विचार

आस-पड़ोस: चिंताजनक है पाकिस्तान के कश्मीर राग में चीनी सुरों का जुड़ना

पाक-चीन के साझा बयान को देखने की जरूरत है। चीन ने कश्मीर मुद्दे को विवादित बताते हुए इसका समाधान सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के आधार पर द्विपक्षीय समझौतों से होने की बात कही है। वहीं पाक ने चीन तिब्बत के मामले में चीन को समर्थन देते रहने की बात कही है।

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नब्बे के दशक से पाकिस्तानी जमाते-इस्लामी ने 5 फरवरी को ‘कश्मीर-दिवस’ मनाने की शुरुआत की थी जो 2004 के बाद से पाकिस्तान सरकार का कार्यक्रम बन गया है। पिछले साल जब न्यूयॉर्क राज्य की असेम्बली ने इसे ‘कश्मीर अमेरिकन डे’ के रूप में मान्यता दी, तब भारत में इस बात पर चर्चा शुरू हुई कि कश्मीर को लेकर दुनिया में किस प्रकार की छवि बन रही है। इस साल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान 5 फरवरी को चीन में थे। वह अपना ‘कश्मीर-दिवस वक्तव्य’ रिकॉर्ड कराकर गए थे जिसे पाकिस्तानी मीडिया ने सुनाया।

यह बात दीगर है कि दुनिया में कितने लोग उन्हें महत्व देते हैं, पर कश्मीर-प्रसंग को पाकिस्तान लगातार सुलगाए रखने की कोशिश करता है। इसमें अब चीन ने भी हाथ बंटाना शुरू कर दिया है। इमरान खान की ताजा चीन-यात्रा दोनों देशों के कश्मीर से जुड़े बयान और चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर परियोजना के दूसरे चरण के समझौते के कारण चर्चा में हैं। दोनों बातें आपस में जुड़ी हैं क्योंकि भारत सीपैक का विरोध इसलिए करता है क्योंकि यह परियोजना कश्मीर से होकर गुजरती है।

इमरान खान ने 6 फरवरी को बीजिंग में शी चिनफिंग से मुलाकात की और दोनों के साझा बयान में कहा गया कि हम कश्मीर में किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करते हैं क्योंकि इससे कश्मीर मुद्दा जटिल हो जाता है। उनका इशारा अगस्त, 2019 में अनुच्छेद 370 की वापसी को लेकर है। पिछले कुछ वर्षों से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जिस तरह से चीन ने खुद को कश्मीर समस्या के साथ जोड़ा है, वह चिंताजनक है। चीन की ओर से लगातार भड़काने वाली कोई-न-कोई कार्रवाई हो रही है।

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नए साल पर चीनी सेना का विशेष ध्वजारोहण किया गया जिसके बारे में दावा किया गया था कि वह गलवान घाटी में हुआ। इसके अलावा, पैंगोंग त्सो पर चीनी सेना ने एक पुल बनाना शुरू किया है जिसके बन जाने पर आवागमन में आसानी होगी। और अब चीन में हो रहे विंटर ओलिम्पिक के पहले ओलिम्पिक मशाल-वाहकों में सेना का एक कमांडर भी शामिल हुआ जिसके बारे में दावा किया गया कि वह गलवान की लड़ाई में शामिल था।

ओलिम्पिक-बहिष्कार

प्रतीक रूप में ही सही, चीन की कोशिश भारत पर लगातार हमले की है। इसे लेकर भारत ने आपत्ति जताई थी और ओलिम्पिक के राजनयिक बहिष्कार की घोषणा की जिससे अब तक भारत बच रहा था। पाकिस्तान लगातार चीन से अपनी निकटता साबित करने के मौके नहीं चूकता। ऐसा करते हुए उसकी अमेरिका से दूरी बढ़ रही है। दोनों के बीच तल्खी साफ नजर आती है। इसके बावजूद दोनों के रिश्ते पूरी तरह टूटे नहीं हैं। दूसरी तरफ, भारत के रिश्ते अमेरिका के साथ सुधरे जरूर हैं, पर उनकी बुनियाद में एक किस्म का संशय बरकरार है।

कश्मीर को लेकर संयुक्त-वक्तव्य की शब्दावली पर खासतौर से ध्यान देने की जरूरत है। इसमें चीन ने कहा कि कश्मीर का मुद्दा ऐतिहासिक रूप से विवादित है और इसका समाधान शांतिपूर्ण तरीके से यूएन चार्टर और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के आधार पर द्विपक्षीय समझौतों से होना चाहिए। कश्मीर में किसी भी तरह की एकतरफा कार्रवाई का हम विरोध करते हैं। इसमें पाकिस्तान ने कहा है कि हम एक-चीन नीति के कायल हैं और ताइवान, दक्षिण चीन सागर, हांगकांग, शिनजियांग और तिब्बत के मामले में चीन को समर्थन देते रहेंगे।

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वैश्विक मंचों पर विरोध

चीन के प्रकट-विरोध का मतलब है ‘एक वीटो- पावर’ का विरोध। सन 2008 के न्यूक्लियर डील के बाद अमेरिका ने भारत को चार महत्वपूर्ण ग्रुपों का सदस्य बनवाने का वादा किया था। ये हैं- न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप, मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम, 41 देशों का वासेनार अरेंजमेंट और चौथा ऑस्ट्रेलिया ग्रुप। ये चारों समूह सामरिक-तकनीकी विशेषज्ञता के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। इनमें एनएसजी की सदस्यता केवल चीन के अड़ंगे के कारण रुकी हुई है। 5 अगस्त, 2019 के फैसले के बाद से चीन ने दो बार इस मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाने की कोशिश की है। हालांकि उसे सफलता नहीं मिली, पर उसकी मीडिया कवरेज से पाकिस्तानी हुक्मरां को बल मिला है।

सुरक्षा परिषद में पचास के दशक में भारत पर जब भी हमले होते थे, तब रूस का सहारा मिलता था, पर हाल के वर्षों में रूसी दृष्टिकोण भी बदला है। बुनियादी बदलाव नहीं है, पर उतनी शिद्दत का समर्थन भी हमें हासिल नहीं है। भारत के सामने अपनी विदेश-नीति को स्वतंत्र और संतुलित बनाए रखने की जबर्दस्त चुनौती है। यूक्रेन के मामले में यह दुविधा साफ नजर आई है। संयुक्त राष्ट्र में भारत ने अमेरिका और रूस के मामले में काफी हद तक संतुलन बनाकर रखा है।

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रूसी दृष्टिकोण

चीन-पाकिस्तान वक्तव्य के साथ कश्मीर पर रूसी रुख को लेकर भी सवाल खड़ा हुआ है जिस पर रूस सरकार को सफाई देनी पड़ी। यह सफाई इसलिए देनी पड़ी क्योंकि गत 4 फरवरी को एक रूसी मीडिया- रेडफिश ने ट्विटर पर एक डॉक्यूमेंट्री जारी की जिसमें कहा गया था कि कश्मीर एक और फिलस्तीन बनने जा रहा है। ट्विटर ने इस संगठन की ‘रूस सरकार से जुड़े मीडिया’ के रूप में पहचान की है।

जाहिर है कि कश्मीर-मसले में रूस को भी लपेटा जाएगा। इमरान खान की यात्रा के पहले कहा जा रहा था कि बीजिंग में पाकिस्तान-चीन और रूस की त्रिपक्षीय वार्ता होगी जिसमें इमरान के साथ पुतिन और शी चिनफिंग भी शामिल होंगे। ऐसा नहीं हुआ बल्कि रूस सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि बीजिंग में पुतिन की केवल शी के साथ ही मुलाकात होगी, किसी दूसरे के साथ नहीं। अगले महीने इमरान खान रूस जाने वाले हैं। पाकिस्तान की लगातार कोशिश है कि पुतिन पाकिस्तान आएं। भारत के साथ रूस के रिश्तों को देखते हुए अभी तक ऐसा संभव लग नहीं रहा है, पर हवा का रुख धीरे-धीरे बदल रहा है।

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