विचार

इजरायल-ईरान तनावः भारत के पड़ोस में धधक रहा है ज्वालामुखी, निकट भविष्य में शांति दूर की कौड़ी

भ्रष्टाचार के लिए अदालती मामलों के कारण नेतनयाहू पर दबाव बना हुआ है और ऐसे हालात में युद्धकालीन आपातकाल का बना रहना उनके लिए फायदेमंद है। यह अस्थायी रूप से उनके ऊपर लटकी हुई डैमोकल्स की तलवार को हटा देता है।

इजरायल-ईरान तनावः भारत के पड़ोस में धधक रहा है ज्वालामुखी
इजरायल-ईरान तनावः भारत के पड़ोस में धधक रहा है ज्वालामुखी फोटोः सोशल मीडिया

पश्चिम एशिया तलवार की धार पर है। ईरान समर्थित उग्रवादी संगठन हिजबुल्लाह के खिलाफ अभियान में इजरायली टैंकों के लेबनान में घुसने और पलटवार करते हुए ईरान की ओर से इजरायल पर मिसाइलों की बौछार करने से पूरा इलाका ऐसी खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है जहां युद्ध कभी भी भयावह शक्ल ले सकता है।

इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने चेतावनी दी है कि ईरान को अपने किए का खामियाजा भुगतना पड़ेगा, तो ईरान के राष्ट्रपति ने भी दो टूक कहा है कि तेल अबीब के लिए यही अच्छा होगा कि वह ‘ईरान के साथ संघर्ष में न पड़े।’ अमेरिका और कुछ हद तक ब्रिटेन ने भूमध्यसागर में तैनात अपने युद्धक पोतों के जरिये ईरान की मिसाइलों को इंटरसेप्ट करने में इजरायल की मदद की। इजरायली सरकार और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दावा किया कि इससे पहले कि ईरान की मिसाइलें किसी निशाने से टकरातीं, उन्हें रोक दिया गया। हालांकि हमले के वीडियो बताते हैं कि इनमें से कई मिसाइलें इजरायल की जमीन से टकराईं और कुछ सैन्य ठिकानों पर भी गिरीं।

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इजरायल के ‘आत्मरक्षा के अधिकार’ के नाम पर अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय तथा उत्तरी अमेरिकी देशों की तेल अबीब के पक्ष में संभावित गुटबाजी बड़े खतरे का संकेत देती है। वहीं, रूस और चीन की ईरान के साथ हमदर्दी तो है लेकिन उनके सैन्य आधार पर संघर्ष में शामिल होने की संभावना नहीं दिखती। बाइडेन बदला लेने के इजरायल के रुख का समर्थन करते हैं लेकिन उन्होंने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि इस तरह की इजरायली प्रतिक्रिया में अमेरिका भी शामिल होगा या नहीं। उधर, चीन में क्षमता है कि वह ईरान के लिए हथियारों, विशेषज्ञता और तकनीक की सप्लाई लाइन शुरू कर संघर्ष को हवा दे दे।

जिम्मेदार अंतरराष्ट्रीय समुदाय ईरान के इजरायल के खिलाफ हिजबुल्लाह और हमास के समर्थन में खुलकर आने से बेहद चिंतित है। यह संघर्ष क्षेत्र भारत के बेहद करीब है और किसी भी सूरत में यह भारतीयों के लिए अच्छी बात नहीं। ‘चैथम हाउस’ के नाम से जाने जाने वाले रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स की निदेशक ब्रॉनवेन मैडॉक्स ने इस बात पर हैरानी जताई है कि ऐसी स्थिति में जबकि फिलस्तीनी अथॉरिटी प्रशासित गाजा में हमास के खिलाफ अभी युद्ध चल ही रहा है और इसी अथॉरिटी के अधिकार क्षेत्र में पड़ने वाले पश्चिमी तट में भी हिंसा बढ़ती जा रही है, इजरायल ने हिजबुल्लाह के खिलाफ एक और मोर्चा खोलने का फैसला क्यों किया?

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मैडॉक्स का अंदाजा है कि इजरायल ने ऐसा अपने दुश्मनों को कमजोर करने के लिए किया होगा ताकि भविष्य में पेश आने वाले बड़े खतरों को जड़ से खत्म किया जा सके। उनके मुताबिक यह शांति लाने की रणनीति तो नहीं हो सकती क्योंकि हिजबुल्लाह समर्पण करने से रहा। इजरायल के लिए विरोध उसकी नसों में दौड़ता है क्योंकि इंग्लैंड और अमेरिका के समर्थन के कारण फिलस्तीन को काटकर इजरायल का निर्माण किया गया था।

बहरहाल, नेतन्याहू की लोकप्रियता में उछाल आया है। बेशक हमास द्वारा पकड़े गए बंधकों को वापस लाने में नाकामयाब रहने के कारण इजरायलियों ने उन्हें आड़े हाथों लिया लेकिन हिजबुल्लाह के खिलाफ उनके सख्त कदमों की सराहना की जा रही है। हालांकि इजरायल में टिप्पणीकार बताते हैं कि कथित भ्रष्टाचार के लिए अदालती मामलों के कारण उन पर दबाव बना हुआ है और ऐसे हालात में युद्धकालीन आपातकाल का बना रहना उनके लिए फायदेमंद है। यह अस्थायी रूप से उनके ऊपर लटकी हुई डैमोकल्स की तलवार को हटा देता है।

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मैडॉक्स ने कहा, ‘क्षेत्रीय युद्ध से बचने के लिए काम कर रहे देशों के लिए चिंता की बात यह है कि इजरायली सरकार लेबनान के हमलों का इस्तेमाल ईरान की परमाणु सुविधाओं पर भविष्य में हमला करने के विकल्प के रूप में कर सकती है।’ इजरायल की नजर ईरान की तेल रिफाइनरियों पर भी हो सकती है। कुल मिलाकर, भयावह आशंकाएं मंडरा रही हैं।

इजरायल को वाशिंगटन ने पाला-पोसा है। उसने तेल अबीब को पैसे, अत्याधुनिक तकनीक और बेहद विनाशकारी और परिष्कृत सैन्य हार्डवेयर से लैस किया है। यह व्यावहारिक रूप से अमेरिका का 51वां राज्य है। जब भारत ने एक दशक पहले चीन द्वारा हासिल परमाणु ताकत का मुकाबला करने के लिए 1974 में परमाणु परीक्षण किया था, तो अमेरिका नई दिल्ली के खिलाफ बेहद आक्रामक रहा था। वहीं अमेरिका ने इजरायल की परमाणु हथियार क्षमता को बड़ी सहूलियत के साथ नजरअंदाज कर दिया। हकीकत तो यह है कि इस मामले को पश्चिमी देशों ने कभी उठाया ही नहीं।

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1 अक्तूबर को इजरायल ने अपने उत्तर में लेबनान के संप्रभु क्षेत्र में जमीनी अभियान शुरू किया। इजरायली सेना ने इसे लेबनान में मुख्यालय चलाने वाले हिजबुल्लाह के खिलाफ एक ‘सीमित, स्थानीय और लक्षित’ जमीनी अभियान करार दिया। कुछ ही दिन पहले इजरायल द्वारा कथित रूप से छेड़छाड़ किए गए पेजर और वॉकी-टॉकी लेबनान में फटे हैं जिसमें दर्जनों लोग मारे गए। इसके बाद इजरायल ने लेबनान में हजारों जगहों पर बमबारी की जिसमें इसकी भीड़भाड़ वाली राजधानी बेरूत भी शामिल थी। बमबारी में 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं जिनमें हिजबुल्लाह के नेता और कमांडर भी शामिल हैं। इस संगठन के लंबे समय से अगुआ हसन नसरल्लाह की जान भी इस बमबारी में चली गई।

इजरायल के पश्चिम में स्थित गाजा पट्टी में इजरायल पिछले एक साल से अभियान चला रहा है और हमास को मटियामेट करने के अपने घोषित उद्देश्य को नहीं पाने के बावजूद उसने अपना ध्यान हिजबुल्लाह पर केन्द्रित किया है। इसके बारे में लंदन में जासूसी विशेषज्ञों का कहना है कि हिजबुल्लाह के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई से संकेत मिलता है कि इजरायल के पास सालों से इकट्ठा की गई खुफिया जानकारी का अच्छा-खासा भंडार है। साफ है, इजरायल की जासूसी एजेंसी मोसाद ने हिजबुल्लाह के नेटवर्क में घुसपैठ करने में सफलता पा ली है। जब इजरायल ने गाजा पर बमबारी की तो हिजबुल्लाह, जिसके पास कम से कम डेढ़ लाख छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलों का शस्त्रागार है, ने उत्तरी इजरायल को निशाना बनाया। इस इलाके से 70,000 से ज्यादा इजरायलियों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है। लेकिन हिजबुल्लाह का हमला जारी है, बेशक यह इजरायल के हमले की तुलना में कम घातक है।

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सवाल यह उठता है कि हिजबुल्लाह ने इतनी पिटाई खाने के बाद ठोस तरीके से पलटवार क्यों नहीं किया? क्या हिजबुल्लाह की क्षमता को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है? ईरान की अग्रिम रक्षा में हिजबुल्लाह की अहम भूमिका है और इजरायल के जायोनीवाद के खिलाफ ‘प्रतिरोध की धुरी’ (जिसमें हमास और सूडान में हूती विद्रोही भी शामिल हैं) में वह एक अहम कड़ी है क्योंकि इजरायल को मुसलमान, खास तौर पर शिया फूटी आंख नहीं सुहाते। हिजबुल्लाह के हथियार मुख्यतः ईरानी कारखानों से आते हैं।

लेबनान के प्रधानमंत्री नजीब मिकाती के अनुसार, उनके देश में दस लाख लोग इजरायल के हवाई हमलों से बचने के लिए अपने घरों से भागने को मजबूर हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 100,000 से ज्यादा लोग लेबनान के पूर्वी पड़ोसी सीरिया चले गए हैं। संयुक्त राष्ट्र इस संघर्ष से निपटने में नाकामयाब साबित हुआ है। ईरान की ओर से इजरायल पर मिसाइल हमले की निंदा न करने के लिए तेल अबीब ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को ‘अवांछनीय व्यक्ति’ करार दिया है।

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मध्य पूर्व में भड़की आग को बुझाने के मामले में व्हाइट हाउस के अप्रभावी हस्तक्षेपों के बारे में यही अटकलें लगाई जा सकती हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के हाथ 5 नवंबर को होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव तक बंधे हैं। वैसे, यह भी जाहिर सी बात है कि फिलिस्तीन के समर्थकों की तुलना में कहीं ज्यादा अमेरिकी इजरायल के लिए सहानुभूति रखते हैं और वे निश्चित रूप से ईरान के खिलाफ हैं। इस कारण अगर बाइडेन इजरायल के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करते हैं, तो उसका खामियाजा राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस को उठाना पड़ सकता है।

डेमोक्रेट मतदाताओं के इजरायल के प्रति प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन के कारण बाइडेन इस मामले से बच रहे हैं जबकि राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप तो खुलकर इजरायल का समर्थन करते हैं। अगर हिजबुल्लाह अपने इस अपमान को सिर झुकाकर स्वीकार कर लेता है तो इसका यही मतलब होगा कि वह उतना घातक नहीं जितना उसे बताया जाता रहा है। तेहरान के पास उपलब्ध विकल्पों में एक है ‘कुद्स फोर्स’, जो उसके इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स का एक डिवीजन है और यह गैर-परंपरागत खुफिया अभियानों को अंजाम देने के लिए जाना जाता है।

अहम बात यह भी है कि इस घटना को लेकर इस्लामी दुनिया में ही मतभेद है। सुन्नी अरब देश अमेरिका के भागीदार हैं और वे जॉर्डन के अलावा गुप्त रूप से इजरायल का समर्थन करते हैं और यह ईरान के प्रति उनके विरोध से स्पष्ट है। दूसरी ओर, शिया-गठबंधन वाले इराक, सीरिया, लेबनान, सूडान और फिलस्तीन प्राधिकरण तेहरान के साथ खड़े हैं। ऐसे हालात में निकट भविष्य में शांति तो दूर की कौड़ी लगती है।

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