वैसे तो विश्व में अमन-शांति की जरूरत हमेशा से रही है, लेकिन नये साल का आरंभ होते-होते विश्व में स्थितियां कुछ ऐसी बन गई हैं कि अब तो अमन-शांति के लिए पहले की अपेक्षा कहीं अधिक प्रतिबद्धता के बिना दुनिया का टिक पाना ही बहुत कठिन हो जाएगा। तरह-तरह के नये-पुराने तनाव दूर हों तभी बुनियादी समस्याओं के समाधान के लिए अनुकूल माहौल मिलेगा।
इसकी पहली वजह यह है कि धरती पर जिस तरह की अति गंभीर और अस्तित्व मात्र को खतरे में डालने वाली पर्यावरणीय समस्याएं उमड़ रही हैं, उन्हें सुलझाने के लिए अमन-शांति का माहौल और उस पर आधारित अंतरराष्ट्रीय सहयोग की निरंतरता चाहिए। इसके बिना इन गंभीर समस्याओं को समय पर सुलझाना संभव ही नहीं है।
जहां जरूरत बढ़ते अंतरराष्ट्रीय सहयोग की है, वहां पर वास्तविक स्थिति यह है कि विश्व में लगातार नये और गंभीर तनाव उभरते जा रहे हैं। यमन का युद्ध हो या ईरान पर लगे प्रतिबंध, चीन-अमेरिका के व्यापार संबंधी तनाव हों या महाशक्तियों की विनाशक हथियारों संबंधी होड़ हो, अफगानिस्तान का पुराना समर-क्षेत्र हो या यूक्रेन का- ऐसे कितने ही नये और पुराने तनाव हाल के समय में अधिक गंभीर रूप लेते हुए नजर आए हैं।
तीसरा बड़ा मुद्दा यह है कि हथियार निरंतर अधिक विनाशक होते जा रहे हैं। अधिक विनाशक हथियारों की आतंकवादियों के हाथों में पंहुचने की संभावना बढ़ रही है। रोबोट या एआई हथियारों के आगमन से एक नई तरह की हथियारों की दौड़ के आंरभिक दौर में विश्व इस समय है। और यह नई हथियारों की दौड़ बहुत ही खतरनाक सिद्ध हो सकती है।
इन तीनों कारणों से विश्व में अमन-शांति की स्थापना अब पहले से भी कहीं अधिक जरूरी हो गई है। चुनौती केवल कुछ तनावों के तत्कालीन समाधानों का किसी तरह जुगाड़ कर लेने की नहीं है, बल्कि अमन और शांति के हालात अधिक टिकाऊ तौर पर प्राप्त करने की है। इसके लिए यह जरूरी है कि अमन-शांति का आधार अधिक व्यापक हो और इसकी बुनियाद अधिक मजबूत हो।
यह तो तभी संभव है जब दुनिया में, सभी देशों में बड़ी संख्या में जनसाधारण अमन-शांति के प्रयासों से गहरी प्रतिबद्धता से जुड़ें। कुछ स्थानों में तो अमन-शांति पहले ही बड़ा मुद्दा है। वहां के लोग अमन-शांति के विश्वव्यापी प्रयासों से अधिक शीघ्रता से जुड़ सकते हैं। पर दुनिया के एक बड़े हिस्से की स्थिति अभी इसके अनुकूल नहीं है। विशेष तौर पर विश्व-शांति के जो बड़े मुद्दे हैं उनसे अधिकांश स्थानों के जनसाधारण अभी नहीं जुड़ सके हैं। अगर किसी गांव या बस्ती में जनसाधारण से आप पूछें कि क्या विश्व में परमाणु हथियारों पर रोक लगाने के लिए वे आगे आएंगे तो पूरी संभावना है वे यही कहेंगे कि यह तो दुनिया के बड़े नेताओं का काम है। इसमें भला हम साधारण लोग क्या कर सकते हैं।
इस तरह दुनिया में जीवन के अस्तित्व मात्र को खतरे में डालने वाले सबसे बड़े अनेक मुद्दों से अभी जनसाधारण का अलगाव है। सवाल यह है कि ऐसी ऐसी महत्त्वपूर्ण समस्याओं के समाधान से जनसाधारण का जुड़ाव कैसे स्थापित हो?
अगर हम अमन-शांति को केवल एक विश्व के मुद्दे के रूप में न देखें बल्कि जीवन जीने के एक तरीके के रूप में देखें तो यह जुड़ाव निश्चय ही संभव है। दैनिक जीवन में दुख-दर्द का सबसे बड़ा कारण हिंसा ही है (जिसमें दूसरों के अधिकार छीनने की हिंसा भी है)। घर-परिवार हो या पड़ोस, स्कूल-कालेज हो या कार्यस्थल, सड़क हो या संप्रदाय- इन विभिन्न स्तरों पर हिंसा आज मनुष्य को गहरा दुख दे रही है। इसलिए अगर हर स्तर पर हिंसा को दूर करने की एक बहुत बड़ी मुहिम बहुत सुनियोजित ढंग से समझदारी के साथ चले तो इससे एक ओर बहुत से लोगों का दुख-दर्द कम होगा, तो दूसरी ओर अमन-शांति के व्यापक आंदोलन से बड़ी संख्या में लोग जुड़ेंगे।
जब लोगों का दुख-दर्द इस मुहिम के प्रयासों की वजह से कम होगा, तो वे निश्चित तौर पर ही इससे अधिक निरंतरता से जुड़ना चाहेंगे और इसमें अपना योगदान भी देना चाहेंगे। जन आधार बढ़ने की इस प्रक्रिया में सुनियोजित ढंग से अमन-शांति के व्यापक मुद्दों को भी जनसाधारण के बीच ले जाना चाहिए। यह मुद्दे हैं- महाविनाशक हथियारों का भंडारण और उनके वास्तविक उपयोग की बढ़ती संभावना, हथियारों की दौड़ के विभिन्न दुष्परिणाम, युद्धों और गृह-युद्धों को समाप्त करने की संभावनाएं। इन मुद्दों पर जन-जागृति करने से अमन-शान्ति के इन व्यापक मुद्दों पर भी आगे आने के लिए विभिन्न देशों के लोग तैयार होंगे।
इस तरह जब विश्व के करोड़ों लोग अमन-शांति के लिए निरंतरता से कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध होंगे, तो विभिन्न देशों की सरकारों और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता भी बढ़ती जाएगी। इस तरह दोनों स्तरों पर बदलाव आएगा। दैनिक जीवन में हिंसा कम होने से लोगों का दुख-दर्द कम होगा और वे बढ़ती संख्या में अमन-शांति और अहिंसा के प्रयासों से जुड़ेंगे। दूसरी ओर सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों पर निरंतर यह दबाव बनेगा कि वे अमन-शांति के बड़े निर्णय लेने में और देर न करें। पहले ही बहुत देर हो चुकी है।
अगर हथियारों की दौड़ में, युद्धों में और युद्धों की तैयारियों में कमी आएगी तो खतरनाक हथियारों का उत्पादन और भंडारण भी कम होगा। इस तरह पर्यावरण क्षति और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी बहुत कमी होगी। इस राह से जो टिकाऊ और व्यापक आधार की अमन-शांति स्थापित होगी, उस हालत में अन्य बड़ी समस्याओं को सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सक्रियता को तेजी से बढ़ाने के अवसर भी उपलब्ध होंगे।
जहां जलवायु बदलाव की समस्या हो या जैव विविधता के तेज ह्रास की, चाहे समुद्रों के बिगड़ते पर्यावरण का संकट हो या जल-समस्या और इससे जुड़े तनावों का संकट, इनके समाधान की एक तरह से पहली शर्त यह है कि निरंतरता से अमन-शांति हो और इस तरह वह हालात प्राप्त हों जिनमें विभिन्न देश, अंतरराष्ट्रीय संस्थान, जन-संगठन और विशेषज्ञ तथा वैज्ञानिक इन समस्याओं के समाधान तक आपसी सहयोग से पहुंच सकें। इसलिए अमन-शांति अपने लिए भी जरूरी है और बड़ी समस्याओं के समाधान के लिए भी जरूरी है।
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