समस्याओं की माला जपते रहना और किसी भी समस्या का ठोस समाधान निकालने का प्रयत्न नहीं करना, वर्त्तमान की केंद्र सरकार की विशेषता है, और यह विशेषता समय-समय पर उजागर होती रहती है। काला धन निकालने के नाम पर नोटबंदी कर दी, कालाधन तो आया नहीं अलबत्ता देश की अर्थव्यवस्था रसातल में चली गयी। जब इससे उबरने का रास्ता नजर नहीं आया तो आनन-फानन में जीएसटी लागू कर दिया गया। हालत यह है कि सत्ता पक्ष को छोड़कर किसी को भी आज तक इसके फायदे नजर नहीं आये। कुछ इसी तरह के कदम जनस्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उठाये जा रहे हैं। 15 अगस्त को लालकिले से प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य अभियान के अंतर्गत आयुष्मान भारत नॅशनल हेल्थ प्रोटेकशन मिशन की घोषणा की, जिसे लोग मोदीकेयर का नाम भी दे रहे हैं। यह 25 सितंबर से शुरू होगा, और इसके जरिये बेहद गरीब परिवारों को 5 लाख रूपए का बीमा मिलेगा।
यह योजना भी अभी तक पूरी तैयार नहीं है और बहुत सारी बातें स्पष्ट नहीं हैं। अब, जरा सोचिये सरकार गरीबों को स्वास्थ्य बीमा देने की तैयारी तो कर रही है, पर लोगों को बीमारियों से बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर रही है। इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि हमारे देश में लोगों के बीमार पड़ने का मुख्य कारण क्या है? तमाम देसी और विदेशी रिपोर्ट बताती रही हैं कि हमारे देश की मुख्य समस्या कुपोषण, भूख और प्रदूषण है, इन्हीं से सबसे अधिक संख्या में लोग बीमार पड़ते हैं और मरते भी हैं। इन समस्याओं पर लगाम लगाए बिना जनस्वास्थ्य की बात करना बेमानी है।
भूख और कुपोषण लोगों को कमजोर कर देता है, जिससे ऐसे लोग जल्दी ही बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। देश में भूख का जाल किस कदर फैला है, इसका उदाहरण ग्लोबल हंगर इंडेक्स में नजर आता है। 2017 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में कुल 119 देशों में भारत का स्थान 100वां था। वाशिंगटन स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 20 करोड़ व्यक्ति कुपोषण के शिकार हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में यह समस्या बहुत गंभीर है। लगभग 20 प्रतिशत ऐसे बच्चे अपनी लंबाई के अनुसार कम वजन के हैं, 33 प्रतिशत बच्चों की लम्बाई उम्र के हिसाब से कम है और 38.4 प्रतिशत बच्चों का पूर्ण विकास नहीं हो पाया है। संयुक्त राष्ट की एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल आबादी में से 23.4 प्रतिशत भूखी है। इसी रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल महिलाओं में से 51 प्रतिशत में खून की कमी है।
देश में प्रदूषण की समस्या भी बहुत बड़ी आबादी को बीमार बना रही है और मार भी रही है। लांसेट कमीशन की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में पूरी दुनिया में प्रदूषण के कारण जितने लोग मरे, उनमें से 28 प्रतिशत भारतीय थे और इनकी संख्या 28 लाख से अधिक थी। बाहर के वायु प्रदूषण से 10 लाख, घरों के अंदर के प्रदूषण से 10 लाख, जल प्रदूषण से 5 लाख और स्वच्छता के अभाव में 3.2 लाख लोगों की मृत्यु हुई।
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सरकार जिन गरीब लोगों को स्वास्थ्य बीमा देने का दावा कर रही है, वे गांव में ही रहते हैं, गांव में ही कुपोषण और प्रदूषण का कहर भी है। हेल्थ इफेक्ट इंस्टिट्यूट और आईआईटी, बॉम्बे द्वारा किये गए एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार देश में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली कुल मौतों में से 75 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं।
सरकार भले ही अपनी योजना को दुनिया की सबसे बड़ी योजना बताती हो, पर चीन में इससे भी बड़ी और प्रभावी जनस्वास्थ्य बीमा योजना चल रही है। चीन में भी कुपोषण और प्रदूषण की समस्या थी, पर उसने इसे मिटाने के लिए जुमलों का नहीं, बल्कि काम का सहारा लिया। वर्त्तमान में चीन के अधिकतर क्षेत्रों में वायु प्रदूषण में 40 प्रतिशत से अधिक की कमी आ चुकी है। चीन की कुल आबादी में से कुपोषण की शिकार आबादी 10 प्रतिशत से भी कम है।
प्रदूषण और कुपोषण में कमी लाकर स्वास्थ्य सेवाओं को अनेक तरीके से बेहतर बनाया जा सकता है। लोग कम बीमार पड़ेंगे तो स्वास्थ्य सेवाएं भी अच्छा काम कर सकेंगीं। पर, यह फैसला तो सरकार को ही करना है कि लोगों को बीमार बनाकर बीमा देना है, या ऐसे कदम उठाने हैं जिससे लोग बीमार ही नहीं हों।
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