सुना तो हमने भी था कि मोदी जी का डंका दुनिया भर में बज रहा है, पर हमें न तो वह डंका कहीं मिला, न उसे बजाने वाला दिखा, न उस दुनिया का पता चला, जिसमें वह बजता है। हां अगर मोदी जी उसे खुद बजाते हों तो अलग बात है। अपनी एप्रोच प्रधानमंत्री निवास तक है नहीं और न अपनी कोई इच्छा है। वैसे ऐसे डंके के बारे मे हमने सुना तक नहीं, जो बजता 7 रेसकोर्स रोड (लोककल्याण मार्ग) पर है और सुनाई देता सारी दुनिया में है!
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ऐसे लोग एक खतरनाक बीमारी के शिकार होते हैं, जो लग जाती है, तो ठीक नहीं होती। इसकी न कोई दवा है, न कोई वैक्सीन। ऐसा हर रोगी, प्रधानमंत्री नहीं बन जाता, क्योंकि प्रधानमंत्री एक ही आदमी बन सकता है, मगर वह अपने को लोकल मोदी मानते हुए ठलुआगीरी करता रहता है, ओ दीदी, ओ दीदी की सिसकारियां भरता रहता है। चूंकि वह खुद मोदी नहीं है, उसे जेड सुरक्षा नहीं मिली है, इसलिए वह जिधर जाता है, जूते खाता है। किसी को प्रतीकात्मक जूते खाने का शौक होता है, किसी को चमड़े के करारे जूते खाने का। ये ऐसा शौक है, जो कुछ लोगों में मरने के बाद भी नहीं जाता!
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वैसे मोदी भक्त भी अब सहमत होने लगे हैं कि उनका तो जन्म ही अपना डंका बजाने के लिए हुआ है। आजकल तो यह भी बताया जाने लगा है कि कागज का आविष्कार भी मूलतः मोदी जी के लिए हुआ था। इसे बनाने वाले जानते थे कि एक दिन मोदी नामक एक बंदा प्रधानमंत्री बनेगा और कागज का असली महत्व वही जानेगा। वह अखबारों के माध्यम से धुंआधार प्रचार करके यह बताएगा कि उसका डंका पूरी दुनिया में बज रहा है, जबकि दरअसल वह उसके कानों में बज रहा होगा। कहते तो यह भी हैं कि टीवी न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया का आविष्कार भी इसी कारण हुआ है। भक्त इस पर अधिक रोशनी डाल सकते हैं, अगर वह उनके पास बची हो तो!
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जहां तक अपना डंका खुद बजाने का प्रश्न है, यह काम तो छह-सात बरस के बच्चे भी जानते हैं। फेसबुक पर मैं भी रोज अपना डंका बजाता रहता हूं। कभी वह ठीक से बजता है, कभी गीले पटाखे की तरह फुस्स हो जाता है। हां मुझमें इतना होश अभी बाकी है कि फेसबुक आपको अपना डंका पूरी दुनिया में बजाने की सुविधा तो देता है, मगर कोई उसे न सुने या सुन कर अनसुना करे तो आप उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते, जबकि मोदी जी को लगता है कि वे किसी को कभी भी, कहीं भी बर्बाद कर सकते हैं। बर्बाद करना उनका एक प्रिय शगल है। वह फिर देश हो या समाज या उनका कोई विरोधी! आजकल तो वे भक्तों को भी बख्श नहीं रहे हैं। उनकी भक्ति की परीक्षा ले रहे हैं। इस प्रक्रिया में कोई मर जाए तो भी कोई वांदा नहीं। देश की आबादी सवा अरब है!
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वैसे मोदी जी को यह भ्रम पता नहीं क्यों है कि सब उनका डंका बजा रहे हैं, जबकि सच यह है कि कोई किसी का डंका नहीं बजाता, सब अपना-अपना डंका बजाते हैं। किसी को, किसी और का डंका सुनने की फुर्सत तक नहीं। अमित शाह को भी नहीं। वह अपना डंका बजाने के लिए मोदी जी को मुगालते में रखते हैं। जैसे कभी मोदी जी ने आडवाणी जी को रखा था। यह बात आडवाणी जी को जब तक समझ में आई, तब तक चिड़िया खेत चुग चुकी थी। अब मोदी जी की भी वही स्टेज है। हां मोदी जी इतने होशियार जरूर हैं कि कोई अपना डंका इतनी जोर से बजाता है कि उन्हें अपना डंका कान के एकदम पास ले जाकर भी सुनाई नहीं देता तो उसे उसके कद की स्मृति दिला देते हैं। उसका ईरानी होना स्मरण करा देते हैं। बता देते हैं कि याद रख कि तेरा डंका जब बजता होगा, तब बजता होगा, अब केवल मेरा डंका बजता है। तुझे अपना डंका बजाना है तो इतने धीरे बजा कि केवल तू सुन सके!
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वैसे मैं कहां इनके डंका-डंकी के चक्कर में फंस गया। बज रहा है तो सुनो। और नहीं बज रहा है तो आप अपनी जानो! वैसे भी ये जनम से गये बीते हैं। जब दुनिया मंगल ग्रह पर जा रही है तो ये पता नहीं किस बात के लिए अपना डंका बजा रहे हैं। दुनिया एक से एक अंतरिक्ष यान भेज रही है और ये टोयोटा को रथ बना कर गदगद हो रहे हैं। लोग दशहरे पर बच्चों को गत्ते की तलवार दिलाकर खुश करते हैं। ये हिन्दुओं को तलवार भांजना सिखाकर मगन हैं। जब औरतें आगे और आगे बढ़ती जा रही हैं, तब ये चौराहे पर गले में रेशमी रूमाल डाले, उनकी फटी जींस पर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं कि कुछ तो नजर आ जाए!
ऐसी दुनिया में रहने वाले लोग ही डंका-डंकी बजाते हैं। आज कौन इतने सारे शोर में किसी के डंका-डंकी को सुनता है। किसको परवाह है कि किसका डंका बज रहा है और किसकी घंटी बज चुकी है। आज के बच्चों से पूछो कि तुम जानते हो, क्या होता है डंका? तो वे जवाब देते हैं डंका? व्हाट डंका? उनसे कहो कि भई मोदी जी डंका बजाते हैं, जो सारी दुनिया सुनती है, तुमने नहीं सुना? वे पूछते हैं कौन मोदी? मैं सिर्फ सुपरमैन, आयरनमैन, स्पाइडरमैन और गॉडजिला को जानता हूं। ये मोदीमैन कोई इंडियन-फिंडियन होगा। आई डोंट केअर!
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