एक ओर जहां पुलिस और अभियोजन पक्ष श्रद्धा के साथी और हत्यारे को दोषी ठहराने के लिए सबूत इकट्ठा करने में जुटे हैं, आम लोग सदमे, हैरानी और गुस्से के मिलेजुले भाव में हैं। इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि इससे बचने का उपाय क्या था? क्या महिलाओं के खिलाफ इस तरह की हत्या और हिंसा को रोका जा सकता है? इस मामले में समाज और संस्थाएं क्या कर सकती हैं?
समय पर कार्रवाई: मैंने ऐसे तमाम सोशल मीडिया पोस्ट पढ़े हैं जिन पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा है। इन पोस्ट में कहा गया है कि श्रद्धा और आफताब में प्यार था, वे कई सालों से साथ रह रहे थे और एक दिन जब श्रद्धा ने शादी की बात की तो आफताब ने अचानक गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। मुझे यकीन है, यह ‘अचानक’ नहीं हुआ होगा। आम तौर पर बॉय फ्रेंड/पति औरत को लंबे समय तक प्रताड़ित करने के बाद ही उसकी हत्या करते हैं। औरत को घरेलू हिंसा के रूप में इसका संकेत काफी पहले से मिलने लगता है और समय पर होशियार हो जाने से औरत की जान बच सकती है। अफसोस की बात है कि घरेलू हिंसा को आम तौर पर ‘निजी मामला’ या फिर यह मानकर कि ‘प्रेमी जोड़ा’ झगड़ रहा है, ज्यादातर लोग इसमें नहीं पड़ते हैं और न ही इसकी रिपोर्ट करते हैं।
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गलत धारणाः आम धारणा यह है कि महिलाएं घरेलू हिंसा कानूनों का गलत इस्तेमाल करती हैं जबकि हकीकत यह है कि ज्यादातर महिलाएं इस तरह की ज्यादतियों की शिकायत ही नहीं करतीं। हिंसा के ज्यादातर मामलों में पुरुष बाद में अफसोस जताता है और महिला इस बात पर यकीन करना चाहती है कि उसके ऊपर ज्यादती करने वाला पुरुष दरअसल उससे प्यार करता है और वह फिर ऐसा नहीं करेगा। बड़ी संख्या ऐसे मामलों की होती है जिनमें पुरुष औरत को यह यकीन दिला देता है कि उसका खुद का बर्ताव ऐसा था जिसकी वजह से वह आपा खो बैठा।
ज्यादातर मामलों में महिलाएं शादी को बचाने के लिए सब सहने को तैयार हो जाती हैं। यहां तक कि जब वे नारीवादी संगठनों या पुलिस से संपर्क करती हैं तो उन्हें यह उम्मीद होती है कि ऐसा करके वे पति को हिंसक होने से रोक सकती हैं।
अलग-थलग न छोड़ें: अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक प्रेम/विवाह में महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा की स्थिति में मदद पाना और भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि अक्सर परिवार उनका साथ छोड़ देता है। अगर परिवार न भी छोड़े और केवल उस रिश्ते को स्वीकार न करे तो भी लड़की अपने साथी की शिकायत से हिचकती है क्योंकि ऐसा करने से उसके परिवारवालों का पूर्वाग्रह ही सही साबित होगा।
मैं ब्राह्मण परिवारों में प्रेम विवाह के मामलो में भी अक्सर ऐसा ही पाती हूं। जब एक ब्राह्मण युवती और ब्राह्मण युवक प्रेम विवाह करते हैं तब भी महिला यह बताने में झिझकती है कि उसका पति शराबी है या उसके वैवाहिक जीवन में गड़बड़ी है। तथ्य यह है कि महिला का परिवार प्रेम विवाह को स्वीकार नहीं करता। इसी तरह, एक छात्रा इस डर से मां-बाप को यौन उत्पीड़न या बलात्कार की शिकायत करने से कतराती है कि कहीं सुरक्षा के नाम पर उसकी शिक्षा ही रोक न दी जाए।
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साथी के हिंसक बर्ताव को न करें नजरअंदाजः: महिलाओं के अजनबियों की जगह प्रियजनों के हाथों घर के भीतर ही मारे जाने की आशंका अधिक होती है। जबकि पुरुषों के घरवालों के मुकाबले अजनबियों के हाथों मारे जाने की आशंका ज्यादा रहती है।
वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन से पता चला है कि विश्व स्तर पर हत्या की शिकार महिलाओं में से लगभग आधे को 'अंतरंग' भागीदारों ने मारा जबकि पुरुषों के ऐसे ही मारे जाने का प्रतिशत 6 से भी कम था। सितंबर, 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट की एक पीठ ने अपने ही घरों में महिलाओं की बड़ी संख्या में हत्याओं पर टिप्पणी की, ‘ऐसा लगता है कि भारत में विवाहित महिलाएं घरों की तुलना में सड़कों पर सुरक्षित हैं।’
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मदद के लिए क्या करें: कहने की जरूरत नहीं कि श्रद्धा को इंसाफ मिले और आफताब को उसके किए की सजा। लेकिन क्या हमारे लिए सोशल मीडिया पर आफताब के लिए नाराजगी, घृणा और गुस्सा व्यक्त करना ही काफी है? अगर हमें महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा से लड़ना है तो और भी बहुत कुछ करना होगाः
क) हमें घरेलू हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं के लिए बेहतर हेल्पलाइन व्यवस्था और अधिक अच्छे आश्रयस्थल बनाने होंगे। अभी, ज्यादातर हेल्पलाइन फंड में कटौती और आश्रयस्थल संसाधनों की कमी का सामना कर रहे हैं। पीडब्ल्यूजीडीवीए (घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा के लिए नागरिक कानून) के तहत सुरक्षा अधिकारी मामलों के बोझ से दबे हैं और उनके पास प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और संसाधन की कमी है। सबसे बड़ी बात, कई आश्रय गृहों को जेलों की तरह चलाया जाता है, न कि उन जगहों की तरह जहां महिलाएं सुरक्षित महसूस करें और अपना आत्मविश्वास हासिल कर सकें।
ख) हमें समझना होगा कि घरेलू दुर्व्यवहार और हिंसा की शिकार महिलाएं अक्सर पुलिस के हस्तक्षेप का विकल्प नहीं चुनेंगी, और यहां तक कि अगर वे घर छोड़ देती हैं, तब भी उनके पति के पास लौट जाने की संभावना होती है। यह तबतक चलता है जब तक वे अंततः अपमानित करने वाले साथी से पूरी तरह अलग होने का विकल्प नहीं चुनतीं।
एक आम नागरिक के रूप में यह हमारा दायित्व है कि घरेलू हिंसा के शिकार को केवल स्त्रीवादियों के भरोसे न छोड़ें बल्कि उनकी पीड़ा को समझें और उनकी इच्छा के मुताबिक मदद करें। उन्हें तय करने दें कि उन्हें कब, कितनी और कैसी मदद की जरूरत है। उनके निर्णय का सम्मान करके आप उनके भरोसा जीत सकेंगे/सकेंगी और तभी मुसीबत में होने पर वे आपसे मदद मांगेंगी। इसी तरह उनकी जान बचाने में आपकी भूमिका हो सकती है।
ग) अंतर-जाति, अंतर-धर्म, समान-लिंग, लिव-इन, समान-गोत्र और सभी प्रकार के प्रेम विवाहों का समर्थन करना होगा।
घ) हमें ऐसे मीडिया/सोशल मीडिया अभियानों से अलग हो जाने की जरूरत है जो किसी एक मामले को अलग-थलग देखते हुए इसे किसी एक व्यक्ति द्वारा किया गया ‘अमानवीय’ कृत्य बताता हो। इसके बजाय हमें लिंग आधारित घरेलू हिंसा के व्यापक पैटर्न को देखना चाहिए।
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लव जेहाद के सांप्रदायिक दलदल से लड़ें: जब हिन्दुत्ववादी समूह किसी मुस्लिम द्वारा एक हिन्दू महिला के खिलाफ हिंसा का मामला उठाते हैं और इसे ‘लव जेहाद’ के सबूत के तौर पर पेश करते हैं, यानी मुस्लिम पुरुष प्यार के नाम पर हिन्दू महिलाओं को ‘फांसते’ हैं तो वे लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ चल रहे नारीवादी संघर्षों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
क) सबसे पहले, इसे एक पैटर्न के तौर पर देखना पूरी तरह से गलत है। अगर ऐसे आंकड़े हों जो ये दिखाएं कि हिन्दू महिलाओं के साथ मुस्लिम पुरुष के हाथों दुर्व्यवहार/हत्या के मामले आनुपातिक तौर पर काफी अधिक है, तभी इन घटनाओं को एक पैटर्न की तरह देखा जा सकता है और उस स्थिति में भी ‘लव जेहाद’ की बात साबित नहीं होती। लेकिन ऐसी घटनाएं आनुपातिक तौर पर बहुत ही कम हैं।
ज्यादातर हिन्दुओं के दिमाग में यह बात भरकर कि मुस्लिम पुरुषों के हाथों केवल हिन्दू औरतों को ही यौन/घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है, ये कथित हिन्दुत्ववादी ताकतें घरेलू हिंसा/यौन हिंसा की शिकार हिन्दू महिलाओं की अपेक्षाकृत कहीं बड़ी आबादी का नुकसान कर रही हैं। समस्या को ‘हिन्दू महिला के खिलाफ मुस्लिम हिंसा’ के चश्मे से दिखाने का दुष्प्रचार उन वास्तविक समस्याओं को स्वीकार करने और उन्हें सुलझाने के प्रयास से लोगों को रोकता है जिनकी ओर श्रद्धा हत्याकांड इशारा कर रहा है।
लेखक कविता कृष्णन ऐक्टिविस्ट हैं।
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