कहानी इतनी सीधी नहीं है, जितनी नजर आ रही है। दरअसल इस कवायद के पीछे एलजेपी का हाथ उतना नहीं है। बीजेपी में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो गिरिराज सिंह की सीट बदले जाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिम्मेदार मानते हैं। इन नेताओं का मानना है कि असल में नीतीश कुमार सिर्फ गिरिराज सिंह से ही नहीं बल्कि दूसरे केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे से भी हिसाब चुकता करना चाहते हं। ऐसे में अश्विनी चौबे की सीट भी बदले जाने की चर्चा थी, लेकिन उन्होंने किसी तरह बक्सर में अपना किला बचा लिया।
गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे, दोनों ही 16 जून 2013 तक नीतीश सरकार में मंत्री थे। लेकिन जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ा तो उन्होंने बीजेपी के सभी 11 मंत्रियों को बरखास्त कर दिया था। वैसे नीतीश सरकार में रहते हुए भी दोनों बिहार सरकार की आलोचना करते रहे थे। और सरकार से बाहर होने के बाद तो दोनों नीतीश कुमार के धुर विरोधी बन गए।
दोनों ने 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा और केंद्र में मंत्री पद भी हासिल कर लिया। इस दौरान जब नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस से हाथ मिलाया तो दोनों ने जमकर नीतीश पर निशाना साधा। बिहार में इन दोनों को पीएम मोदी का सबसे वफादार माना जाता रहा है। कई बार तो इन दोनों के हमले नीतीश पर लालू के मुकाबले कहीं ज्यादा तीखे रहे हैं।
एनडीए में नीतीश की वापसी के बाद भी इनके रवैये में कोई खास बदलाव नहीं आया। पिछले साल राम नवमी के मौके पर इन्हीं दोनों ने धार्मिक प्रदर्शन निकाले थ। भागलपुर में जिस प्रदर्शन के बाद दंगा भड़का था उसकी अगुवाई तो अश्विनी चौबे का बेटा कर रहा था। करीब दो सप्ताह उसे गिरफ्तार किया गया था। इस सबसे नीतीश कुमार की राजनीतिक तौर पर काफी किरकिरी भी हुई थी।
नीतीश कुमार काफी समय से बिहार की बीजेपी इकाई को सबक सिखाने की फिराक में थे। ऐसे में उन्हें पहला मौका तब मिला जब उन्होंने बीजेपी को बराबर की 17 सीटें देने के लिए मजबूर किया। इसके बाद सीटें चुनने के मामले में भी जेडीयू की ही चली।
गिरिराज सिंह की नवादा सीट की जड़ एक और जगह है। पिछले चुनाव में मुंगेर सीट पर एलजेपी की वीना देवी ने जेडीयू के लल्लन सिंह को हराया था। लल्लन सिंह नीतीश के काफी नजदीकी हैं और इन दिनों उनकी कैबिनेट में भी शामिल हैं। जेडीयू इस सीट पर लगातार अपना दावा करती रही है, हालांकि यह सीट गई एलजेपी के हिस्से में है। लेकिन नीतीश ने लल्लन सिंह के लिए गुंजाईश निकालने के लिए बीजेपी को मना लिया। इस तरह मुंगेर सीट एलजेपी ने जेडीयू के लिए छोड़ दी और उसके बदले गिरिराज सिंह की नवादा जेडीयू के हिस्से में आ गई।
हालांकि बीजेपी ने एलजेपी से किसी और सीट को लेने की बात की थी, लेकिन चूंकि लल्लन सिंह और वीना देवी दोनों ही भूमिहार हैं और नवादा सीट पर भूमिहार का संख्या निर्णायक रही है, इसलिए बीजेपी को यह सीट एलजेपी को देना ही पड़ी।
गिरिराज सिंह को अब जो बेगुसराय सीट दी गई है वह पिछले साल अक्टूबर में ही वहां से बीजेपी सांसद भोला सिंह की मौत के बाद खाली हुई है। भोला सिंह ने इस सीट से आरजेडी के तनवीर हसन को 58,000 वोटों के मामूली अंतर से हराया था, वह भी मोदी लहर के दौरान, ऐसे में गिरिराज सिंह इस सीट पर आना नहीं चाहते थे। इसके अलावा वे नवादा सीट पर बीते पांच साल से काम कर रहे थे।
रोचक तथ्य यह है कि जब 23 मार्च को एनडीए उम्मीदवारों का ऐलान हुआ तो नवादा से एलजेपी की वीना देवी को नहीं बल्कि उनके पति के छोटे भाई चंदन कुमार को टिकट दिया गया है। वीना देवी बिहार के कुख्यात माफिया सूरजभान सिंह की पत्नी है। सूरजभान को नीतीश कुमार का भी करीबी माना जाता है। हालांकि जाहिर तौर पर तो नहीं बताया जा रहा कि वीना देवी के बजाए उनके देवर को क्यों टिकट मिला है, लेकिन सूत्र इसे परिवार का आपसी मामला बताते हैं।
वजह कोई भी हो, लेकिन इस सबसे नुकसान गिरिराज सिंह का हुआ है क्योंकि वे एक कमजोर जमीन पर चुनावी मैदान में जा रहे हैं। यहां यह जानना भी दिलचस्प है कि सीपीआई ने बेगुसराय सीट से जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को उम्मीदवार बनाया है।
दूसरी तरफ यह चर्चा भी आम है कि बक्सर सीट गठबंधन के हिसाब से भले ही बीजेपी के हिस्से आई है, लेकिन जेडीयू कार्यकर्ता अश्निनी चौबे की मदद नहीं करने वाले। अश्विनी चौबे भी नीतीश से खार खाए बैठे हैं क्योंकि 2013 की उत्तराखंड बाढ़ में जिस दिन उन्होंने अपने परिवार के 7 सदस्यों को खोया था उसी दिन नीतीश ने उन्हें सरकार से बरखास्त किया था।
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