राजनीतिक पर्यवेक्षकों को नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति में कुछ चालाकियां साफ-साफ दिख रही हैं। पहले तो यूक्रेन के ऊपर रूसी हमले के मामले में और अब गाजा में इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध के मामले में। भारत की ‘कूटनीतिक बाजीगरी’ ने सवाल और चिंताएं दोनों खड़ी कर दी हैं कि आखिर भारत समकालीन भू-राजनीतिक चुनौतियों का किस तरह सामना कर रहा है!
लोगों ने इस बात पर गौर किया है कि 27 अक्टूबर को जब संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में गाजा में ‘तत्काल, स्थायी संघर्ष विराम’ की अपील के साथ प्रस्ताव रखा गया तो भारत ने किस तरह मतदान से अपने आपको अलग कर लिया। गाजा में इजरायल के जवाबी हवाई और जमीनी हमले में इस इलाके का काफी हिस्सा मलबे का ढेर बनकर रह गया है और मुंबई (438 वर्ग किलोमीटर) से भी छोटे इस 365 वर्ग किलोमीटर वाले फिलिस्तीनी एन्क्लेव में हालात सामूहिक नरसंहार वाले दिख रहे हैं। यहां तक कि इजरायल और अमेरिका के यूरोपीय सहयोगियों- फ्रांस, स्पेन, बेल्जियम, आयरलैंड, पुर्तगाल, लक्जमबर्ग, माल्टा और स्लोवेनिया- ने उन 14 देशों से नाता तोड़ लिया जिन्होंने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया और उन 120 देशों के साथ चले गए जिन्होंने इसका समर्थन किया था।
भारत उन 45 देशों में शामिल था जो इस गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव से दूर रहे।
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भारत सरकार के रुख को प्रधानमंत्री मोदी के जून में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दिए गए संदेश के स्पष्ट विरोधाभास के रूप में देखा जा रहा है कि ‘आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए।’ मोदी ने जून में अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए भी जोर देकर कहा था, ‘वैश्विक व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के सम्मान, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर आधारित है।’
इस रुख के बावजूद भारत ने यूक्रेन पर अकारण युद्ध के लिए रूस की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर मतदान से भी परहेज किया, जिसके कारण अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सार्वजनिक रूप से भारत की प्रतिक्रिया को ‘अस्थिर’ बताया। नई दिल्ली ने रूस के खिलाफ वैश्विक गठबंधन में भाग लेने से परहेज किया है क्योंकि उसने रूस और अमेरिका- दोनों के साथ रणनीतिक साझेदारी कर रखी है, जो क्रमशः हथियारों के पहले और दूसरे सबसे बड़े विक्रेता हैं जबकि भारत दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है।
फरवरी, 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले रूस से भारत का ईंधन आयात 2 फीसदी से भी कम था लेकिन आज बढ़कर 36 फीसदी तक हो गया है। रूस अब भारत का शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता है। बाजार से संबंधित अहम जानकारी उपलब्ध कराने वाली लंदन स्थित ‘वोर्टेक्सा’ ने बताया है कि रूस ने सितंबर में भारत को प्रति दिन 15.8 लाख बैरल तेल की आपूर्ति की। इसका सीधा सा मतलब है कि इस तरह तेल की बिक्री से मिले पैसे से यूक्रेन के खिलाफ युद्ध को चलाने में रूस को मदद मिली।
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भारत की इजरायल के साथ भी रणनीतिक साझेदारी है और वह भारत का एक महत्वपूर्ण हथियार आपूर्तिकर्ता बन गया है। भारत में विपक्षी दल मानते थे कि 7 अक्टूबर का हमास हमला किसी आतंकवादी कृत्य से कम नहीं था, जिसमें 1,400 से अधिक इजरायली नागरिक मारे गए और 238 इजरायलियों को बंधक बना लिया गया। लेकिन जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र में मतदान से खुद को अलग रखा तो उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि ऐसा करके भारत ने व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ धोखा किया है। प्रस्ताव के माध्यम से दुनिया के ज्यादातर देश चाह रहे थे कि युद्धविराम सुनिश्चित हो, तनाव घटे जिससे गाजा में चल रहा खूनी संघर्ष रुके और एक बड़ी मानवीय तबाही को रोका जा सके।
इजरायली प्रधानमंत्री का नरेंद्र मोदी के साथ गहरा व्यक्तिगत संबंध है, और वह ‘इस मुश्किल समय में इजरायल के साथ एकजुटता’ जताने वाले दुनिया के पहले नेताओं में से एक थे। हमास के हमले के कुछ ही घंटों के भीतर एक्स (पहले ट्विटर) पर मोदी ने पोस्ट किया था: ‘इजरायल में आतंकवादी हमलों की खबर से गहरा झटका लगा है। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं बेकसूर पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इजरायल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।’
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जब नेतन्याहू ने संघर्ष के तीन दिन बाद मोदी को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देने और घटनाक्रम से अवगत कराने के लिए फोन किया, तो मोदी ने फिर से पोस्ट किया: ‘मैं प्रधानमंत्री नेतन्याहू को उनके फोन कॉल और मौजूदा स्थिति पर अपडेट करने के लिए धन्यवाद देता हूं। भारत के लोग इस मुश्किल घड़ी में इजरायल के साथ मजबूती से खड़े हैं। भारत आतंकवाद के सभी रूपों की कड़ी और स्पष्ट रूप से निंदा करता है।’
जुलाई 2017 में मोदी इजरायल का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने और जनवरी, 2018 में नेतन्याहू भारत के दौरे पर आए। मोदी जब इजरायल गए थे, तब वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी प्राधिकरण की राजधानी के तौर पर माने जाने वाले रामल्लाह में न रुककर उस अघोषित प्रोटोकॉल को तोड़ा था जिसके तहत इजरायल जाने वाले ज्यादातर विदेशी नेताओं के लिए रामल्लाह एक पारंपरिक पड़ाव हुआ करता है।
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इजरायल और रूस के युद्धों में काफी समानताएं हैं जहां भारत बेंजामिन नेतन्याहू और पुतिन का पक्ष लेता दिख रहा है। जिस तरह यूक्रेन पर हमला बोलने के लिए दुनिया भर में निंदा हुई, वैसे ही, गाजा पर इजरायली हमले की भी कड़ी निंदा हो रही है। युद्ध आम लोगों के लिए विनाशकारी होगा। 23 लाख गाजावासियों को उनकी मातृभूमि से विस्थापित कर देगा और शरण चाहने वालों की संख्या में नए सिरे से इजाफा होगा। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (ओएचसीएचआर) के कार्यालय के मुताबिक, रूस के ताबड़तोड़ सशस्त्र हमले में 10 सितंबर तक यूक्रेन के 9,614 लोग मारे गए और 17,535 अन्य घायल हो गए। मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (ओसीएचए) का अनुमान है कि युद्ध के कारण 37 लाख लोग देश में ही अपनी जगहों से विस्थापित हुए और 62 लाख यूक्रेनियनों को विदेशों में शरण लेनी पड़ी।
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26 अक्तूबर को नौ अरब देशों- बहरीन, मिस्र, जॉर्डन, कुवैत, मोरक्को, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने एक संयुक्त बयान जारी कर गाजा में नागरिकों को निशाना बनाने और अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन की निंदा की। उनके विदेश मंत्रियों ने बताया कि 7 अक्तूबर को हमास आतंकवादियों द्वारा किए गए विनाशकारी हमले के बाद इजरायल का आत्मरक्षा का अधिकार फिलिस्तीनियों के अधिकारों को लील नहीं सकता। उन्होंने गाजा में जबरन विस्थापन और सामूहिक दंड की भी निंदा की, इस बात पर जोर दिया कि ‘फिलिस्तीनी-इजरायल संघर्ष का राजनीतिक समाधान न होने की वजह से दोनों ही इलाकों के लोगों को बार-बार हिंसा और तकलीफ का सामना करना पड़ा है।’
यूक्रेन के साथ युद्ध में पुतिन ने परमाणु आयाम भी जोड़ दिया। रूस ने परमाणु हथियारों के जखीरे को खत्म करने के लिए 2010 में हुई न्यू स्ट्रैटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी (न्यू स्टार्ट) को निलंबित कर दिया। पुतिन ने 5 अक्तूबर को यह कहकर परमाणु बयानबाजी को और तेज कर दिया कि रूस ने परमाणु-संचालित, परमाणु-सक्षम ‘बुरेवेस्टनिक’ रणनीतिक क्रूज मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है और इस तरह तीन दशकों से भी अधिक समय में पहली बार उनके देश द्वारा परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने का संकेत दे दिया गया। उन्होंने यह भी बताया कि रूस अपनी परमाणु-सक्षम ‘सरमाट’ अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल के उत्पादन के करीब है। यह मिसाइल कम-से-कम 10 परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। पुतिन ने कहा, ‘रूस पर हमले की सूरत में किसी के भी बचने की संभावना नहीं है।’
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यूएनजीए के प्रस्ताव को खारिज करते हुए नेतन्याहू ने भी लड़ाई को विराम लगाने से इनकार करते हुए कहा, ‘यह युद्ध का समय है।’ उन्होंने टेलीविजन पर यह भी कहा, ‘हमास दाएश (इस्लामिक स्टेट समूह) है और हम उन्हें कुचलकर खत्म कर देंगे जैसे दुनिया ने दाएश को खत्म कर दिया।’ इजराइल का तर्क है कि युद्धविराम से हमास को अपने नुकसान की भरपाई करने और फिर से युद्ध के लिए तैयार होने का समय मिलेगा और हमास को नेस्तनाबूद करके ही वह इस समूह को इजरायल पर फिर से हमला करने से रोक सकता है।
किसी भी कार्रवाई पर आम सहमति तक पहुंचने में चार मौकों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की विफलता के बाद यूएनजीए के प्रस्ताव ने बढ़ती हिंसा पर अपनी पहली औपचारिक प्रतिक्रिया व्यक्त की। प्रस्ताव में एन्क्लेव के अंदर फंसे नागरिकों के लिए जीवनरक्षक आपूर्ति और सेवाओं की ‘निरंतर, पर्याप्त और निर्बाध’ उपलब्धता की भी मांग की गई क्योंकि इजरायल ने जमीनी अभियानों का विस्तार कर दिया है और उसने बमबारी अभियान को तेज कर रखा है।
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संयुक्त राष्ट्र में मतदान के दौरान कई देशों ने इस युद्ध के कारण पहले ही हुई भारी तबाही और भोजन, पानी और ईंधन की महत्वपूर्ण सहायता आपूर्ति में बाधा के बारे में चिंता व्यक्त की। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इजरायल से अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत अपने दायित्वों का पालन करने का आग्रह किया लेकिन इजरायल और उसके समर्थकों ने उन अपीलों को अनसुना कर दिया।
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 7 अक्तूबर से गाजा पट्टी में इजरायल के सैन्य हमले में खबर लिखे जाने तक 3,457 बच्चे मारे गए हैं जो कि कुल मारे गए फिलिस्तीनियों (8,306) का 40 फीसद से ज्यादा ही है। जबकि मारे जाने वालों के ये आंकड़ें केवल उन लोगों के हैं जिन्हें अस्पतालों में लाया गया। अनुमान है कि अब भी 1,050 फिलिस्तीनी बच्चे तबाह हुई इमारतों के मलबे में दबे हैं। लंदन स्थित एनजीओ ‘सेव द चिल्ड्रेन’ का कहना है कि इजरायली हमले में मारे गए फिलिस्तीनी बच्चों की संख्या 2019 के बाद से दुनिया के संघर्ष क्षेत्रों में मारे जाने वाले बच्चों की वार्षिक संख्या से अधिक है।
इस तबाही पर भारत की चुप्पी बहरा कर देने वाली है। भारत की मानवीय प्रतिक्रिया इसके रणनीतिक हितों में दबकर रह गई है। इसे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में एक पतली रस्सी पर चलने की बाजीगरी करनी है जो अमेरिका-गठबंधन वाले ‘लोकतंत्रों’ और चीन और रूस के नेतृत्व वाली ‘सत्तावादी धुरी’ को अलग करती है।
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