध्यान रहे कि इन 10 शहरों में गुजरात की एक तिहाई से भी कम आबादी रहती है। गांवों में तो ऐसे टेस्ट किए जाने वाले और इलाज किए जाने वाले लोगों की संख्या बहुत ही कम है।
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लेकिन यह कहानी अकेले गुजरात की नहीं है। 3 मई को अखबारों में खबर आई कि भोपाल में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 104 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि श्मशानों से मिली जानकारी बताती है कि वहां कुल 3,811 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया और इनमें से 2,557 लोगों की मृत्यु कोरोना से हुई बताई गई।
इसी तरह 4 मई की हरियाणा के संबंध में रिपोर्ट बताती है कि सरकारी आंकड़ों और श्मशानों से मिली संख्या में दोगुने का फर्क है। ऐसा ही बेंग्लुरु का किस्सा है जहां सरकारी तौर पर मृतक संख्या 1422 बताई गई जबकि 3,104 लोगों का कोविड प्रोटोकॉल से अंतिम संस्कार किया गया। उत्तर प्रदेश के मेरठ में भी सरकारी आंकड़ों और श्मशानों से मिली संख्या में 1:7 का फर्क है।
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अगर हम इसे दरकिनार भी कर दें तो भी जो आंकड़े सरकार सामने रख रही है उसे दोगुना या तीन गुना तो माना ही जा सकता है। इस तरह हम देखें तो हमारे यहां कोरोना से मरने वालों की संख्या भले ही सरकारी आंकड़ों में 2.3 लाख हो, जि विश्व में तीसरे नंबर पर है, लेकिन असलियत में यह संख्या 5 से 7 लाख के बीच है जोकि विश्व में सर्वाधिक है। और इससे किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि देश भर में जल रही चिताओं की हृदयविदारक तस्वीरें पूरी दुनिया देख रही है।
मैं साफ करता चलूं कि आंकड़ों की हेराफेरी सिर्फ सरकारी स्तर पर ही नहीं हो रही है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि अधिकतर लोगों की मृत्यु घरों में हो रही है, क्योंकि उन्हें समय रहते मेडिकल सुविधाएं या इलाज नहीं मिल सका, या फिर वे इलाज का खर्च वहन ही नहीं कर सकते थे या फिर उनका टेस्ट ही नहीं किया गया था। दूसरी बात यह कि किसी की मृत्यु कैसे हुई है यह सरकार और डेश सर्टिफिकेट बनवाने वाले पर निर्भर करता है। कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसकी मृत्यु हुई अगर उसे कोई और बीमारी भी थी तो उसकी मृत्यु को किसी अन्य कारण में भी लिखा जा सकता है।
इससे सरकार का ध्येय साफ हो जाता है कि मौतों की संख्या तो कम है, और इससे उसे इस बात से भी मुक्ति मिल जाती है कि वह नाकारा है या बेबस है। लेकिन आंकड़ों को छिपाना और यह न बताना कि हालात बहुत ही गंभीर हैं, इससे हम सभी के लिए खतरा बढ़ जाता है।
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आखिर सरकार को क्यों असली आंकड़े और संख्या लोगों के सामने रखना चाहिए, जवाब है कि इससे लोगों की सुरक्षा होगी। अगर लोगों को रिकवरी रेट जैसे बकवास आंकड़े दिए जाते रहेंगे (क्योंकि बीमारी का कोई इलाज ही नहीं है) तो लोग लापरवाह हो जाएंगे और मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन नहीं करेंगे। लेकिन अगर उन्हें बताया जाएगा कि पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा लोगों की मृत्यु हो रही है और संक्रमण फैल लहा है, क्योंकि सरकार समय रहते स्वास्थ्य सेवाएं दुरुस्त नहीं कर पाई, तो कम से कम वे अपनी सुरक्षा के बारे में तो सोचेंगे।
दूसरा कारण है ऑक्सीजन की कमी। दिल्ली के बाद अब गुजरात और कर्नाटक जैसे बीजेपी शासित राज्य भी कह रहे हैं कि उन्हें मोदी सरकार जरूरत भर की ऑक्सीजन मुहैया नहीं करा रही है। गुजरात ने कहा कि फिलहाल उसे 1400 टन प्रतिदिन ऑक्सीजन चाहिए जो 15 मई तक 1600 टन बढ़ सकती है, लेकिन उसे फिलहाल सिर्फ 795 टन ऑक्सीजन ही मिल रह है। इसी तरह कर्नाटक ने कहा कि उसकी जरूरत तो 1200 टन की है लेकिन केंद्र सरकार ने उसे सिर्प 962 टन ऑक्सीजन ही दी है।
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केंद्र सरकार दावा करती है कि ऑक्सीजन की कमी नहीं है, लेकिन यह सच नहीं है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि झूठ बोलकर या सच्चाई से मुंह छिपाकर हम अपने लिए और परेशानियां खड़ी कर रहे हैं।
तीसरी बात विश्वसनीयता की है। पूरी दुनिया भारत के सरकारी आंकड़ों को लिख रही है और कह रही है कि इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। और दुनिया को इसके लिए दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि मीडिया जिस भी आधार पर रिपोर्ट कर रही है वह सच है। भारत की छवि को अच्छा खासा नुकसान हो चुका है, लेकिन इस समय वह बेमानी है। होगा क्या, कुछ और देश अपने यहां भारतीयों के आने पर रोक लगा देंगे। पहले ही कई देश ऐसा कर चुके हैं। जब यह लहर थमेगी और दूसरी लहर शुरु होगी, तो दुनिया खुद इन आंकड़ों को देखेगी और उनका विशलेषण करके किसी न किसी नतीजे पर पहुंचेगी। इससे भारतीयों को दूसरे देशों में वर्क वीजा मिलने में दिक्कतें आ सकती हैं, अलग-अलग देशों में रहने वाले परिवारों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
इसीलिए जरूरी है और हमारे अपने हित में है कि हम सक्रियता से मृत्यु के सही आंकड़ों को सामने रखें, और शायद इस महामारी को थामने की दिशा में यह पहला कदम हो सकता है।
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